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कूवागम में ट्रॅान्स्जेंडर्स द्वारा मनाया जाने वाला अद्वितीय पर्व!

ट्रॅान्स्जेंडर्स द्वारा निभाए जाने वाले रीति रिवाज़ों को देखना उन्हे जानना मज़ेदार और अलग होता है।आज के ज़माने में अपने अधिकार और बराबरी के लिए उनका अपने लिए आवाज़ उठाना काफ़ी सराहनीय है। कई सालों के संघर्ष के बाद आज के समय में भी उन्हें समाज अपना ही एक अंग समझ कर अपनाने को तैयार नहीं है। इसके बावजूद भी वे कड़ी मेहनत और कुछ संगठनों की मदद से अपने लिए एक सुंदर जीवन का निर्माण कर रहे हैं। अब उन्हें मंगलमुखी भी कहते हैं।

koothandavar

कूतांडवार
Image Courtesy:
Redtigerxyz

भारत की पौराणिक कथाओं में भी ट्रॅान्स्जेंडर्स को एक अलग और दिव्य स्थान दिया गया है। सिर्फ़ समाज के अलग देखने से ही नहीं, उनके अलग और अजीब रीति रिवाज़ भी सबसे यूनीक और अलग हैं। ट्रॅान्स्जेंडर्स भगवान पे बहुत ज़्यादा भरोसा करते हैं, और साल में एक बार अपना पवित्र त्योहार कूवागम में धूमधाम से मनाते हैं जिसमें भारत के हर कोने से ट्रॅान्स्जेंडर्स सम्मिलित होते हैं।

यह त्योहार ट्रॅान्स्जेंडर्स के यूनीक पर्वों में से एक है जो तमिल नाडु में मनाया जाता है। विल्लीपुरम का कूवागम गाँव कुतांडवार मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह त्योहार तमिल कैलंडर के अनुसार चैत्र(अप्रैल-मई) के महीने में मनाया जाता है। कुतांडवार को अरावन के नाम से भी जाना जाता है , जो महाभारत के महान योद्धा अर्जुन का पुत्र था। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं की अरावन और कोई नहीं बाब्रुवहना का ही दूसरा नाम है।

Koothandavar Temple

कूतांडवार का मंदिर
Image Courtesy:Sriram Jagannathan

महाभारत की पौराणिक कथा हमें युद्ध के दौर में ले जाती है। जहाँ महाभारत के युद्ध के दौरान भविष्यवाणी होती है की वे उस युद्ध को हार जाएँगे। ऐसा होने से रोकने के लिए ज्योतिष उन्हें काली माँ के सामने एक आदमी की बली देने को कहता है। मुश्किल यह थी की वह बली किसी ऐसे आदमी की देनी थी जिसमें सारे गुण हों मतलब की सर्वगुण संपन्न आदमी की। धर्मर्या को इसकी चिंता होने लगी क्युंकी वहाँ सबमें सिर्फ़ तीन ही आदमी ऐसे थे- कृष्णा, अर्जुन और अरावन।

Transgenders Festival

त्योहार में नाचते गाते ट्रॅान्स्जेंडर्स
Image Courtesy:WBEZ

उनमें से कृष्णा और अर्जुन जो महाभारत युद्ध का मुख्य कड़ी थे, उन्हें धर्मर्या किसी भी हालत में खो नहीं सकते थे। तो उन्होनें उन तीनों में से बचे अरावन को ऐसा करने को कहा जिसे वह खुशी खुशी आराम से मान भी गया पर उसने शर्त रखी की उसके ऐसा करने से पहले उसे विवाह करने का सुख लेना है। इस शर्त के अनुसार कोई भी राजा अपनी पुत्री का विवाह ऐसे आदमी से कैसे करा सकता था जो कुछ ही दिनों में मरने वाला है। यह सब देखते हुए भगवान श्रीकृष्णा ने एक सुंदर औरत मोहिनी का रूप धरा और उनसे विवाह किया।

Transgenders as widows

विधवा ट्रॅान्स्जेंडर्स
Image Courtesy:Kannan Muthuraman

यह त्योहार 18 दिनों तक मनाया जाता है। वे अरावन की कोतांडवार के रूप में पूजा करते हैं। ट्रॅान्स्जेंडर्स अपने आपको मोहिनी समझकर कोतांडवार से विवाह करते हैं। मंदिर का पंडित उन्हें धार्मिक रक्षा धागा बांधता है। शादी के एक दिन बाद वे विधवा का रूप धर अरावन की मृत्यु का शोक मनाते हैं। विधवा ट्रॅान्स्जेंडर्स सफ़ेद साड़ी पहन कर 10 दिनों तक लोगों की सेवा करते हैं।

Koothandavar festival

त्योहार में निभाया जाने वाला अनुष्ठान
Image Courtesy:WBEZ

कूवागम का यह त्योहार ट्रॅान्स्जेंडर्स का बहुत ही बड़ा त्योहार होता है जिसमें सिर्फ़ चेन्नई जो की विल्लीपुरम से 100 किलोमीटर की दूरी पर है, से ही नहीं भारत के हर भाग के ट्रॅनस्जेंडर्स इस त्योहार को मनाने आते हैं। मज़ेदार बात यह है की हाल ही के कुछ सालों से इस त्योहार में हिस्सा लेने विदेशी ट्रॅनस्जेंडर्स भी आ रहे हैं।

इस त्योहार के समय चेन्नई से विल्लीपुरम के लिए बस यात्रा की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है। कूवागम का कोतांडवार मंदिर इस अद्वितीय त्योहार का प्रत्यक्ष साक्षी है।

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