हिमाचल प्रदेश अपने खूबसूरत पर्यटन स्थलों के साथ विश्व भर में जाना जाता है। यहां साल भर सैलानियों का आवागमन लगा रहता है। चीड़-देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के साथ यहां की बर्फीली पहाड़ियां हिमाचल को स्वर्ग बनाने का काम करती हैं। यहां के दो शहर कुल्लू-मनाली सैलालियों का मुख्य गढ़ माने जाते हैं।
पर्यटक सबसे पहले यहीं आना पसंद करते हैं, जिसके बाद वे हिमाचल के अन्य पर्वतीय स्थलों की ओर रूख करते हैं। इसी क्रम में आज हमारे साथ जानिए हिमाचल के एक ऐसे खूबसूरत पर्यटन स्थल के बारे में जो रोमांच के साथ-साथ धार्मिक व पौराणिक महत्व भी रखता है। जहां अलग-अलग धर्मों के लोग आना पसंद करते हैं।
हिमाचल प्रदेश का मणिकर्ण
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कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में स्थित 'मणिकर्ण' एक खूबसूरत पर्यटन व तीर्थ स्थल है। जो व्यास व पार्वती नदियों के मध्य बसा है। यहां हिन्दू व सिख श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। मणिकर्ण शब्द का अर्थ होता है 'कर्णफूल', सामान्य भाषा में जिसे 'कान की बाली' कहा जाता हैं। यह स्थल धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ एक आकर्षक एडवेंचर प्लेस भी है। जहां प्रतिवर्ष बाइकर्स मणिकर्ण की रोमांचक यात्रा का आनंद लेने आते हैं।
गर्म पानी के चश्में
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मणिकर्ण अपने गर्म 'पानी के चश्मों' के लिए भी जाना जाता है। ये जल के वो कुंड होते हैं, जिनका स्रोत कोई भीतरी जलाशय होता है। गर्म पानी की ये कुंड चर्म व गठिया जैसे रोगों के लिए काफी कारगर माने जाते हैं। हजारों की तादाद में श्रद्धालु यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। कहा जाता है ये गर्म पानी के स्त्रोत गंधकयुक्त होते हैं। लगातार कुछ दिनों तक इस पानी से स्नान करने से कई बामारियां ठीक हो जाती हैं।
एक खूबसूरत पर्यटन स्थल
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पर्यटन के लिहाज से मणिकर्ण एक खूबसूरत स्थल है। यहां बहने वाली पार्वती नदी का बहाव काफी रोमांचित करने वाला होता है। यहां गर्म पानी के कुंड मुख्य आकर्षणों में से एक हैं। वैज्ञानिकों का मानना है, कि यहां के पानी में रेडियम मौजूद है। आप चाहें तो यहां गुरुद्वारा परिसर में बनाए गए गर्म स्नानगृह में स्नान कर सकते हैं, पर ध्यान रहे ज्यादा देर यहां के पानी में रहने पर चक्कर भी आने लगते हैं। मणिकर्ण के गर्म जल के स्रोतों से आसपास के इलाकों में जलापूर्ति भी की जाती है।
सिक्खों में पवित्र धाम
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मणिकर्ण स्थल का अपना अलग धार्मिक महत्व भी है। यहां स्थित मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा, सिक्खों में पवित्र धामों में से एक है। कहा जाता है यहां कभी गुरु नानक ने यात्रा की थी। इस स्थान पर गुरु नानक अपने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ आए थे। उन्हीं की स्मृति में यह गुरुद्वारा का निर्माण करवाया गया। जिसके बाद से यह स्थान एक पवित्र स्थल बन गया। यहां पूरे साल लंगर चलता है।
हिन्दुओं का पवित्र स्थल
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मणिकर्ण सिक्खों के साथ-साथ हिन्दुओं का भी पवित्र स्थल है। यहां भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और भगवान शिव का मंदिर स्थापित हैं। धार्मिक मान्यता है कि यहां विहार के दौरान मां पार्वती का कर्णफूल खो गया था, जिसके बाद स्वयं भोलेनाथ ने कर्णफूल को ढूंढने का काम किया। कर्णफूल पाताल लोक में जाकर शेषनाग के पास चला गया था, जिसके बाद शिवजी काफी क्रोधित हुए। शेषनाग ने कर्णफूल वापस कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि शेषनाग ने जब जोर से फुंकार भरी तब ऊपर जमीन पर दरार पड़ गई थी, जिसके बाद वहां गर्म पानी के स्रोतों का निर्माण हुआ। इसी स्थान पर कुल्लू के राजाओं ने भगवान राम का एक मंदिर भी बनवाया था, जो रघुनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
चांदी की खान
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मणिकर्ण से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित ऊच गांव किसी जमाने में चांदी की खानों के लिए प्रसिद्ध था। अब यह स्थान रूपीवादी के नाम से जाना जाता है। एक ब्रिटिश स्कॉलर ने इस घाटी को सिल्वर वैली का नाम दिया था। पार्वती घाटी का सबसे पहला दौरा (1820) करने वाले अंग्रेज पर्यटक थे। बाद में इस जगह पर कई अध्ययन किए गए।
मानतलाई
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18000 फुट की ऊंचाई पर स्थित मानतलाई पार्वती नदी का उद्गम स्थल है। जो मणिकर्ण के लगभग 35 किमी की दूरी पर है। इस स्थान को भोलेनाथ की आत्मा कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यहां एक बार शिव जी तपस्या में इतने लीन हो गए थे कि उन्हें माता पार्वती का भी ध्यान नहीं रहा, काफी इंतजार के बाद माता पार्वती घूमते हुए मणिकर्ण आ गईं। जिसके बाद भोलेनाथ भी उन्हें ढूढ़ते हुए मणिकर्ण पहुंचे। मान्यता के अनुसार माता पार्वती के नाम परयहां बहने वाली नदी का नाम पार्वती पड़ा।
कैसे पहुंचे मणिकर्ण
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मणिकर्ण का नजदीकी हवाई अड्डा 'भुंतर' स्थित है। आप चाहें तो यहां रेल मार्ग के जरिए भी पहुंच सकते हैं, यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन 'जोगिंदर नगर' है, जो पठानकोट से सीधा जुड़ा हुआ है। आप चाहें तो मणिकर्ण सड़क मार्ग के द्वारा भी पहुंच सकते है। 'भुंतर' सड़क मार्गों द्वारा कई अहम शहरों से जुड़ा हुआ है।