भारत में झारखंड राज्य के रामगढ़ जिले में बसा रजरप्पा, माँ छिन्नमस्तिका के दैव्य रूप के लिए प्रसिद्ध है। हिंदू धर्म के तीर्थस्थलों में एक, छिन्नमस्तिका मंदिर लोगों की श्रद्धा के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक है। साल भर श्रद्धालुओं का यहाँ ताँता लगा रहता है। रजरप्पा का यह प्रसिद्ध मंदिर भारत के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक है। भैरवी- भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर बसा यह माता का मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था की धरोहर है।
असम के कामाख्या मंदिर के बाद यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। श्रद्धालुगण दूर दूर से यहाँ आ अपने कई धार्मिक कार्यों को संपन्न करते हैं।
माँ छिन्नमस्तिका मंदिर
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कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 6000 वर्षों पूर्व ही किया गया था। इस मंदिर में स्थापित कई पुरानी मूर्तियाँ व पूजा के साक्ष्य या तो नष्ट हो गये हैं या धरती में विलीन हो गये हैं। ऐसा माना जाता है कि, मंदिर में स्थापित माँ छिन्नमस्तिका की मूर्ति अपने आप ही अनुदित हो गयी थी। इस मंदिर का निर्माण फिर से वास्तुकला के हिसाब से कराया गया। मंदिर में बना गोल गुंबद असम के कामाख्या मंदिर की याद दिलाता है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए सिर्फ़ एक ही मुख्य द्वार है।
माँ छिन्नमस्तिका का दैव्य रूप
मंदिर में स्थापित माँ छिन्नमस्तिका की प्रतिमा की तीन आँखें हैं। गले में सर्पमाला और मुंडमाला सुशोभित हैं। खुले बाल, जीभ बाहर, आभूषणों से सजी माँ छिन्नमस्तिका अपने सर को बाएँ हाथ में लिए नग्न अवस्था में खड़ी हैं। दाएँ हाथ में खड्ग पकड़ी हुई हैं, जिससे उन्होंने अपना सर धड़ से अलग किया था। उनके दोनो ओर डाकिनी और शाकिनी नाम की उनकी सखियाँ विराजमान हैं, जिन्हें वे अपना रक्तपान करा रहीं हैं और स्वयं भी अपने बाएँ हाथ में पकड़े हुए सर द्वारा रक्तपान कर रहीं हैं।
माँ छिन्नमस्तिका की प्रतिमा
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यहाँ कई श्रद्धालु बकरों की बलि माँ के सामने देते हैं। बलि का केंद्र मंदिर के पूर्व, जहाँ प्रवेश द्वार है वहाँ स्थित है। मंदिर परिसर में ही एक पापनाशिनी कुंड भी है, जहाँ रोगी भक्त रोग मुक्त होते हैं। यह मंदिर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मध्य रात्रि तक खुला रहता है। मान्यता है कि, माँ के दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं।
माँ छिन्नमस्तिका से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथानुसार, हज़ारों साल पहले राक्षसों और दैत्यों द्वारा मनुष्य और देवता आतंकित थे। उनके आतंकों से परेशन हो देवतागण मां शक्ति को याद कर उनसे मदद की कामना करने गये। तब माँ पार्वती(शक्ति) ने छिन्नमस्तिका का रूप लिया जिनका दूसरा नाम प्रचंड चंडिका भी है। माँ ने अपना रौद्र रूप धारण करते ही राक्षसों का संहार करना शुरू कर दिया। वे सबकुछ भूल कर गुस्से में लीन हो पापियों का नाश करने लगीं। पूरी पृथ्वी में खून की नदियाँ बहने लगीं और चारों दिशाओं में हाहाकार मच गया। अपने इस रौद्र रूप में वो निर्दोषों का भी संहार करने लगीं। माँ के इस भयंकर रूप से मुक्ति पाने के लिए सारे देव भगवान शिव जी के शरण में गये और उन्हें माता को शांत करने के लिए प्रार्थना की।
माँ छिन्नमस्तिका
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भगवान शिव जी ने माँ छिन्नमस्तिका के पास जाकर उन्हें शांत होने को कहा। जिसके उत्तर में माँ प्रचंड चंडिका ने उनसे कहा कि, "हे नाथ मुझे बहुत भूख सता रही है, अपनी भूख कैसे मिटाऊं?" तब भगवान शिव जी ने उपाय बताया कि, वे अपने मस्तक को खड्ग से काटकर निकलते हुए रक्त का पान करें, जिससे उनकी भूख मिट जाएगी। माँ छिन्नमस्तिका ने ऐसा ही किया और मस्तक को अलग कर अपने बाएँ हाथ में ले लिया। उनके धड़ से रक्त की तीन धारा निकली, जिनमें से एक धारा डाकिनी, एक शाकिनी और एक धारा का खुद पान कर अपनी भूख मिटाई। तब से माँ के इस रौद्र रूप को महाशक्ती के रूप में पूजा जाने लगा।
यहाँ बहती भैरवी नदी का जल वाराणसी और हरिद्वार की तरह पवित्र है जहाँ लोग स्नान करके माँ छिन्नमस्तिका के दर्शन करने जाते हैं। देश विदेश के साधक यहाँ नवरात्रि, अमावस्या आदि जैसे दिनों में माँ की साधने करने आते हैं, ताकि उन्हें माँ की कृपा प्राप्त हो सके। माँ छिन्नमस्तिका मंदिर के साथ ही कई अन्य देवियों के भी मंदिर स्थापित हैं।
दामोदर नदी
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रजरप्पा के अन्य आकर्षक केंद्र
माँ छिन्नमस्तिका मंदिर के साथ-साथ यहाँ के आसपास के क्षेत्र और यहाँ के जंगल क्षेत्र भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आस-पास की प्राकृतिक दृश्य, पहाड़, नदियाँ, जंगलों में कई तरह की वनस्पतियाँ, जंगलों में रहने वाले जीव, जैसे भालू पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहीं पर एक जलप्रपात भी है, जो पर्यटकों का ध्यान सबसे ज़्यादा अपनी ओर आकर्षित करता है।
माँ छिन्नमस्तिका मंदिर के पास अन्य देवियों के मंदिर
Image Courtesy: Kuarun
यहाँ पहुँचें कैसे?
सड़क द्वारा: झारखंड की राजधानी राँची से रजरप्पा लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर है, जमशेदपुर से 133 किलोमीटर की दूरी पर, और बोकारो से सिर्फ़ 66 किलोमीटर की दूरी पर। यहाँ से आपको बसों की सेवा आसानी से उपलब्ध हैं।
रेल यात्रा द्वारा: जमशेदपुर, राँची या बोकारो यहाँ के नज़दीकी मुख्य रेलवे स्टेशन हैं।
हवाई यात्रा द्वारा: यहाँ के नज़दीकी हवाई अड्डे कोलकाता, पटना और हावड़ा में हैं, जहाँ से बस की सुविधा यहाँ तक के लिए उपलब्ध है।
तो इस बार अपने झारखंड की यात्रा में माँ छिन्नमस्तिका के दैव्य और रौद्र रूप के दर्शन करना मत भूलिएगा जहाँ पर आपकी मनोकामनाएँ भी पूरी होंगी।
"आपकी यात्रा शुभ हो!"
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