कंचनजंगा विश्व की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। यह भारत-नेपाल सीमा में, हिमालय में समुद्र तल से 8586 मीटर की उंचाई पर स्थित है| कंचनजंगा का शाब्दिक अर्थ है “बर्फ के पांच खजाने”। इसमें पांच चोटियाँ सम्मिलित हैं जिसमें प्रत्येक चोटी सोना, चांदी, जवाहरात, अनाज, एवं पवित्र पुस्तकों का दिव्य भंडार हैं।
कंचनजंगा में पांच चोटियाँ सम्मिलित हैं, जिनमें से मुख्य, केन्द्रीय एवं दक्षिण, भारत के उत्तर सिक्किम एवं नेपाल ने ताप्लेजुंग जिले के साथ सीमा साझा करती हैं। अन्य दो चोटियाँ पूर्णतया नेपाल में स्थित हैं। हालांकि कंचनजंगा क्षेत्र में 12 और चोटियाँ हैं जो लगभग 23,000 फीट ऊँची हैं।
कंचनजंगा के परिदृश्य भूटान, चीन, भारत एवं नेपाल द्वारा साझा किये जाते हैं और इसमें 14 सुरक्षित क्षेत्र हैं जो 2329 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले हैं। यह रोडोडेंड्रोन (एक प्रकार की सदाबहार झाड़ी जिसके बड़े बड़े फूल होते हैं), आर्किड की विभिन्न प्रजातियों एवं कई लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे कि हिम तेंदुआ, एशियाई काला भालू, हिमालय कस्तूरी मृग, लाल पांडा, रक्त तीतर एवं भूरी छाती वाले पेट्रिज का घर है।
इतिहास
कंचनजंगा का एक रोचक इतिहास है। वर्ष 1852 तक कंचनजंगा को विश्व की सबसे ऊँची चोटी माना जाता था। 1849 में भारत के महान त्रिकोणमितिय सर्वेक्षण के पश्चात, विभिन्न अवलोकनों एवं मापनों के आधार पर माउंट एवरेस्ट को सबसे ऊँची चोटी घोषित किया गया। इसके बाद वर्ष 1856 में कंचनजंगा आधिकारिक तौर पर तीसरे स्थान पर आ गई।
पर्यटन
कंचनजंगा संपूर्ण विश्व में दार्जिलिंग से देखे जाने वाले अपने दृश्यों के लिए जाना जाता है। यहाँ की चोटियों ने अपनी प्राचीन सुंदरता को नहीं खोया है क्योंकि इस पर्वत श्रेणी पर ट्रेकिंग की अनुमति बहुत कम दी जाती है। यह दिन के अलग अलग समय अलग अलग रंगों को अपनाने के लिए भी जानी जाती है।
दार्जिलिंग युद्ध स्मारक कंचनजंगा श्रृंखला के अद्भुत दृश्य प्रदान करता है। एक स्वच्छ दिन आपको यह महसूस कराता है जैसे कि ये पहाड़ आसमान से लटके हुए सफ़ेद वाल हैंगिंग की एक छवि हैं। सिक्किम के निवासी इसे पवित्र पहाड़ मानते हैं। वे ट्रेकिंग रास्ते जो ट्रेकर्स के लिए खुले हैं उनमें से गोएचा ला ट्रेक एवं ग्रीन लेक बेसिन ट्रेक धीरे भीरे प्रसिद्धता हासिल कर रहे हैं।
कंचनजंगा भ्रमण के लिए सबसे उत्तम समय
कंचनजंगा में मौसम पूरे वर्ष आम तौर पर सुहावना होता है।