पैगांग झील से 7 किमी की दूरी पर स्थित ‘स्पंग्निक’, पैगांग क्षेत्र के दूरस्थ निर्जन क्षेत्रों में से एक है। पर्यटक, स्पंग्निक गाँव से, बर्फ से ढंकी हुई चांग-चेन्मो रेंज और अहम पैगांग रेंज के मनोरम दृश्यों का लुत्फ़ उठा सकते हैं।
इसके...
शंकर गोम्पा को शंकर मठ के नाम से भी जाना जाता है। यह, लेह से सिर्फ 3 किमी की दूरी पर स्थित है, और यहाँ तक पैदल चल कर पहुंचा जा सकता है। गोम्पा के अन्दर ‘एवालोकितेश्वर’, एक 'बोधिसत्व' या ‘आत्मज्ञानी जीव’ की एक प्रतिमा रखी गई है, जो समस्त...
लद्दाख में स्टोक पैलेस एक महत्वपूर्ण महल है यहां घाटी पर शासन करने वाले राजाओं और उनके परिवारों के गहने, आभूषण, अस्त्र- शस्त्र से सुसज्जित संग्रहालय भी है। महल का निर्माण 1825 में राजा तेसिसचाल टोंडअप नामग्वाल ने किया था। महल घूमने के लिए...
शे गोम्पा की नींव देल्दन नान्ग्याल के द्वारा रखी गई, यह लेह के दक्षिणी भाग से 15 किमी की दूरी पर स्थित है। बैठे हुए बुद्ध की एक बड़ी तांबे और पानी चढ़े सोने की मूर्ति इस गोम्पा अंदर प्रतिष्ठित है इसे लद्दाख क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति माना जाता है। मठ का...
मठ सर्किट लद्दाख के सबसे प्रसिद्ध क्षेत्रों में से एक है। यहाँ पर कई सारे बौद्ध गोम्पा हैं जैसे फरका मठ, थिक्से मठ, हेमिस मठ और माथो मठ यहाँ के प्रमुख हैं। हेमिस मठ लद्दाख का सबसे बड़ा मठ है जहाँ भगवान बुद्ध की सबसे बड़ी प्रतिमा को स्थापित किया गया...
जनरल ज़ोरावर का किला, लेह महल और नामग्याल त्समो के गोम्पा के ऊपर स्थित है। इस प्रागैतिहासिक स्मारक को रियासी किले के रूप में भी जाना जाता है, कभी जम्मू में डोगरा शासकों की दौलत को रखा जाता था हालाँकि यह वर्तमान में बहुत खराब हालत में है।
यह किला एक प्रमुख...
सुरु घाटी, सुरु नदी का सूखा हुआ स्थान है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। घाटी में लगभग 25000 लोग निवास करते हैं जिन्हें तिब्बती और बौद्ध दर्द समुदाय का वंशज माना जाता है। यहाँ की जनसंख्या में मूलतः वे तिब्बती बौद्ध लोग हैं जो 16...
सेरज़ंग मंदिर, 17 वीं शताब्दी में बनाया गया था, यह लेह से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। यात्रीगण लेह-श्रीनगर राजमार्ग से होकर यहाँ तक पहुँच सकते हैं। मंदिर की अनूठी विशेषताओं में से एक विशेषता यह है कि इसके निर्माण में सोने और तांबे का उपयोग बड़े पैमाने पर किया गया...
माथो मठ, इंडस नदी घाटी पर, शहर से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका इतिहास 500 साल पुराना है, इसे ‘सक्या मठ प्रतिष्ठान, लद्दाख के द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है। इस मठ का निर्माण 16 वीं शताब्दी में ‘लामा दुग्पा दोर्जे, के द्वारा किया गया था। चार सौ साल...
लद्दाख पर्यावरण विकास समूह को पर्यावरण केंद्र के नाम से भी जाना जाता है जिसे वर्ष 1983 में स्थापित किया गया था। इसे तिब्बती यूथ कोंग्रेस के अध्यक्ष ‘सेवांग रेग्ज़ीं’ के नेतृत्व में सैकड़ों सदस्यों वाले स्टाफ़ के द्वारा प्रबंधित किया जाता है। इस समूह को...