बिष्णुपुर को मणिपुर की सांस्कृतिक और धार्मिक राजधानी कहते हैं। यह ऐसी जगह है जहाँ भगवान विष्णु रहते हैं, जो डोम के आकार के टेराकोटा मंदिर से घिरा है और यहाँ पर प्रसिद्द नाचने वाले हिरण, संगाई भी पाए जाते हैं। इन सब की मौजूदगी में बिष्णुपुर किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता। इम्फाल से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, मणिपुर की राजधानी बिष्णुपुर को पहले लुम्लंगडोंग के नाम से जाना जाता था। यह बिष्णुपुर ज़िले का जिला मुख्यालय भी है जो उत्तर दिशा में सेनापति और पश्चिम इम्फाल ज़िले से, पश्च्जिम दिशा में चुराचांदपुर ज़िले से, दक्षिण पूर्वीय दिशा में चंदेल ज़िले से और पूर्व दिशा में थौबाल ज़िले से घिरा है। बिष्णुपुर शहर से थांगजरोक नदी बहती है। बिष्णुपुर को बिशेनपुर भी कहते हैं।
वन्य जीवन और काफी कुछ- बिष्णुपुर के आस पास के पर्यटन स्थल
बिष्णुपुर नाचने वाले हिरण संगाई का भी घर है। यह ऐसी अकेली जगह है जहाँ यह हिरण पाया जाता है। संगाई लोकटक झील के दक्षिण इलाके में पाए जाते हैं। लोकटक झील पूर्वीय भारत का सबसे बड़ा मीठा पानी वाला झील है। आजकल संगाई, केइबुल लम्जाओ राष्ट्रीय पार्क के संरक्षित क्षेत्र में रहते हैं जो बिष्णुपुर ज़िले में ही पड़ता है।
केइबुल लम्जाओ राष्ट्रीय पार्क में दूसरे जानवर जैसे पाढ़ा, पानी में रहने वाली चिड़िया और ऊदबिलाव भी रहते हैं। यह राष्ट्रीय पार्क सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल में से एक है। केइबुल लम्जाओ राष्ट्रीय पार्क, लोकटक झील से घिरा है और पर्यटकों के लिए सुन्दर नज़ारा पेश करता है। आईएनए स्मारक कॉम्प्लेक्स नेताजी सुभाष चन्द्र बोसे को समर्पित है और यहाँ पर एक संग्रहालय है जहाँ इस स्वतंत्रता सेनानी के अवशेष हैं।
झील पर तैरते हुए दलदल जिसे स्थानीय लोग फुम्दी कहते हैं इस झील को हरा रूप देता है। यही कारण है कि इस क्षेत्र की ज़्यादातर वनस्पति पानी में डूबी हुई है। लोकटक लेक के आस पास के गाँव इस तैरते हुए वनस्पति के आस पास काफी दुष्कर जीवन बिताते हैं।
बिष्णुपुर के लोग और संस्कृति
बिष्णुपुर में रहने वाले ज़्यादातर लोग मेईटी होते हैं, जो मणिपुर का सबसे प्रख्यात प्रजातीय वर्ग है। वह हिन्दू धर्म का अनुसरण करते हैं और वैष्णव हैं। बिष्णुपुर में कई और कबीले और संप्रदाय भी रहते हैं जैसे मेईटी पंगल (मणिपुरी मुस्लिम), नागा, कबुई, गंगते, कोम आदि। बिष्णुपुर के लोगों के कमाने का मुख्य ज़रिया खेती है। पूरे साल तक ये कई त्यौहार भी मानते हैं, जिसमें से सबसे जाना माना है लाई हरोबा त्यौहार।
लाई हरोबा त्यौहार थांगजिंग नाम के शाशक को समर्पित है, जो प्राचीन काल में हिन्दू देवता हुआ करते थे। यह त्यौहार मई के महीने में मनाया जाता है और दूर दराज से कई लोग आकर इस त्यौहार में शरीक होते हैं। एबुधोउ थांगजिंग मंदिर थांगजिंग देवता को समर्पित है जो इस जगह के परंपरागत देवता माने जाते हैं। पर्यटकों को यह सलाह दी जाती है कि इस मंदिर को ज़रूर देखें।
चेईराओबा नाम का त्यौहार पूरे मणिपुर में अप्रैल महीने में मनाया जाता है। इस समय हर घर रौशनी से सजा होता है और यह परिवार में खुशहाली का सन्देश देती है। संयोग से चेईराओबा त्यौहार और मेईटी नया साल एक ही समय पर पड़ता है जिससे त्यौहार का मज़ा दुगना हो जाता है।
हिन्दुओं द्वारा भारत के कई इलाकों में मनाये जाने वाला त्यौहार होली की तरह, मणिपुर के लोग याओशांग त्यौहार मनाते हैं। यह चमकीला उत्सव फरवरी/मार्च के महीने में लगातार पांच दिनों तक मनाया जाता है। बिस्न्हुपुरी मणिपुरी याओशांग त्यौहार काफी उत्साह से मनाते हैं।
बिष्णुपुर का सम्मोहित करने वाला इतिहास
इसके पीछे काफी कहानियां हैं कि बिष्णुपुर मणिपुर का मंदिरों वाला नगर कैसे बना और यह कहानियां काफी रोचक भी हैं। राजा क्यामा जिन्होंने 1467 ए डी में इस क्षेत्र पर शाशन किया, पोंग के साथ अच्छे सम्बन्ध रखते थे। पोंग की मदद से राजा क्यामा शान साम्राज्य वाले क्यांग पर चढ़ाई की। इस लड़ाई को इन दोनों राजाओं ने मिलकर और इस जीत की बधाई के रूप में राज पोंग ने भगवान विष्णु की मूर्ती राजा क्यामा को भेंट की। तब से यह मूर्ती लुमलांगडोंग में रखी है और बाद में यह नगर बिष्णुपुर के नाम से जाना जाने लगा, ऐसी जगह जहाँ विष्णु का वास हो। इस समय भगवान विष्णु की पूजा इस राज्य में मशहूर हो गई।
बिष्णुपुर जाने का उचित समय
बिष्णुपुर जाने का सबसे उचित समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का होता है क्योंकि इस समय यात्री अपनी यात्रा सुविधाजनक तरीके से कर सकते हैं।
बिष्णुपुर कैसे पहुंचें
बिष्णुपुर पहुँचने के लिए रेल, रोड और हवाई यात्रा की जा सकती है।