दग्शाई, हिमाचल प्रदेश के सोलन में बसा, बहुत पुराने छावनी क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में पहले एक तिहाड़ जेल हुआ करता था, जो अब एक संग्रहालय में बदल चुका है। इस जेल की सबसे दिलचस्प बात यह है कि, हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने भी इस जेल में एक दिन बिताया था। चलिए चलते हैं इसी दग्शाई की आभासी यात्रा में।
दग्शाई जेल म्यूज़ीयम पुराने ज़माने में अँग्रेज़ी सरकार का जेल हुआ करता था। इस जेल में लगभग 54 तिहाड़ जलखाने हैं, जिनमें से 16 जेलखानों का उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था। इन जलखानों में बहुत मुश्किल से हवा अंदर आ पाती है और किसी भी जगह से प्रकाश के अंदर आने का कोई स्रोत नहीं है।
दग्शाई रेलवे स्टेशन
Image Courtesy: Utcursch
एक जेलखना खास तौर पर उच्च दंड देने के लिए अलग से है। इस जेलखाने के 3 दरवाज़े हैं और यह लगभग 3 फीट ही बड़ा है। एक बार अगर किसी कैदी को वहाँ के एक दरवाज़े से अंदर डाला गया तो बाकी के दरवाज़े भी बंद कर दिए जाते थे, जिससे उस कैदी की हलचल पर प्रतिबंध लग जाए। जेलखाने में जगह बहुत कम होने की वजह से कैदी एक ही जगह खड़े होने के लिए बाध्य हो जाता था। यह सज़ा अँग्रेज़ी शासन को चुनौती देने पर सबसे कठोर सज़ा हुआ करती थी।
माना जाता है कि दग्शाई का यह नाम दाग-ए-शाही(राजसी निशान) नाम पर रखा गया। अपराधियों को दग्शाई के इस जेल में भेजने से पहले उन्हें माथे पर गर्म लोहे की छड़ से एक राजसी निशान दिया जाता था, जिसे दाग-ए-शाही कहते थे।
जब आइरिश स्वतंत्रता सैनानियों को इस जेल में क़ैद किया गया तब महात्मा गाँधी एक दिन के लिए इस जेल में उनके पास रहने गये, उन्हें नैतिक समर्थन देने के लिए। गाँधीजी आइरिश नेता ईमन दे वलेरा के बहुत अच्छे दोस्त थे। यह भी उन मुख्य घटनाओं में से एक है, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को उजागर किया।
आज हिमाचल प्रदेश के टूरिज़्म विभाग और उस क्षेत्र के ब्रिगेड कमांडर की मदद से इस जेल म्यूज़ीयम को अच्छी तरह से संभाला गया है। यह अंडमान के तिहाड़ जेल के बाद भारत का दूसरा जेल म्यूज़ीयम है। म्यूज़ीयम में तब के ज़माने की कई तस्वीरें, कलाकृतियां, तोपखाने उपकरण और कई अन्य भारत के इतिहास से संबंधित दस्तावेज़ रखे हुए हैं।
अपने जेल म्यूज़ीयम की इस यात्रा में आप स्वतंत्रता से पहले वाले ज़माने के इतिहास में चले जाएँगे जहाँ आप करीब से जान सकते हैं कि, उस ज़माने में कैदियों को कितनी कठोर सज़ा और यातनाएं दी जाती थीं। जेल के हर जेलखाने का ब्यौरा, जेलखानों के बाहर लगे बोर्ड में उल्लेखित है। देश के स्वतंत्रता सैनानियों द्वारा हमारे देश को आज़ादी दिलाने के लिए किया गया संघर्ष, हमारे इस जेल की यात्रा पर जाने का मुख्य कारण है, जहाँ पर हम अपने इतिहास को और करीब से जान सकेंगे।
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