पहाड़ की चोटियों, फूलों की वादियों और हरे भरे घने जगलों से घिरा प्राचीन आदित्य मंदिर रमक गांव में स्थित है। यहां भारी संख्या में पर्यटक सूर्य भगवान की पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजाओं ने करवाया था। पर्यटक...
40 मीटर लंबी और 10 मीटर चौड़ी पाताल रुद्रेश्वर गुफा की खोज 1993 में की गई थी। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने मुक्ति पाने के लिए यहां तपस्या की थी। एक मान्यता यह भी है कि हिंदू देवी दुर्गा ने यहां के एक स्थानीय निवासी को सपने में दर्शन दिया था और पाताल रुद्रेश्वर...
लोहाघाट से 7 किमी दूर बानासुर का किला समुद्र तल से 1859 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण मध्यकाल में किया गया था। एक और मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने यहां बानासुर नाम के एक दानव की हत्या की थी।
चंपावत से 6 किमी दूर स्थित क्रांतेश्वर महादेव मंदिर समुद्र तल से 6000 मीटर की ऊंचाई पर बना है। यह तीर्थ स्थल भगवान शिव को समर्पित है, जिसे स्थानीय लोग कानदेव और कूर्मपड़ नाम से भी संबोधित करते हैं।
पूर्णागिरी मंदिर समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मार्च-अप्रैल के महीने में इस मंदिर में हिन्दू धर्म का त्योहार चैत्र नवरात्रि मनाया जाता है। इस त्योहार में भारी संख्या में पर्यटक इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। मंदिर के पास से ही काली...
चंपावत से 58 किमी दूर देवीधुरा में स्थित बाराही मंदिर हिंदू देवी बाराही को समर्पित है। मंदिर के परिसर में एक बड़ा सा पत्थर रखा हुआ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि महाभारत के पात्र पांडव इसका प्रयोग एक गेंद के रूप में करते थे। रक्षाबंधन के अवसर पर यहां लगने वाल...
चंपावत से 22 किमी दूर स्थित मायावती आश्रम को अद्वैत आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। समुद्र तल से 1940 मीटर की ऊंचाई पर बना यह आश्रम हर साल भारी संख्या में भारतीय और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
1998 में स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा की अपनी तीसरी...
चंपावत से 14 किमी दूर लोहावती नदी के किनारे बसा लोहाघाट एक ऐतिहासिक शहर है। यहां की सुंदरता से मुग्ध होकर पी. बैरन ने इसे कश्मीर के बाद धरती के दूसरे स्वर्ग का खिताब दे दिया। लोहाघाट चंपावत जिले का नगर पंचायत है। पर्यटक यहां के कई पुराने मंदिरों का भ्रमण कर सकते...
यह चंपावत जिले का एक खूबसूरत तीर्थस्थान है। दरअसल यह मंदिरों का समूह है, जिसका निर्माण चंद वंश ने करवाया था। ये मंदिर हिंदू देवी बालेश्वर, रत्नेश्वर और चंपावती दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के मंडप और छत पर की गई नक्काशी इसकी खूबसूरती में और भी ईजाफा कर देती है।
ग्वाल देवता को ‘न्याय की देवी’ में गोरिल और गोल नाम से भी जाना जाता है। ग्वारैल चौर में देवता को समर्पित एक मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार यह देवता कत्यूरी वंश का राज कुमार था और इसकी शौतेली मां ने षड़यंत्र रच कर इसे नदी में फिकवा दिया था।
चंपावत से 5 किमी दूर स्थित एक हथिया का नौला एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। पत्थर को तराश कर बनाई गई यह कलाकृति एक पौराणिक कथा के कारण भी प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि इस पूरी आकृति को किसी एक हाथ वाले शिल्पकार ने एक रात में तराश कर बनाया था।
पंचेश्वर काली और सरयू नदी के संगम पर बसा है। संगम के स्थान पर डुबकी लगाना हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। पंचेश्वर की सीमा पड़ोसी मुल्क नेपाल से लगती है। पर्यटक यहां 6000 मेगावाट क्षमता का बहुउद्देशीय बांध भी देख सकते हैं।
भगवान शिव को समर्पित चौमू मंदिर धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां पूरे साल श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। यहां लोग भगवान शिव को पशुओं का रक्षक मान कर उनकी पूजा करते हैं और मंदिर में घंटी बांधने के अलावा दूध भी चढ़ाते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर यहां...