लाहौल-स्पीति, हिमाचल प्रदेश का एक जिला है। ये दो घाटियां हैं जो भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित हैं। पूर्व में इसे अलग तौर पर लाहौल और स्पीति के रूप में जाना जाता था लेकिन 1960 में इसे एकसाथ जोड़ दिया गया। इस जिले का प्रशासनिक केंद्र लाहौल के कीलॉन्ग में स्थित है।
स्पीति और लाहौल की प्रकृति एक-दूसरे से बिलकुल अलग है। स्पीति में ठंडे पर्वत और मैदान है जो बंजर पड़े हैं और इन्हें पार कर पाना बहुत मुश्किल है। लाहौल क्षेत्र हरा-भरा है और ये स्पीति के मुकाबले काफी विकसित क्षेत्र है। रूदयार्ड किपलिंग ने अपनी किताब किम में स्पीति कहा को संसार के अंदर की एक दुनिया और एक ऐसा स्थान जहां खुद देवता वास करते हैं, बताया है।
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लाहौल और स्पीति दोनों की ट्रैकिंग के लिए बहुत बढिया हैं और यहां आपको प्राकृतिक सौंदर्य से रूबरूर होने का मौका भी मिलेगा। स्पीति को छोटा तिब्बत भी कहा जाता है क्योंकि इन दोनों की वनस्पति, परिदृश्य और जलवायु में काफी समानता देखने को मिलती है।
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लाहौन-स्पीति में समान रूप से बौद्ध और हिंदू धर्म को माना जाता है। रंग-बिरंगे बौद्ध प्रार्थना के झंडे से लेकर हवा की सरसराहट यहां की संस्कृति को बयां करती है। इस स्थान पर कई तरह के मेले लगते हैं जैसे पौड़ी, लदारचा, त्शेशु, ट्राइबल, फगली और गोची आदि। लाहौल-स्पीति में अनके मठ, प्रचुर वनस्पति और जीव, ऊंचे पर्वत और नदियां हैं।
रोहतांग पास
समुद्रतट से 3978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग पास को आप कई फिल्मों में देख चुके होंगें। रोहतांग और इससे आगे जाने के लिए आपको परमिट की जरूरत पड़ती है। रोहतांग पास जाने का सबसे बेहतर समय जून से अक्टूबर तक का है। पूरे साल के मुकाबले इस समय यहां का मौसम सबसे सुहावना रहता है।
ट्रैकिंग के लिए ये बढिया जगह है। यहां पर आपको ऊंची चोटियां, ग्लेशियर और झरनों का मनोरम नज़ारा देखने को मिल सकता है। रोहतांग पास एकमात्र ऐसी जगह है जो सालभर बर्फ से ढकी रहती है।
किब्बर गांव
स्पीति में स्थित किब्बर गांव दुनिया का सबसे ऊंचा गांव है। ये समु्द्र तट से 4205 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऊंचाई पसंद करने वाले लोगों और फोटोग्राफी के लिए ये जगह बेहतरीन है।
काई मठ से किब्बर गांव काफी नज़दीक है। यहां वन्यजीव अभ्यारणय भी है जहां आपको कई राष्ट्रीय पशु जैसे इबेक्स, हिमालय भेडिया और स्नो तेंदुआ आदि दिखाई देते हैं।
त्रिलोकनाथ मंदिर
खूबसूरत चंद्रबाग घाटी में स्थित त्रिलोकनाथ मंदिर को 10वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इसे पहले टुंडा विहार के नाम से भी जाना जाता था। इस मंदिर में हिंदू के साथ-साथ बौद्ध धर्म के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
इस मंदिर में अलग-अलग नाम पर एक ही मूर्ति को बौद्ध और हिंदू धर्म के लोगों द्वारा पूजा जाता है।
हिंदू धर्म के लोग मंदिर के आराध्य को भगवान शिव और बौद्ध धर्म के लोग आर्य अवलोकितेश्वर के रूप में पूजते हैं। इस वजह से ही यह मंदिर काफी अनोखा और अनूठा है। कैलाश और मानसरोवर के बाद त्रिलेाकनाथ मंदिर सबसे अधिक पवित्र माना जाता है।
टाबो मठ
996 ईस्वी में टाबो की स्थापना की गई थी। देशभर में बौद्ध मठों में इसकी स्थापना सबसे पहले की गई थी। इस मठ का नाम यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है। मठ की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। इसकी की वजह से इसे हिमालय का अजंता कहा जाता है।
इसमें नौ मंदिर, 4 स्तूप और गुफा मंदिर हैं। प्राचीन समय में शिक्षा और विद्या के लिए टाबो मुख्य केंद्र हुआ करता था। वर्तमान मे टाबो तठ सरकोंग स्कूल द्वारा चलाया जाता है जिसमें 274 बच्चे पढ़ते हैं।
ह्म्ता पास
कुल्लू की हरी-भरी घाटी के एक गलियारे में स्थित है ह्म्ता पास । ये जगह एक बालकनी के रूप में है जहां से आप पूरी दुनिया को देख सकते हैं। इसी वजह से ये जगह अद्भुत और अनोखी कहलाती है।
समुद्रतट से इसकी ऊंचाई 4270 मीटर है। ह्म्ता पास को चंद्रताल झील का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है। गर्मी के मौसम में चरवाहे घास के मैदान की तलाश में यहा आते रहते हैं।
ग्यू मम्मी
स्पीति घाटी का एक छोटा-सा गांव है ग्यू जहां मुश्किल एक दर्जन घर होंगें। ये जगह भिक्षु सांघा तेजिंग के मम्मी के रूप में प्रसिद्ध है। भारत में से एकमात्र ऐसा स्थान है जो प्राकृतिक मम्मी के लिए मशहूर है।
माना जाता है कि इस भिक्षु ने अपने गांव को बिच्छुओं के कहर से बचाने के लिए बहुत बड़ा त्याग दिया था। गांव वासियों का मानना है कि जब सांघा तेंजिंग ने अपने शरीर का त्याग किया था तब यहां एक इंद्रधनुष बना जा जिसके बाद गांच को बिच्छुओं से मुक्ति मिली थी।
धनकर झील
धनकर गांव से 45 किमी की दूरी पर स्थित है धनकर झील। समुद्रतट से इसकी ऊंवाई 4136 मीटर है। हरे-भरे धनकर झील के वातावरण में आपको कई रंग एकसाथ देखने को मिल जाएंगें। हालांकि, गर्मी के मौसम में इस झील का पानी भाप बनकर उड़ जाता है और उस समय यहां सिर्फ मवेशी ही चरने आते हैं। इस झील से मनिरंग चोटि का मनोरम दृश् दिखाई देता है।
काई मठ
इसे की गोंपा के नाम से भी जाना जाता है। इस मठ को 11वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। लाहौल-स्पीति में स्थित ये सबसे बड़ा बौद्ध मठ है। समुद्रतट से इस मठ की ऊंचाइ्र 4166 मीटर है। मठ से मनोरम दृश्य नज़र आते हैं।
ये मठ 200 भिक्षुओं और मठवासिनी के प्रशिक्षण केंद्र के निकट है। मठ के कई कमरे आज भी बंद हैं। कुटुंघ ऐसा ही एक कक्ष है जहां दलाई लामा रूकते हैं। उनकी अनुपस्थिति में इस कक्ष को बंद ही रखा जाता है। काई मठ शांति और सद्भावना का प्रतीक है।
चंद्रताल झील
ये झील अर्ध चंद्राकार में है इसलिए इसे चंद्रताल कहा जाता है। चंद्रताल झाील ट्रैकिंग के लिए भी बहुत मशहूर है और लाहौल-स्पीति आने वाले लोग यहां जरूर आते हें। कुंजुम पास ये यहां आप पैदल ही आ सकते हैं जबकि बटल से भी यहां पर पहुंचा जा सकता है।
चंद्रा नदी की ओर मुख किए हुए समुद्र टापू पठार पर चंद्रताल स्थित है। समुद्रतट से चंद्रताल 4300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चंद्रताल झील के पास कैंप लगाकर आप रूक सकते हैं।
कुंजुम ला
तिब्बती इसे कुंजुम ला के नाम से बुलाते हैं। कुजुम क्षेत्र का सबसे ऊंचा मार्ग है कुंजुम पास। समुद्रतट से इसकी ऊंचाई 4551 मीटर है। कुंजुम पास कुल्लू घाटी से लाहौल-स्पीति से जुड़ा हुआ है। कुंजुम ला में आपको बारा शिग्री ग्लेशियर का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है।
रोहतांग पास के विपरीत स्थित कुंजुम पास में आप खूब सारी तस्वीरें खिंचवा सकते हैं। रोहतांग पास में भारी मात्रा में चाहन चलते हैं इसलिए ये जगह फोटोग्राफी के लिए उचित नहीं है। इस मार्ग से गुज़रने वाले लोगों की रक्षा कुंजुम देवी द्वारा की जाती है।