जैसा कि आप सब जानते हैं, कल से श्रावण मास का पवित्र महीना आरंभ हो चुका है। इस पूरे महीने हिंदू धर्म के लोग श्रद्धाभक्ति में डूबे रहते हैं। इसी श्रद्धाभक्ति के साथ लोग कई-कई मीलों दूर चलकर अपने भगवान के दर्शन के लिए भी जाते हैं, जिसे कांवर यात्रा के नाम से जाना जाता है।
कहा भी जाता है कि जो भी इस यात्रा को पूरे मनोभाव से पूरा करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। आज इसी शक्ति और भगवान के प्रति प्रेमभक्ति को लिए, चलिए हम देवघर(बाबाधाम) की यात्रा पर चलते हैं और जानते हैं इस यात्रा की महिमा को।
बाबाधाम
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देवघर कहाँ और क्यूँ प्रसिद्ध है?
देवघर भारत के झारखंड राज्य का एक शहर है जो, हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल है। इस शहर को बाबाधाम नाम से भी जाना जाता है क्युंकि यहाँ शैव पुराण के बाबा बैद्यनाथ का ऐतिहासिक मंदिर है जो भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। माना जाता है कि भगवान शिव को लंका ले जाने के दौरान उनकी स्थापना यहां हुई थी। हर सावन में यहाँ लाखों शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो देश के विभिन्न हिस्सों सहित विदेशों से भी यहाँ आते हैं जिन्हें कांवरियों के नाम से संबोधित किया जाता है। ये शिव भक्त बिहार में सुल्तानगंज के गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं।
बाबाधाम का प्रवेशद्वार
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देवघर शब्द का अर्थ होता है, भगवान का निवास स्थान। देवघर "बैद्यनाथ धाम", "बाबा धाम" आदि नामों से भी जाना जाता है। यह समुद्र तल से लगभग 833 फीट उँचाई पर स्थित है। देवघर में मुख्य आकर्षण का केंद्र है बैद्यनाथ मंदिर जहाँ बारह ज्योतिर्लींगों में से एक लिंग यहाँ स्थापित है। इससे संबंधित कथा कुछ इस प्रकार है: रावण ने अपने राज्य पर भगवान शिव जी की महिमा बनाए रखने के लिए कैलाश पर्वत पर कड़ी तपस्या की, जिससे भगवान शिव जी ने खुश होकर उन्हें अपना एक ज्योतिर्लिंग दिया। पर शर्त यह रखी कि वह अपने राज्य की यात्रा के दौरान इस लिंग को कहीं और नहीं रख सकता, अगर रखता है तो वह लिंग हमेशा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा।
मन्दिर के समीप स्थित पवित्र तालाब
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बाकी सारे देवता अपने शत्रु को मिले इस वरदान से घबरा गये और एक योजना बनाई। योजनानुसार इंद्र भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर, उस लिंग को रावण के हाथो से अपने हाथों में लिया और उसे वहीं बीच रास्ते, देवघर में ही रख दिया। रावण ने अपनी ग़लती सुधारने के लिए उसे वहाँ से हिलाने का बहुत प्रयास किया पर लिंग वहाँ से हिला नहीं। तब से रावण रोज़ यहाँ अपनी ग़लती सुधारने के लिए आता और गंगा जल से लिंग का अभिषेक करता।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर की स्थापना सन 1596 में हुई थी, जब बैजू नाम के व्यक्ति ने यहाँ पर लिंग की खोज की और जिसकी वजह से इसका नाम बैद्यनाथ मंदिर पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं। उनके अनुसार इस लिंग के दर्शन से उनकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 4 बजे से लेकर दोपहर के 3:30 बजे तक और शाम 6 बजे से लेकर रात के 9 बजे तक का निर्धारित है। खास अवसरों और त्योहारों में यह समय बढ़ाया भी जाता है।
बाबाधाम में श्रावण के महीने में उमड़ी भीड़
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पवित्र यात्रा के रोचक तथ्य
बैद्यनाथ(बबाधाम) की यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)में शुरु होती है, जो कल(20 जुलाइ) से शुरू हो चुकी है। सबसे पहले तीर्थयात्री सुल्तानगढ़ में एकत्र होते हैं, जहां वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र जल भरते हैं। इसके बाद वे बैद्यनाथ और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि से न सटे।
मंदिर के मुख्य आकर्षण बासुकीनाथ मंदिर और बैजू मंदिर भी हैं। बासुकीनाथ अपने शिव मंदिर के लिए जाना जाता है। बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक बासुकीनाथ में दर्शन नहीं किए जाते। यह मंदिर देवघर से 42 किमी दूर जरमुंडी गांव के पास स्थित है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाज़ार में तीन और मंदिर भी हैं। इन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था। प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
अपने-अपने कांवर में पवित्र जल ले जाते कांवरिये
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यहाँ पहुँचे कैसे?
सड़क यात्रा द्वारा: देवघर कोलकाता से 373 किमी, गिरिडीह से 112 किमी, पटना से 281 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक के लिए कई बस सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
रेल यात्रा द्वारा: यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन जासीडिह, सिर्फ़ 10 किमी की दूरी पर है जो हावड़ा- पटना-दिल्ली लाइन पर स्थित है।
हवाई यात्रा द्वारा: यहाँ के नज़दीकी हवाई अड्डे राँची, पटना, कोलकाता और गया में हैं।
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