हर साल की तरह इस साल ओड़िशा राज्य स्थित शहर पुरी में 2017 की जगन्नाथ मंदिर रथ यात्रा शुरू होने वाली है।इस यात्रा में धामराई और भगवान महेश की रथ यात्रा को भी शामिल किया जाता है। जिसकी तैयारियों में पूरा ओड़िशा, पुरी शहर और भगवान जगन्नाथ के भक्त बड़ी श्रद्धा से जुड़े हुए हैं। हर साल की तरह इस साल भी 25 जून से यह महान विशाल रथ यात्रा शुरू होने वाली है।
बिहार के इस मंदिर में मूर्तियां करती हैं आपस में बात..वैज्ञानिकों ने भी जताई सहमती
रथ यात्रा महोत्सव में पहले दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा का रथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की शाम तक जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक खिंच कर लाया जाता है। इसके बाद दूसरे दिन रथ पर रखी जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि पूर्वक उतार कर इस मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक श्रीजगन्नाथ जी यहीं निवास करते हैं।
करना ना भूलें, झारखंड के इन औद्योगिक और प्रकृति की गोद में बसे क्षेत्रों की यात्रा!
इसके बाद आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी की यात्रा की जाती है जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं। इस दौरान पुन: गुंडिचा मंदिर से भगवान के रथ को खिंच कर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है। मंदिर तक लाने के बाद प्रतिमाओं को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
पौराणिक कथायों की माने तो, चार धामों को एक युग का प्रतिक माना गया है, जिसमे जगन्नाथपुरी को कलियुग का पवित्र धाम माना जाता है।
PC:Chinmayee Mishra
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
जगन्नाथपुरी भारत के पूर्व में उड़ीसा राज्य में स्थित है, जिसका पुरातन नाम पुरुषोत्तम पुरी, नीलांचल, शंख और श्री क्षेत्र भी है। उड़ीसा या उत्कल क्षेत्र के प्रमुख देव भगवान जगन्नाथ हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा राधा और श्रीकृष्ण का युगल स्वरूप है। श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के ही अंश स्वरूप हैं। इसलिए भगवान जगन्नाथ को ही पूर्ण ईश्वर माना गया है।PC:123sarangi
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
उड़ीसा स्थित जगन्नाथ पुरी इकलौता ऐसा मंदिर है जहां के तीनों ही भगवान भाई-बहन हैं। भगवान जगन्नाथ(श्री कृष्ण), बलभद्र(बलराम) और सुभद्रा।
PC:Dreamodisha
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
हर वर्ष तीन नए रथों का निर्माण होता है जिनमें कि नई लकड़ियों और सामान का प्रयोग किया जाता है पर ये तीनों रथ पिछले साल के रथ के टू कॉपी होते हैं। मतलब सालों से ये रथ एक जैसे दिखते आ रहे हैं। इन रथों का निर्माण नारियल की लकड़ी से होता हैं.. ये लकड़ी वजन में भी अन्य लकडिय़ों की तुलना में हल्की होती है और इसे आसानी से खींचा जा सकता है।PC: Chinmayee Mishra
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और यह अन्य रथों से आकार में बड़ा भी होता है। यह रथ यात्रा में बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होता है।PC:G.-U. Tolkiehn
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
भगवान जगन्नाथ के रथ के कई नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। इस रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है, जिनका रंग सफेद होता है। इस रथ के सारथी का नाम दारुक है।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
भगवान जगन्नाथ के रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ पर सुदर्शन स्तंभ भी होता है। यह स्तंभ रथ की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
यात्रा के दौरान रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं। रथ की ध्वजा यानि झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है। इसके 16 पहिए होते हैं व ऊंचाई साढ़े 13 मीटर तक होती है। इसमें लगभग 1100 मीटर कपड़ा रथ को ढंकने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
वहीं बलदाऊ के रथ का नाम तालध्वज है। इनके रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। यह 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों का होता है, जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। सुभद्राजी के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
भगवान जगन्नाथ, बलराम व सुभद्रा के रथों पर जो घोड़ों की कृतियां मढ़ी जाती हैं, उसमें भी अंतर होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ पर मढ़े घोड़ों का रंग सफेद, सुभद्राजी के रथ पर कॉफी कलर का, जबकि बलरामजी के रथ पर मढ़े गए घोड़ों का रंग नीला होता है।PC:Pkp05
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
रथयात्रा में तीनों रथों के शिखरों के रंग भी अलग-अलग होते हैं। बलरामजी के रथ का शिखर लाल-पीला, सुभद्राजी के रथ का शिखर लाल और ग्रे रंग का, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ के शिखर का रंग लाल और हरा होता है।PC: Pkp05
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ रथयात्रा एक महोत्सव और पर्व के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है।
PC: Aditya Mahar
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
धार्मिक मान्यता है कि इस रथयात्रा के मात्र रथ के शिखर दर्शन से ही व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
PC:Dibyadarsi Nayak
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
पुरी में राजाओं के वंशज अभी भी रहते हैं। ऐसे में जब तक पुरी के राजा खुद आकर असली सोने की बनी झाडू से रास्ते को साफ़ नहीं करते तब तक भगवान मंदिर से बाहर नहीं निकलते।PC: Dinesh.das.171
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
कहते हैं मौसी के घर जाते समय भगवान बीच में आगे बढ़ने से इनकार कर देते हैं। ऐसे में बहुत ज़ोर लगाने पर ही इनका रथ आगे बढ़ता है।
PC: Dibyadarsi Nayak
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
9 दिनों तक मौसी के घर में रहने के बाद जब भगवान को वापस लाया जाता है तो बीच में वो एक जगह रूककर अपनी फेवरेट मिठाई पोडा पीठा ज़रूर खाते हैं।
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
इस यात्रा की खास बात यह है कि,यात्रा के शुरूआती दिन पुरी में बारिश जरुर से होती है। PC:Pkp05
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
जगन्नाथ मंदिर अपने आश्चर्यों के लिए भी दुनिया भर में मशहूर है। ऐसे ही इस मंदिर का सबसे आकर्षक आश्चर्य है 56 भोग (पकवान)। जिसके बारे में कहा जाता है कि 56 अलग अलग तरह के भोग एक दुसरे के ऊपर रखके, जहाँ देवी सुभद्रा निवास करती हैं उस कमरे मे बंद कर दिया जाता है, तो खाना अपने आप पाक जाता है।PC:Pkp05
कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी
इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सबसे ऊपर का खाना सबसे पहले पकता है। कहा जाता है कि देवी सुभद्रा इसे पका देती हैं, जिसे प्रसाद के रूप में लोगों में बांटा जाता है।PC: Dibyadarsi Nayak
कैसे पहुंचे पुरी
पुरी पहुंचने के लिये हवाई मार्ग से सबसे नजदीकी हवाई अडडा भुवनेश्वर है । जोकि पुरी से 60 किमी की दूरी पर स्थित है..श्रद्धालु भुवनेश्वर से पुरी तक डेढ घंटे में बस या टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं।
ट्रेन द्वारा
रेलवे स्टेशन पुरी में ही है पर कुछ बडी ट्रेन पुरी तक नही आती वे भुवनेश्वर तक ही आती हैं । जिसके बाद श्रद्धालु भुवनेश्वर से पुरी तक डेढ घंटे में बस या टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं।
सड़क द्वारा
पुरी सभी राजमार्गों से अच्छे से जुड़ा हुआ है..जिससे श्रद्धालु आसानी से पुरी पहुंच सकते हैं।PC: G.-U. Tolkiehn
- रमज़ान स्पेशल:दिल्ली में बेहतरीन कबाबों के दुकान!
- कर्नाटक के कुछ ऐसे ऐडवेंचर प्लेस जिनके बारे में जानने के बाद आप खुद को रोक नहीं पाएंगे
- गंगटोक जाने से पहले जाने वहां की कुछ खास बातें
- सुबह की खूबसूरती और ताज़ी हवा को करना हो महसूस, जो जाएं इंडिया के इन जगहों पर