मणिकर्णिका घाट, वाराणसी का सबसे पुराना घाट है, इस घाट के साथ कई पौराणिक कथाएं जुडी हुई है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को अकेला छोड़कर यहां काफी समय बिताया था। देवी ने गंगा नदी के तट पर अपनी कमाई खो देने के बारे में बतलाया और भगवान शिव से उसे खोजने का अनुरोध किया।
यह विचार उन्हे आभूषण की आड़ में सदैव घर में रखने का था। इसीलिए कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति यहां मर जाता है और उसका दाह संस्कार यहां होता है तो भगवान शिव स्वंय उससे पूछते है और जन्म - मृत्यु के बंधन से मुक्त कर देते है। यहां एक टैंक भी है जिसे मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि जब भगवान शिव खोई हुई कमाई को खोज रहे थे, तो उन्होने इसे खोदा था।
मणिकर्णिका घाट, वाराणसी का वह घाट है जहां पर्यटक मौत पर्यटन करते है। कई पर्यटक यहां हिंदू धर्म के दाह संस्कार को देखने और रीति - रिवाजों को समझने के वास्ते भी आते है। शायद इस घाट पर महिलाओं पर जाना मना है। इस घाट के पास में भगवान गणेश का मंदिर स्थित है और एक स्टोन स्लैब भी बना हुआ है जिसके बारे में माना जाता है कि यह भगवान विष्णु के चरणपादुका के निशान है। धनी औ अति विशिष्ट लोगों का अंतिम संस्कार यही किया जाता है।