सैफपुर में स्थित भाई धरम सिंह गुरुद्वारा हस्तिनापुर से 2.5 किमी दूर है। इसका निर्माण 'पंज प्यारे' में से एक भाई धरम सिंह की स्मृति में किया गया था, जिसे गुरू गोविंद सिंह काफी प्रेम करते थे। गुरू गोविंद सिंह ने अपने अनुयाइयों से पूछा कि कौन सिख धर्म की रक्षा के लिए अपने जान की कुर्बानी देगा। तब पांच लोंगों का एक समूह आगे आया।
इन पांच में से एक भाई धरम सिंह था। भाई धरम सिंह मूल रूप से जाट समुदाय से संबंध रखते थे और उनका नाम धरम दास था। उनका जन्म 1666 में सैफपुर-कर्मचंदपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई संत राम और मां का नाम माई सबहो था। भाई धरम सिंह काफी धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
जब वह 13 साल के थे तभी उनका सिख धर्म से साक्षात्कार हुआ। उन्होंने अपना ज्यादा समय ज्ञान प्राप्ति की खोज में बिताया। 1780 ईस्वी में 42 साल की उम्र में गुरुद्वारा नांदेड़ साहब में उनका देहांत हुआ। सिख समुदाय के लिए भाई धरम सिंह गुरुद्वारा सर्वाधिक पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है।