जब भी हम नालंदा की बात करते हैं तो हमारे दिमाग में पटकथाओं, ज्ञान, मैरून रंग के कपडे में लिपटे, भजन और मन्त्र गाते भिक्षुओं की छवि उभर आती है.. ज्ञान, जो ब्रह्मांड में व्याप्त है और ध्यान करते हुए भगवान् बुद्ध में। पांचवी शताब्दी में स्थापित इस शहर को इसका नाम एक संस्कृत शब्द ‘नालंदा’ से मिला है। यदि इस शब्द को दो भागों में तोड़ा जाए तो इसका अर्थ निकलता है ‘ज्ञान देने वाला’।
अपने नाम को सच साबित करता नालंदा निर्विवाद रूप से प्राचीन भारत में शिक्षा का एक मुख्य केंद्र था। नालंदा के समृद्ध अतीत को इस तथ्य से निश्चित किया जा सकता है कि यहाँ तिब्बत, चीन, टर्की, ग्रीस और पर्शिया (इरान) के अतिरिक्त और भी दूर के स्थानों से लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। यह विश्व के पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक है। यहाँ पर एक समय 2000 शिक्षक और10000 विद्यार्थी रहते थे जो यहाँ पढ़ने आते थे।
नालंदा को दुनिया के नक़्शे में तब स्थान मिला जब सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग यहाँ आया। उन्होंने हज़ारो बौद्ध भिक्षुओं द्वारा अपनाई गई इस अनोखी और असाधारण शिक्षा प्रणाली के बारे में केवल लिखा ही नहीं बल्कि वे अपने साथ कुछ ग्रंथ भी ले गए जिनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया।
बिहार की राजधानी पटना से 90 किमी दूर स्थित नालंदा को वास्तुशिल्प का एक अद्भुत नमूना माना जाता है। इसे नालंदा पर्यटन द्वारा अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है। लाल ईंटों से बना हुआ यह परिसर 14 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इसमें मंदिर, कक्षाएं ध्यान लारने के लिए हॉल, झीलें और बगीचे हैं। यहाँ का पुस्तकालय एक नौ मंजिला इमारत में स्थित है जहाँ शास्त्रों और ग्रन्थों को बड़ी मेहनत से लिखा गया है और संरक्षित किया गया है।
हालांकि नालंदा ने अपनी पवित्रता तब खो दी जब पश्चिम से आये आक्रमणकारियों ने यहाँ तबाही मचाई। इस संस्था को गिरा दिया गया और यहाँ आग लगा दी गई। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ का पुस्तकालय लगातार तीन महीनों तक जलता रहा। आज, विश्व के सर्वाधिक प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेषों एवं खंडहरों की देखभाल नालंदा पर्यटन बड़ी कुशलता से कर रहा है। यह आज भी अपने गौरवशाली इतिहास के साथ खड़ा हुआ है।
गर्मियों में गर्म और सर्दियों में ठंडा, नालंदा एक ऐसा स्थान है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। नालंदा में आपको केवल रिक्षा या तांगा मिलेगा जो शहर घुमाने के बाद समय से वापस छोड़ भी आएगा।
नालंदा में और इसके आसपास के पर्यटन स्थल
नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों के अलावा यहाँ देखने के लिए बहुत कुछ है। बिहार शरीफ़ का मकबरा जहाँ मलिक इब्राहिम बाया की दरगाह पर वार्षिक उर्स मनाया जाता है। आप नालंदा संग्रहालय और नव नालंदा महाविहार भी देख सकते हैं। यहाँ से दो किमी दूर स्थित बड़ागाँव में सूर्य मंदिर है और यह छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
छठ पूजा के दौरान लोगों का जोश फोटोग्राफर के लिए एक दावत के सामान है। छठ का त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है, मार्च-अप्रैल और अक्टूबर-नवंबर के दौरान।
वर्ष 1951 में यहाँ बौद्ध अध्ययन के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की गई थी। प्रति वर्ष बिहार राज्य पर्यटन विभाग द्वारा 24 से 26 अक्टूबर तक रंगीन सांस्कृतिक समारोह का आयोजन किया जाता है जहाँ कलाकार शास्त्रीय एवं लोकनृत्यों का प्रदर्शन करते हैं। कला के पारखियों को हाथ से बनी हुई अति सुंदर मधुबनी पेंटिंग्स अवश्य खरीदना चाहिए।
कैसे पहुंचे
नालंदा सभी मुख्य स्थानों से रेलवे, रोड और वायुमार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
नालंदा का मौसम
यह मैदानों के अन्य शहरों की तरह ही है। गर्मियां गर्म और सर्दियाँ ठंडी होती हैं। नालंदा में सर्दी, गर्मी मानसून तीन तरह के मौसम होते हैं।