राजकोट, सौराष्ट्र राज्य की पूर्व राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है। हालांकि, राजकोट अब कोई राजधानी नहीं है लेकिन इसका अतीत अत्यंत सुंदर और गरिमामयी है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण यहां पर्यटक भारी मात्रा में सैर करने आते है। ब्रिटिश काल में राजकोट को काफी मान्यता प्राप्त थी।
इतिहास
राजकोट को 1620 ई. में ठाकुर साहिब विभोवाजी अजीजो जडेजा, जामनगर शाही वंशज के द्वारा स्थापित किया गया था। राजकोट का नाम, सह - संस्थापक राजू सिंधी के बाद नामित किया गया था। ठाकुर साहिब को गुजरात में मुगल सम्राट से क्षेत्र को छुड़ाने में मदद के लिए सम्मानित किया गया था। इन सभी के साथ, उन्होने स्थानीय काठी जनजाति का सामना किया और जूनागढ़ के शासक की शक्ति बने।
नवाबों के शासनकाल के दौरान
1720 ई. में, राजकोट पर जूनागढ़ शासक के एक अधिकारी मासूम खान ने विजय प्राप्त कर ली। 1722 में उसने इस शहर का नाम बदलकर मासूमबाद कर दिया। इस शहर को 8 फीट ऊंची - मोटी दीवार और 8 द्वारों से सजाया गया था और ये सभी द्वार और दीवारें, लोहे से बनी हुई थी। यहां के अन्तिम द्वार को खादकी नाका के नाम से जाना जाता है जो बिना किसी स्पाइक्स के बना हुआ है और यह नाखलंक मंदिर की रक्षा के लिए बनाया गया था। बेदी नाका और रायका नाका, दो द्वार अभी भी अस्तित्व में है और इन्हे ब्रिटिश काल में पुन: बनवाया गया था और तीन मंजिला क्लॉक टॉवर में बदलवा दिया गया था।
ब्रिटिश एसोसिएशन
ब्रिटिश राज के दौरान राजकोट में कला, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में अधिक विकास देखा गया है। कई महत्वपूर्ण इमारतें जैसे - राजकुमार कॉलेज, द वॉटसन संग्रहालय, द लंग लाइब्रेरी, द कनॉट हॉल और एक मेसोनिक लॉज ( राजमिस्त्रियों के बैठने के लिए जगह ) आदि को उस काल में बनवाया गया था। ब्रिटिश संरक्षण में राजकोट, एक महत्वपूर्ण शिक्षा का केंद्र बन गया है और ऐसे बुद्धिजीवियों को जन्म दिया, जिन्होने आजादी की लड़ाई में नेतृत्व किया।
राजकोट के साथ गांधीजी के एसोसिएशन
गांधी जी ने अपनी शिक्षा का शुरूआती समय अल्फ्रेड हाईस्कूल, राजकोट में बिताया था, जिसे वर्तमान में गांधी विद्यालय के नाम से जाना जाता है। इसके बाद, उन्होने राष्ट्रीयशाला की स्थापना की जहां उन्होने स्वदेशी आन्दोलन को चलाया और खादी पर जोर दिया।
संस्कृति
राजकोट एक बहुसांस्कृतिक शहर है जहां देशभर से लोग आकर बसते है। राजकोट के लोग, सबसे अलग दिखते है क्योंकि उनका लापरवाह रवैया और खुश रहने वाली प्रवृत्ति और किसी में पाई ही नहीं जाती है। राजकोट के लोगों की इसी आदत के चलते, वहां का नाम रंगीलो राजकोट रख दिया गया। यह खुशनुमा लोग, राजकोट की काठियावाड़ी आतिथ्य के लिए प्रसिद्ध है। यहां के लोग मुख्य रूप से शाकाहारी ही होते है। यहां रहने वाली औरतें खुद को गहनों से सजाना बहुत पसंद करती है।
राजकोट का मौसम
राजकोट, अजी और नीरारी नदी के तट पर स्थित है, राजकोट की अर्द्ध-शुष्क जलवायु के कारण यहां गर्मी का मौसम गर्म और शुष्क रहता है, मानसून में भारी वर्षा होती है। राजकोट को चक्रवात और आंधी के लिए भी जाना जाता है।
जनसांख्यिकी
राजकोट की औसत साक्षरता दर 80.6 प्रतिशत है। यहां की अधिकाश: आबादी हिंदू है और यहां सिर्फ 10 प्रतिशत जनता ही मुस्लिम है।
राजकोट कैसे पहुंचे
राजकोट का सड़क परिवहन, गुजरात राज्य मार्ग के माध्यम से है। गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम ( जीएसआरटीसी ) की बसें, पूरे शहर में और प्रदेश के कई हिस्सों व शहरों में चलती है। राजकोट नगर निगम ( आरएमसी ), राजकोट की परिवहन सेवाओं का ख्याल रखता है। यहां की बसें और ऑटो रिक्शा आदि सीएनजी के माध्यम से चलाएं जाते है। राजकोट में एक छोटा सा हवाई अड्डा भी है जो शहर के केंद्र के बीच में स्थित है। इस हवाई अड्डे के माध्यम से राजकोट, अहमदाबाद, मुम्बई, भावनगर और सूरत आदि से जुड़ा हुआ है।