उत्तराखंड में स्थित हरिद्वार एक हिंदुयों का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।यह पवित्र शहर भारत के सात पवित्र शहरों अर्थात् 'सप्त पुरी' में से एक है। ज्ञात हो कि हिंदू धर्म के अनुसार हरिद्वार शब्द का अर्थ है, 'भगवान् तक पहुँचने का रास्ता'।
आपको बताते चलें कि हरिद्वार शहर को मायापुरी, कपिला, मोक्षद्वार एवं गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता है। इस शहर का उल्लेख कई प्राचीन हिंदू महाकाव्यों में मिलता है।
हरि की ओर बुलाने वाला द्वार 'हरिद्वार'
यहाँ के कई अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में माया देवी, मनसा देवी एवं चंडी देवी के मंदिर सम्मिलित हैं। इन तीन मंदिरों की गणना भारत में मौजूद 52 शक्तीपीठों में की जाती है। शक्तिपीठ पूजा के वे स्थल हैं जो हिंदू देवी सती या शक्ति को समर्पित हैं।
भगवान के शहर में, भगवान से मिलने के बाद कहां कहां टाइम बिता सकते हैं आप
आज हम आपको अपने लेख से हरिद्वार में आसपास घूमने की बेहद खास जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों, या फिर आपने सुना हो
गुज्जर जनजाति
हरिद्वार के बाहरी क्षेत्र में आप गुज्जर जनजाति को देख सकते हैं।जो बाहरी क्षेत्र में में बिना दरवाजों के झोपड़ी बनाकर रहते हैं, ये जनजाति अपने घरों और पशुयों के लिए काफी सवेंदशील होते हैं।अगर आप इनकी तस्वीर निकालना चाहते हैं,तो बेहतर होगा आप इनकी आज्ञा लें, वरना अप मुसीबत में फंस सकते हैं। आप इनकी परम्परिक लाइफस्टाइल को देख सकते हैं, अगर आप इनसे ज्यादा घुलते मिलते हैं, तो आप इनके यहां के लोकल फ़ूड भी जायका भी ले सकते हैं।
पुराने हरिद्वार में तांगे की सवारी
अगर आप हरिद्वार में हैं,तो आपको यहां तांगे की सवारी का मजा जरुर लेना चाहिए। जैसे ही आप पुराने हरिद्वार पहुंचेंगे तो आप घोड़ो की हिनहिनाहट को साफ़ सुन सकते हैं। आप चाहें तो पूरे हरिद्वार की सैर तांगे से भी कर सकते हैं..तांगा वाले आपको हरिद्वार के सभी प्रमुख गंगा घाट,मंदिर बाग़ आदि बेहद ही उचित दाम पर दिखा सकते हैं।
विश्व का सबसे बड़ा खाद्य पार्क
यह भारत का पहला और सबसे बड़ा फूड पार्क है, जहां पर विश्व स्तर की मशीनरी से खाद्य उत्पादों का उत्पादन किया जा रहा है। यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सहयोग के साथ सरकारी योजना के तहत स्थापित दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य एवं हर्बल पार्क है। यह पतंजलि योगपीठ के मुख्य शहर से 20 किलोमीटर दूर स्थित है।
सूफी दरगाह
इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में इब्राहिम लोदी द्वारा किया गया था।यह अलाउद्दीन अली अहमद सबीर कल्याड़ी का विश्राम स्थान है। सूफीवाद के अनुयायियों का मानना है कि यहांमांगी गयी हर दुआ कुबूल होती है।इस दरगाह पर मत्था टेकने आने वाले वाले सबसे ज्यादा पर्यटक इस्लामिक देशों के होते हैं। यह एक बेहद ही खूबसूरत जगह है।