लोहंगी पीर का निर्माण चट्टानों से हुआ है, जो कि पूरे विदिशा में फैला हुआ है। इसका नामकरण शेख जलाल चिस्ती के नाम पर हुआ है, जिसे स्थानी लोग लोहंगी पीर के नाम से जानते हैं। इस ऊंचे चट्टान के टीले विदिशा में हर ओर देखे जा सकते हैं। चट्टान की यह संरचना 7 मीटर ऊंची है और इसकी चोटी चिपटी है, जिसका व्यास करीब 10 मीटर है।
यहां लोहंगी पीर के नाम पर एक कब्र भी है। यह एक छोटा सा गुंबददार संरचना है, जो अब काफी क्षतिग्रस्त हो गया है। इस कब्र पर आप फारसी भाषा में लिखे दो अभिलेख भी देख सकते हैं। इनमें से एक अभिलेख का इतिहास 1460 से मिलता है, जिस समय महमूद प्रथम मालवा के सुल्तान हुआ करते थे। दूसरा अभिलेख अकबर के शासन काल में 1583 का है।
यहां आप ईसा पूर्व पहली शताब्दी का एक टेंक और एक विशाल बेल केपिटल भी देख सकते हैं। आसपास के क्षेत्रों में अन्नपूर्णा देवी को समर्पित मध्यकालीन मंदिर के अवशेष भी देखे जा सकते हैं।