सिक्किम में यह खूबसूरत झील है, जिसे बौद्ध के साथ-साथ हिंदू भी पवित्र जलाशय के रूप में मानते हैं। कहा जाता है कि इसमें मनोकामनाओं को पूर्ण करने की शक्ति है। खेचेओपलरी दो शब्दों खचेओ और पलरी से लिया गया है, जिसका मतलब क्रमशः 'उड़ने वाले फरिश्ते/स्वर्गदूत' और 'महल' । खेचेओपलरी गांव के करीब सुंदर झील, जो खा-चोट-पलरी नाम से भी जानी जाती है खेचोएडपलडरी पहाड़ी से घिरी हुई है, जो पवित्र भी मानी जाती है।
कहावतें जो झील की पवित्रता की व्याख्या करती हैं...
यद्यपि यह माना जाता है कि गुरु पद्मसंभव ने इस प्राचीन झील में 64 योगिनी को शिक्षा दी थी, यह भी माना जाता है कि झील देवी तारा की पदचिन्ह है। देवी तारा वज्रयना बौद्ध धर्म में महिला बुद्ध हैं। तदनुसार, झील ऊपर से एक पदचिन्ह की तरह दिखाई देती है।
एक और रोचक कथा के अनुसार, माना जाता है कि यह विशेष झील छाती का प्रतिनिधित्व करती है। छाती मानव शरीर के चार स्नायुजाल में से एक है। ऐसा माना जाता है कि तीन अन्य जाल का प्रतिनिधित्व ताशिदिंग युकसोम और पेमायांगसे करती हैं।
और अधिक क्या, यह धान की घाटी डेमाज़ोंग को बनाती है और खेचेओपलरी झील बौद्ध धर्म के तीर्थस्थलों की शृंखला के एक भाग को बनाती है, जिसमें ताशिदिंग मठ, डुबडी मठ, युकसोम, पेमायांगसे मठ, दबडेंसे और संगा चोएलिंग मठ शामिल हैं।
इस पवित्र जलाशय के बारे में एक दिलचस्प तथ्य है। यहाँ आने वाले पक्षी यह सुनिश्चित करते हैं कि झील के पानी पर कोई पत्ती नहीं गिरे। ऐसा क्यों होता है, इसके कारण आज तक नहीं पता चले। जैसे ही कोई पत्ती झील पर गिरती है, चिड़ियां उड़ कर आती हैं और पानी की सतह से उठाकर पानी से दूर ले जाती हैं।
हर साल अप्रैल/मई के दौरान एक धार्मिक त्योहार माघे पुर्णें आकर्षण के साथ मनाया जाता है, जिसमें भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान जैसे स्थानों से हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। इसके अलावा, एक और त्योहार जिसे हम चो-शो कहते हैं, अक्टूबर में इलायची वृक्षारोपण की फसल के लिये मनाया जाता है।
चूंकि इस स्थान का धार्मिक जगह के रूप में होने के साथ-साथ एक पर्यटन स्थल के रूप में भी महत्व है इसलिये कुछ परिसरों में आवश्यक सुविधाएं भी प्रदान की गई हैं। एक झील घाट मौजूद है, जहां पर खड़े होकर झील को सामने देख सकते हैं और प्रार्थना कर सकते हैं। इसके अलावा घाट के चारों ओर प्रार्थना पहिये और प्रार्थना झंडे लगे हैं, जो सिर्फ झील को सौंदर्य ही प्रदान नहीं करते, बल्कि इस जगह के पवित्र वातावरण को बढ़ाते भी हैं।