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एक भारतीय होकर वाघा बोर्डर नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा आपने बॉस

मैंने पहली बार वाघा बोर्डर का वर्णन अपनी मां की खास दोस्त के मुख से सुना था। उन्होंने जिस तरह से वाघा बोर्डर का व्याखयान किया, उसके बाद मै वहां जाने के लिए बेहद उत्साहित हो गयी।

By Goldi

जब भी मुझे अमृतसर जाने का मौका मिलता है, मै वाघा बोर्डर जाना कभी नहीं भूलती, वहां पहुंचते ही मन में पूरी तरह देशभक्ति जाग जाती है। मुझे याद है, जब एक बार मेरी माँ की एक खास दोस्त ने माँ और मुझे वाघा बोर्डर का गुणगान करते हुए कहा था, कि आप लोगो को भी बाघा बोर्डर जरुर जाना चाहिए । उनकी बातों ने मेरे ऊपर ऐसा असर किया, कि बस उनके जाते ही मैंने गूगल पर वाघा बोर्डर के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी।

The Wagah Border Ceremon
PC: Daniel Hauptstein

यूं तो भारत का बोर्डर कई देशो से लगता है, लेकिन परेड का अद्भुत नजारा सिर्फ अमृतसर सतही वाघा बोर्डर पर मिलता है। मैंने यूट्यूब पर पूरी परेड का लुत्फ उठाया।

इस वीडियों को देखने के बाद मुझे वहां जाने की लालसा होने लगी, मैंने इन्टरनेट के जरिये सब कुछ पता किया, और मैंने बैंगलोर से दिल्ली की टिकट करा ली। मैंने फैसल किया कि मै दिल्ली से वाया रोड होते हुए अमृतसर जाऊंगा।

दिल्ली पहुँचने के बाद मैंने अपने दिल्ली में अपने कुछ पारिवारिक दोस्तों से सम्पर्क साधा। दरअसल, वह सेन्ट्रल गवरमेंट में अची पोजीशन पर तैनात है. जिस कारण हमें, वाघा बोर्डर का स्पेशल पास मिल गया।

The Wagah Border Ceremony – A Thrilling Experience

PC: Ken Wieland

दिल्ली में एक रात बिताने के बाद मैंने दूसरे दिन सुबह दिल्ली से अमृतसर की यात्रा शुरू की, दिल्ली से हम सीधे अमृतसर पहुंचे। अमृतसर पहुंचते ही हमने फ्रेश होने के बाद स्वर्ण मंदिर के दर्शन दिए..स्वर्ण मंदिर जिसे मै पहली बार देख रही थी, इतना खूबसूरत और साफ़ मनीर मैंने आज तक नहीं देखा था।

लंगर
स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के बाद हम सभी स्वर्ण मंदिर स्थित लंगर का स्वाद भी चखा। यहां का लंगर हर जाति, धर्म के लिए, इस मंदिर से कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं जा सकता।

लंगर करने के बाद हमने वाघा बोर्डर जाने का प्लान बनाया। वाघा बोर्डर अमृतसर से करीबन 30 किमी की दूरी पर स्थित है। हमने स्वर्ण मंदिर के बाहर से टैक्सी किराये पर ली और निकल पड़े वाघा बोर्डर की ओर। वाघा बोर्डर पहुँचने के बाद मैंने हजारो की तादाद में भीड़ को देखा।

The Wagah Border Ceremony – A Thrilling Experience

PC: Ken Wieland

लंबा इंतजार
मेरे पास वीआईपी पास था, इसलिए मुझे भीड़ का सामना नहीं करना पड़ा, और मुझे वहां बैठने को भी अच्छी सी सीट मिल गयी। वाकई में वहां पहुँचने के बाद मुझे खुद पर भारतीय होने पर गर्व हो रहा था। देशभक्ति के गाने वहां आने वाले हर पर्यटक में एक अजीब सा देशभक्ति का जज्बा जगा रहे थे।

सभी सीटें फुल होने के बाद हमने वहां बीएसऍफ़ जवानों को देखा. जिनके हाथ में हमारे देश भारत का तिरंगा था। उसके बाद दूरी ओर यानी पाकिस्तान की ओर से भी दो जवान अपने देश पाकिस्तान का झंडा लिए हुए नजर आये। उस समय मेरे मुख से बस भारत माता की जय के नारे निकल रहे थे।

बी.एस.एफ के जवानों का बीटिंग रिट्रीट समारोह शुरू हुआ.बी.एस.एफ के जवान अपनी ड्रिल और परेड पूरी करते हुए अटेंसन में जाकर बॉर्डर पर बने बड़े से लोहे के गेट के सामने खड़े हो जाते हैं.और फिर कुछ और ड्रिल करते हुए जैसे ही सूर्यास्त होता हैं वैसे ही दोनों तरफ के गेट खोल दिए जाते हैं और दोनों देशों के राष्ट्रध्वज को सम्मान के साथ उतार लिया जाता है.उसके बाद दोनों देश के जवान एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं, हाथ मिलाने वक्त दोनों देशों के सैनिकों के चेहरे पर गुस्से और रूखेपन का मिला जुला भाव दिखाई देता है.

The Wagah Border Ceremony – A Thrilling Experience

PC: Peter van Aller
यकीन मानिए इस समारोह को देखने का अपना अलग ही आनंद है। हर दिन किये जाने वाले इस रिट्रीट को बी.एस.एफ के जवान जिस जोश के साथ अंजाम देते हैं वो वाकई काबिलेतारीफ़ है। दोनों देशों से काफी दर्शक इस समारोह का हिस्सा बनते हैं और परेड देखने इकठ्ठा होते हैं, लेकिन जहाँ एक तरफ भारतीय दर्शक हर कोने में खड़े, पेड़ पर चढ़ कर जुगाड़ से समारोह को देखते मिले वहीँ पाकिस्तानी दर्शक दीर्घा बिलकुल सुनसान दिख रही थी। बहुत ही कम लोग पाकिस्तान के दर्शक दीर्घा में बैठे दिखे, हालांकि फिर भी उनका शोर और जोश कम नहीं था। समारोह के शुरुआत में ही लोगों से आग्रह किया जाता है की वो अनुचित नारों का प्रयोग ना करें..लेकिन इसके साथ साथ ही इस बात की भी प्रतिस्पर्धा रहती है की किस खेमे से नारों की ज्यादा आवाज़ आती है।

सेना के एक ऑफिसर लोगों को जोर जोर से नारे लगाने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे थे और इशारों से दर्शकों से यह भी कह रहे थे की "देखो, उस तरफ पाकिस्तान से नारों की जोरदार आवाज़ आ रही है और अपनी आवाज़ उनसे कमज़ोर नहीं बल्कि उनसे भी ज्यादा जोरदार होनी चाहिए। "वो ऑफिसर दर्शकों को लगातार ज़ोरदार नारे लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे और दर्शक भी "हिंदुस्तान जिंदाबाद" और "भारत माँ की जय" के ज़ोरदार नारे लगाकर माहौल में देशभक्ति का एक अलग ही रंग भर रहे थे।

मैंने ऐसा पहली बार देखा था, और वाकई में यह यात्रा मेरे अंदर जोश भरने से कम नहीं थी। मुझे अपने सामने पाकिस्तान दिख रहा था जो की एक अलग देश है, लेकिन फिर भी मुझे एक पल भी नहीं लगा की वो कोई दूसरा देश है। एक अलग ही अहसास होता है बोर्डर पर जाने का और मैं निश्चित तौर पे कह सकता हूँ की जो लोग बॉर्डर पर एक बार भी गए हैं, उन्हें जरूर वो अहसास हुआ होगा जो वहाँ जाने पर मुझे हुआ था। लेकिन ये एक ऐसा अनुभव था जिसे मैं हमेशा याद रखूँगी।

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