मणिपुर के नौ ज़िलों में से एक है चंदेल। यह भारत-म्यांमार की सीमा रेखा पर पड़ता है और पड़ोस के देश का प्रवेश स्थान भी है। चंदेल शहर, चंदेल ज़िले का ज़िला मुख्यालय है जबकि मोरेह, चक्पिकारोंग, चंदेल इसके चार उपखंड हैं। चंदेल ज़िले के दक्षिणी भाग में म्यांमार, पूर्वी भाग में उखरुल, पश्चिमी भाग में चुराचांदपुर और उत्तरी भाग में थौबल पड़ता है। 1974 में जब चंदेल ज़िले का निर्माण हुआ था तो इसे तेंग्नौपल नाम दिया गया था। पर 1983 में इसका नाम चंदेल रखा गया। चंदेल मणिपुर का सबसे कम आबादी वाला ज़िला है।
भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने इस ज़िले को देश का सबसे पिछड़ा ज़िला करार दिया है इसलिए इस जगह को हर साल आर्थिक मदद मिलती है। ट्रांस-एशियन सुपर हाईवे प्रोजेक्ट के अंतर्गत, चंदेल उत्तर पूर्वी इलाके का महत्वपूर्ण शहर बन सकता है। एक बार राजमार्ग चालू हो जाए तो चंदेल कई एशियन देशों के लिए प्रवेश द्वार बन जाएगा।
पर्यटकों को आकर्षित करने वाली जैव विविधता
चंदेल ज़िले पर प्रकृति की असीम अनुकम्पा है और यहाँ पर कई प्रजाति के पेड़ पौधे और जीव जंतु पाए जाते हैं। यहाँ पर विशेष रूप से आर्किड और सजावटी पौधे भी मिलते हैं। ऐसे ही कुछ अनूठे पेड़ हैं: अनिसोमेलेस इंडिका, अनोटिस फोएटीडा और क्रासिफालम क्रेपीडायोड्स। इसके अलावा यहाँ कई आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ भी हैं जिनका इस्तमाल आयुर्वेद में किया जाता है।
चंदेल ज़िले में कुछ अनूठे जानवर भी पाए जाते हैं जिसमें से हूलोक गिबन नाम का बन्दर है जो भारत में सिर्फ इसी ज़िले में पाया जाता है। यहाँ पर आप स्लो लोरिस, डगमगा कर चलने वाला छोटे पूँछ वाला बन्दर, सूअर की जैसी पूँछ वाला बन्दर भी देख सकते हैं। इस ज़िले में आपको निशाचर मांशाहारी पशु जैसे चीता और सुनहरी बिल्ली भी देखने को मिलेंगी। पास के देश म्यांमार से हाथी भी यहाँ ठण्ड से बचने के लिए पलायन कर आते हैं।
इस ज़िले की जैव विविधता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने का काम करती है। देश के कोने कोने से प्रकृति प्रेमी मणिपुर के इस दूरवर्ती इलाके में प्रकृति की गोद में समाने आते हैं।
चंदेल के आस पास के पर्यटन स्थल
इस ज़िले का एक महत्वपूर्ण शहर है मोरेह जो म्यांमार का प्रवेश द्वार भी है। मोरेह को मणिपुर के अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय का केंद्र भी माना जाता है। यह चंदेल शहर से करीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चंदेल की दूसरी मन लगने वाली जगह है तेङ्ग्नोउपल क्योंकि यह भारत-म्यांमार सड़क का सबसे उंचा बिंदु है। यह जगह जो चंदेल से करीबन 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, मनिपुर इलाके का सुन्दर नज़ारा पेश करती है।
अनेकता में एकता
चंदेल उत्तर पूर्वीय इलाके का एक अनोखा ज़िला है जहाँ कई कबीले आपस में तालमेल बना कर रहते हैं। सदियों से यहाँ कई प्रकार के कबीले होते आये हैं। यहाँ के कुछ प्रमुख कबीले हैं: मेयोन, अनल, मारिंग, कुकीस, पाईटे, चोठे और थडोउ। इस ज़िले के देशी कबीले के अलावा भी बाहर के कई संप्रदाय भी यहाँ आकर बसे हैं। यहाँ पर मीटीस और मीटी पंगल कबीले के लोगों की आबादी ज्यादा है। यहाँ पर कई ऐसे सम्प्रदाय भी कई दशकों से रह रहे हैं जो मणिपुर के नहीं हैं जैसे नेपाली, बंगाली, तमिल, पंजाबी और बिहारी।
चंदेल में कई भाषाएँ बोली जाती हैं पर यहाँ की प्रमुख भाषा है थडाउ। ऐमोल दूसरी ऐसी भाषा है जो यहाँ काफी बोली जाती है। ऐमोल साइनो-तिब्बती भाषा है। यहाँ के अनल कबीले के लोगों द्वारा अनल भाषा का प्रयोग किया जाता है। इस सांस्कृतिक विभिन्नता के कारण चंदेल एक रंगबिरंगा शहर कहा जा सकता है। चंदेल को लम्का भी कहते हैं।
चंदेल कैसे पहुंचें
चंदेल रेलयात्रा, रोडयात्रा और हवाईयात्रा द्वारा पहुंचा जा सकता है।
चंदेल जाने का उचित समय
चंदेल जाने का सही समय है ठण्ड की शुरुआत।