मेघालय को चेरापूँजी (जिसे स्थानीय रूप से सोहरा के नाम से लोकप्रिय है) के कारण पूरे विश्व में जाना जाता है। जब चेरापूँजी पृथ्वी पर सबसे नम स्थान होता है तो बहुत ही सम्मोहक होता है। लहरदार पहाड़, कई झरने, बांग्लादेश के मैदानों का पूरा दृश्य और स्थानीय जनजातीय जीवनशैली की एक झलक चेरापूँजी की आपकी यात्रा को यादगार बनाते हैं।
चेरा के दलदल वाले इलाके – चेरापूँजी तथा इसके आस-पास के पर्यटक स्थल
चूँकि चेरापूँजी (जिसका शाब्दिक अर्थ है सन्तरों का स्थान) में वर्षभर भारी बारिश होती है इसलिये यहाँ की मिट्टी हल्की हो गई है जिसके कारण खेती लगभग असम्भव है। ऐसा इसलिये है क्योंकि लगातार बारिश और वर्षों के वन कटाव के कारण मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर हो जाती है और अगली बारिश में वह परत बह जाती है।
लेकिन लगातार बारिश होने के कारण ही क्षेत्र में कई मन्त्रमुग्ध कर देने वाले पर्यटक स्थल हैं। मास्मई, नोहकालीकई, डैन थ्लेन जैसे झरने ऊचें पहाड़ो से सँकरे गढ्ढों में गिर कर एक अविस्मरणीय चित्र प्रस्तुत करते हैं। सुन्दर नोहकालीकई झरने के बारे में यह बताना आवश्यक है कि यह देश के सबसे बड़े झरनों में से एक है। चेरापूँजी पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सा-इ-मीका पार्क में भरपूर मनोरंजक गतिविधियाँ उपलब्ध कराई गई हैं।
चेरापूँजी – मनमोहक दृश्यों के बीच
हवादार सड़कों पर शिलाँग से सँकरे तथा तंगघाटी वाले रास्तों से गुजरते हुये और कुहरे से निकलते हुये तथा अपने चेहरे पर बादलों वाली को बयार को महसूस करते हुये आप खूबसूरत चेरापूँजी तक पहुँच सकते हैं। प्रकृति ने सोहरा को भरपूर सँवारा है जिसके कारण यह एक पवित्र पर्यटक आकर्षण बन गया है। चेरापूँजी का पर्यटन केवल सामान्य इधर-उधर घूमना नहीं है बल्कि बहुत कुछ साहसिक पर्यटन है। सामान्य पर्यटक स्थानों से लेकर लीक से हटकर पर्यटक स्थानों तक, सभी चेरापूँजी में पाये जाते हैं।
चेरापूँजी मेघालय के पूर्वी खासी पहाड़ी जिले का एक कस्बा है। समुद्रतल से 1484 मीटर की ऊँचाई पर स्थित सोहरा एक पठार पर बसा है जहाँ से बाँग्लादेश का असीमित लगने वाला मैदानी भाग दिखता है। सबसे भरोसेमन्द आँकड़ों के अनुसार चेरापूँजी में 463.66 इंच प्रति वर्ष की दर से वर्षा होती है और यह स्थान इस ग्रह के सबसे नम स्थानों में से एक है।
चेरापूँजी का इतिहास - अंग्रेजों का आगमन और समुदाय में बदलाव
अंग्रेजों के खासी पहाड़ियों पर आने से इसे क्षेत्र की आजकल की कार्यशैली बहुत प्रभावित हुई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजनीतिक दूत के रूप में डेविड स्कॉट 19वीं सदी की शुरुआत में उस समय के पूर्वी बंगाल से होते हुये चेरापूँजी आये। स्कॉट के समय में चेरापूँजी चेरास्टेशन के रूप में जाना जाने लगा और उन्होंने इसे खासी और जैन्तिया पहाड़ियों का आधिकारिक मुख्यालय बनाया।
इसके पश्चात यह असम की राजधानी भी रहा और बाद में अंग्रेजों ने शिलाँग को राजधानी बनाया। वेल्श मिशन के आने के बाद सोहरा में खास बदलाव हुये। विलियम कैरे की अगुवाई में विल्स मिशन के अन्तर्गत चेरापूँजी ने काफी तरक्की की। थॉमस जोन्स नाम के एक और समाज सेवी ने खासी तथा जैन्तिया पहाड़ियों के जनजातीय समूहों में खेती की तकनीक आदि को विकसित किया। वास्तव में पूर्वोत्तर भारत का पहला गिरजाघर चेरापूँजी में सन् 1820 में बनाया गया था।
हलाँकि समाजसेवी संगठन जनजातीय समुदाय के विकास का कार्य लगातार करते रहे लेकिन अंग्रेजों ने चेरा के भौगोलिक लाभ को जल्द ही भाँप लिया। एक तो सिल्हट मैदानी भाग से नजदीकी तथा दूसरी ओर असम की पहाड़ियाँ, इसे एक आदर्श प्रशासनिक केन्द्र बनाती थीं। सुहावना मौसम परिस्थितियों को और भी बेहतर बनाता था।
चेरापूँजी कैसे पहुँचें
चेरापूँजी शिलाँग से 55 किमी की दूरी पर है और इस पर्यटक स्थल तक पहुँचने में दो घण्टे का समय लगता है। शिलाँग तथा चेरापूँजी के बीच सड़क परिवहन बहुत अच्छा है और व्यक्तिगत वाहनों के साथ-साथ सरकारी यातायात के साघन हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
चेरापूँजी का मौसम
चेरापूँजी में वार्षिक रूप से 11931.7 मिमी वर्षा दर्ज की जाती है। सोहरा में पर्यटकों को लगातार बारिश का सामना करना पड़ता है क्योंकि यहाँ किसी भी समय भारी वर्षा होने की सम्भावना रहती है। गर्मियों के दौरान जब बारिश कम होती है तो मौसम बहुत ही चिपचिपा और गर्म हो जाता है।