भारत एक ऐसी जगह है, जो अपने अद्भुत आकर्षणों से हर बार देश-विदेश के पर्यटकों को अचंभित करती व आकर्षित करती है। इसी बहुसांस्कृतिक देश में कई सारे अचंभों के बीच मेंढक के मंदिर का होना शायद ही अजीब हो! अगर यहाँ साँपों के मंदिर, चूहों के मंदिर, कुत्तों के मंदिर, चीलों के मंदिर आदि बाकि कई अन्य जीवों के मंदिर हो सकते हैं, तो मेंढक मंदिर क्यूँ नहीं?
इसी तरह उत्तरप्रदेश के अनोखे मंदिर, मेंढक मंदिर की कहानी बहुत दिलचस्प है और यह हमें एक बहुत पुराने काल में ले जाती है। हालाँकि वैदिक परंपरा, हिंदुओं के बाकि उप परम्पराओं पर भावी पड़ती है, वहीं तांत्रिक परंपरा का हमारे इतिहास में एक मजबूत आधार है।
मेंढक मंदिर
Image Courtesy: Abhi9211
आप ज़रूर ही सोच रहे होंगे की तांत्रिक विद्या का मेढक मंदिर से क्या रिश्ता है?
तंत्रों(तांत्रिक विद्या) के अनुसार मेंढक समृद्धि, सौभाग्य व प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। इसलिए यहाँ इसके भक्तों के बीच इसके प्रति एक मजबूत विश्वास है। यह अनोखा मेंढक मंदिर 200 साल पुरानी ऐतिहासिक कहानी को अपने में समेटे हुए उत्तरप्रदेश के छोटे से नगर ओयल में स्थापित है।
प्राचीन समय में यह क्षेत्र ओयल साम्राज्य का एक भाग हुआ करता था और इस मेंढक मंदिर को भी ओयल शासकों ने स्थापित किया। और यहाँ की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहाँ के पीठासीन पूज्यनीय देवता शिव जी हैं, न कि मेंढक। हालाँकि इस मंदिर की अद्भुत रचना है. जो लोगों के बीच उत्सुकता को बढ़ाती है।
मेंढक मंदिर
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जैसा कि इस मंदिर के प्रमुख देवता शिव जी हैं, इसलिए इसे उत्तर प्रदेश का नर्मदेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
मेंढक मंदिर की पौराणिक कथा
एक बार ओयल के राजा भक्त सिंह को एक मेंढक ने आशीर्वाद दिया। जिसके बाद उस राजा को समृद्धि की प्राप्ति हुई और उसके आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी उस मेंढक के आशीर्वाद से सुखमय बना रहा। इसलिए इस मंदिर को उस दिव्य मेंढक के सम्मान में बनाया गया। यहाँ तक कि राजा भक्त सिंह के वंशजों (क्षेत्र के शाही परिवार) का भी इस मंदिर के साथ एक विशेष सम्बन्ध है और इस मंदिर के प्रबंधन का एक मजबूत गढ़ है।
मेंढक मंदिर
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मेंढक मंदिर की संरचना
इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है, इसकी अनोखी व सुन्दर वास्तुकला। इस पूरी रचना को देखने से ऐसा लगता है कि, एक मेंढक के पीठ पर मंदिर का पूरा पवित्र स्थान स्थापित है। मंदिर के सामने ही मेंढक की राजसी मूर्ति पर्यटकों के बीच उत्सुकता पैदा करती है। मेंढक के पीछे ही शिव जी भगवान को समर्पित पवित्र स्थल है, जो एक गुम्बद के साथ चौकोर आकर में बना हुआ है।
मेंढक मंदिर
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मंदिर का पवित्र स्थल कुछ फ़ीट ऊंचाई पर बनाया गया है, जहाँ मंदिर परिसर में बने सीढ़ियों द्वारा पहुँचा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, तांत्रिक विद्या के अनुसार यह पवित्र स्थल एक यंत्र(एक अष्टकोणीय कमल) पर बना हुआ है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिक देवी देवताओं के चित्रों व तांत्रिक शैलियों को नक्काशी का काम करके उकेरा गया है। मंदिर के अंदर कई अनोखे व विचित्र चित्र भी लगे हुए हैं, जो इस मंदिर को एक शानदार रूप देते हैं।
तांत्रिक विद्या का चित्र
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तांत्रिक परंपरा क्या है?
तांत्रिक तंत्र एक प्राचीन भारतीय पंथ है जिसका हिन्दू व बौद्ध धर्म पर गहरा प्रभाव है। यह वैदिक परंपरा से भी पहले की परंपरा है जो स्त्री शक्ति को समर्थन (देवियों का इस परंपरा में बहुत महत्व है) करती है। शक्ति(देवी), विशेष रूप से देवी के क्रूर(चंडी) रूप की पूजा इस परंपरा में की जाती है। इस पंथ से कई रीति-रिवाज़ें व प्रथाएं उत्पन्न हुई हैं। मेंढक मंदिर जिसे मांडलुक मंदिर भी कहते हैं, इसी तांत्रिक परंपरा का पालन करता है।
मंदिर की यात्रा
इसमें कोई भी शक नहीं है कि मांडलुक मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में से एक है, जहाँ धार्मिक प्रथाओं को मान्यता दी जाती है। मेंढक को अच्छी किस्मत व प्रजनन का प्रतीक माना जाता है। इसलिए शादीशुदा जोड़े जो इस मंदिर के दर्शन को आते हैं, उन्हें एक स्वस्थ बच्चे से धन्य होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस क्षेत्र के आसपास के कई भक्त रोज़ इस मंदिर के दर्शन को आते हैं। नर्मदेश्वर मंदिर यानि की इस मेंढक मंदिर के दर्शन, सबसे ज़्यादा खास त्यौहार के मौकों पर किये जाते हैं, जैसे कि शिव रात्रि व दिवाली।
मेंढक मंदिर
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मेंढक मंदिर अपनी अद्भुत व असामान्य रचना के साथ उत्तरप्रदेश के सबसे पुराने जीवित मंदिरों में से एक है। मंदिर के चारों ओर का दिव्य वातावरण एक प्रेरणादायक वास्तुकला के साथ हर बार यहाँ आने वाले यात्रियों को अपनी अदभुत्ता से अचंभित करता है।
यह मेंढक मंदिर भारत में कहाँ है?
मेंढक मंदिर उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिले के छोटे से नगर ओयल में स्थापित है। यह लखीमपुर से सीतापुर की तरफ जाने वाले रास्ते पर ही स्थापित है। लखीमपुर, उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
लखीमपुर का गोला गोरखनाथ मंदिर
Image Courtesy: Himanshu Sharma
मेंढक मंदिर पहुंचें कैसे?
मेंढक मंदिर या मांडलुक मंदिर, लखीमपुर से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह इस जिले के अन्य क्षेत्रों से, सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ। आप लखीमपुर से इस मंदिर तक पहुँचने के लिए कोई भी निजी व स्थानीय वाहन किराये पर ले सकते हैं।
हमें पता है कि, इस अद्भुत रचना के बारे में जानकर आपकी उत्सुकता ज़रूर ही बढ़ गयी होगी। तो फिर देर किस बात की? निकल पड़िये इस अद्भुत रचना की सैर पर, अपने आपको 200 साल पुरानी परंपरा से जोड़ने के लिए। और इसके साथ ही अपने महत्वपूर्ण सुझाव व अनुभव हमसे शेयर करना ना भूलियेगा।
Read in English: We Bet You Didn't Know this Frog Temple!
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