कुंभकोणम का लुभावना और मनोरम शहर दो समानान्तर बहने वाली नदियों के बीच स्थित है। यह छोटा सा शहर तमिलनाडु के थन्जावूर जिले में कावेरी और अरासालार नदियों के बीच बसा है। कावेरी कुंभकोणम के उत्तरी तरफ जबकि अरासालार दक्षिणी तरफ बहती है। कुंभकोणम का अतीत बहुत ही रोचक है और ऐसा माना जाता है कि यह शहर संगम काल का है। यह स्थान चोलों, पल्लवों, पाण्ड्यों, मदुरल नायकों, थंजावूर नायकों जैसे दक्षिण भारत के प्रमुख शाही राजघरानों के साथ-साथ थंजावूर मराठाओं के नियन्त्रण में भी रहा।
यह शहर 7वीं शताब्दी में प्रमुखता से आगे आया जब मध्ययुगीन चोलों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। जबकि ब्रिटिश शासन के दौरान कुंभकोणम सम्पन्नता और प्रमुखता के चरम पर पहुँचा। यह शहर सांस्कृतिक और धार्मिक विद्व्ता का महत्वपूर्ण केन्द्र बना जिसके कारण इसे दक्षिण भारत का केम्ब्रिज कहा गया।
मन्दिरों का शहर
कुंभकोणम मन्दिरों के शहर के रूप में प्रसिद्ध है क्योंकि इसके आसपास के क्षेत्र में कई मन्दिर निर्मित किये गये हैं। कुंभकोणम नगर निगम की सीमा में 188 मन्दिर स्थित हैं। शहर के आसापास के इलाकों में लगभग 100 और मन्दिरों का निर्माण कराया गया है।
कुंभकोणम के कुछ प्रमुख मन्दिरों में कुम्बेश्वर मन्दिर, सारंगपाणि मन्दिर और रामास्वामी मन्दिर शामिल हैं। इस मन्दिरों के शहर में महामहाम महोत्सव हर साल मनाया जाता है और पूरी दुनिया से लोग इस समारोह में शामिल होने के लिये कुंभकोणम आते हैं।
कुंभकोणम के कई शासकों ने अपने शासन काल में इस शहर के आसपास कई मन्दिरों का निर्माण कराया। हलाँकि शहर के मन्दिरों के रूप में प्रमुख योगदान मध्यकालीन चोलों का रहा जिन्होंने दो शताब्दियों से ज्यादा समय के लिये कुंभकोणम को अपनी राजधानी बनाया।
कुम्बेशवर मन्दिर को मध्यकालीन चोलों के शासन के दौरान 7वीं शताब्दी में बनवाया गया था। यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित शहर का सबसे प्राचीन ज्ञात मन्दिर है।
सभी शासकों ने अपने पूर्वजों से बेहतर कार्य का प्रयास किया। उदाहरण के लिये नायक राजाओं ने सारंगपाणि मन्दिर को 12 मन्जिला ऊँचा बनावाया। रधुनाथ नायक ने, जिन्होंने ने शहर में 16वीं शताब्दी में शासन किया, रामायण के चित्रों को रामास्वामी मन्दिर के दीवारों पर बनवाया।
कुंभकोणम को भगवान ब्रह्मा को समर्पित मन्दिर के लिये भी जाना जाता है जो ऐसे हिन्दू देवता हैं जिन्हें समस्त ब्रह्माण्ड और पृथ्वी पर जीवन का रचयिता माना जाता है। भगवान ब्रह्मा के विश्व में गिने चुने मन्दिर ही हैं और उनमें से एक कुंभकोणम में स्थित है।
कुंभकोणम और इसके आसपास के पर्यटक स्थल
हिन्दू मन्दिरों के अलावा कुंभकोणम में कई मठ भी हैं। ये मठ हिन्दू धार्मिक स्थल होते हैं। प्रसिद्ध श्री शंकरामठ, जो मूलतः काँचीपुरम में स्थापित था, को प्रतापसिंह के शासन के दौरान कुंभकोणम में स्थानान्तरित कर दिया गया।
सन् 1960 के दशक में मठ को वापस काँचीपुरम ले जाया गया। कुंभकोणम में दो वेल्लारमठ धरमापुरम और थिरूप्पनन्डल के इलाके में स्थित हैं। राघवेन्द्रमठ कुंभकोणम में ही स्थित है।
वैष्णवमठ की शाखाओं में से एक, अहोबिलामठ भी कुंभकोणम में स्थित है। कुंभकोणम के कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में पट्टेश्वरम दुर्गा मन्दिर, उप्पिलियप्पन मन्दिर, सोमेश्वर मन्दिर और कम्बाहरेश्वर मन्दिर शामिल हैं।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शहर में और इसके आसपास कई मन्दिर और मठ स्थित होने के कारण कुंभकोणम हिन्दू तीर्थयात्रियों का पसन्दीदा स्थान है।
कुंभकोणम आने का सबसे बढ़िया समय
कुंभकोणम आने का आदर्श समय सर्दियों के महीने हैं। तीर्थयात्री और पर्यटक दोनों इस दौरान यहाँ आते हैं।
कुंभकोणम कैसे पहुँचें
यहाँ तक सड़क तथा रेलमार्गों से आसानी से पहुँचा जा सकता है इसलिये मन्दिरों और मठों का यह घर यात्रियों का दिल खोल कर स्वागत करता है।