नर्मदा नदी के मुहाने पर स्थित है जबलपुर जो कि मध्य प्रदेश के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध शहरों में से एक है। इस शहर का नाम संत जबली के नाम पर रखा गया है। इनका जिक्र रामायण में भी किया गया है।
ऐसा माना जाता है कि नर्मदा नदी के तट पर एक छोटी-सी गुफा में जबली नामक साधु निवास करते थे। ब्रिटिश शासन के दौरान इसे जबलीपुरम, जुब्बुलगढ़ और जुब्बुलपोर नाम दिया गया था। जबलपुर पर सबसे पहले मौर्य राजवंश के सतवाहन, गुप्ता, गोंडवाना और मराठाओं का शासन था। इसके बाद ये शहर ब्रिटिश हुकूतम के शासन में आ गया।
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जबलपुर में कई सारे उद्योग हैं। इस शहर का विकास बड़ तेजी से हो रहा है और यहां पर आपके कई अनेक दार्शनिक स्थल भी हैं स्मार्ट सिटी योजना के तहत जबलपुर को भी स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चुना गया है।
जबलपुर का मौसम मध्य उत्तर भारत जैसा ही है। यहां मार्च से जून तक गर्मियों का मौसम रहता है और नवंबर से मार्च तक ठंड रहती है। यहां की अधिकतर जनसंख्या कृषि करती है और यहां पर कुछ निर्माण उद्योग भी लगाए गए हैं।
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जबलपुर शहर वायु, रेल और सड़क मार्ग द्वारा मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। शहर से एयरपोर्ट 20 किमी की दूरी पर स्थित है। इस शहर तक भारत का सबसे लंबा हाईवे एनएच 7 आता है।
अगर आप जबलपुर घूमने जा रहें हैं तो जानिए कि इस शहर में करने और घूमने के लिए क्या-क्या चीज़ें और जगहें हैं।
नर्मदा नदी में करें पवित्र स्नान
देश की पांच पवित्र नदियों में से एक है नर्मदा। 12 साल में एक बार 12 दिनों के लिए नर्मदा पुष्करम उत्सव का आयोजन किया जाता है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन से पहले आप इस पवित्र नदी में स्नान कर सकते हैं। मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं।
माना जाता है कि एक बार भगवान शिव ध्यान में लीन थे और उन्हें अत्यधिक पसीना आ रहा था। तब उनके पसीने की एक बूंद यहां पर गिरी जिसने नदी का रूप ले लिया। इस नदी को नर्मदा के नाम से जाना जाने लगा। इसे भगवान शिव की पुत्री कहा जाता है।
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भेडाघाट पर मार्बल रॉक पर बोट राइड
जबलपुर की यात्रा नर्मदा नदी में संगरमरमर की चट्टानों के बीच नाव यात्रा के बिना अधूरी है। नर्मदा नदी के बीच संगमरमर की चट्टानों से गुज़रकर आप सुंदर और प्राकृतिक पहाड़ों का मज़ा ले सकते हैं। इन चट्टानों को काफी प्राचीन माना जाता है। कहते हैं कि ये चट्टानें प्रागैतिहासिक की हैं।
नर्मदा घाटी में प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। शोधकर्ताओं को इस क्षेत्र में डायनासोर के अंडे मिले थे। यहां पर पूरा साल बोटिंग की सुविधा मिलती है लेकिन मॉनसून के दौरान जुलाई से सितंबर तक आप बोटिंग का मज़ा नहीं ले सकते हैं। PC: Karan Dhawan India
केबल कार / धौनाधर झरने पर रोपवे राइड
नर्मदा नदी में आप धौनाधर झरने की प्राकृतिक सुंदरता को भी निहार सकते हैं। तेज गति से नीचे गिरता हुआ पानी और उसकी कलकल करती ध्वनि आपको मंत्रमुग्ध कर सकती है।
नदी की एक तरफ से रोपवे राइड शुरु होती है और ये आपको नदी के दूसरी ओर ले जाती है। झरने को बिलकुल सामने से देखने का ये अनुभव आपको जिंदगी भर याद रहेगा। इसमें आप खुद को प्रकृति की गोद में महसूस करेंगें।
PC: Anshikasjv12
ग्वारीघाट पर गुरुद्वारा
जबलपुर का सुप्रसिद्ध घाट है ग्वारीघाट जोकि सिख धर्म के लोगों का प्रमुख तीर्थस्थान है। मान्यता है सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी पंजाब लौटते समय यहां कुछ देर के लिए रूके थे। इस गुरुद्वारे की देखभाल संत तुलसा सिंह द्वारा की जाती है।
ग्वारीघाट के तट पर बना है ये गुरुद्वारा जहां आकर आप गुरु नानक जी को स्मरण कर सकते हैं। गुरुद्वारे में पर्यटकों के लिए एक कक्ष भी बनाया गया है एव तीर्थयात्रियों के लिए यहां गुरु के लंगर की व्यवस्था भी की गई है। PC: nevil zaveri
बैलेंसिंग रॉक्स
जबलपुर में ये एक खास जगह है जहां पत्थरों के बीच बना संतुलन किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ये पत्थर किसी भूवैज्ञानिक आश्चर्य से कम नहीं है। कोई भी इनके संतुलन को बिगाड़ नहीं सकता है।
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चौंसठ योगिनी मंदिर
भारत की प्राचीन विरासत में से एक है मां दुर्गा को समर्पित चौंसठ योगिनी मंदिर। ये मंदिर भेदाघाट के निकट नर्मदा के तट पर स्थित है।
इस मंदिर पर आप जबपलपुर पर शासन करने वाले राजाओं की छवि को देख सकते हैं। पर्वत की चोटि पर बने मंदिर के प्रांगण तक पहुंचने के लिए 150 सीढियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां पर 64 मूर्तियां बनाईं गईं है और प्रत्येक मूर्ति एक योगिनी को समर्पित है। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव और देवी पार्वती एकसाथ बैठे थे।
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कचनार शहर में भगवान शिव
जबलपुर शहर में नया विकसित शहर है कचनार। यहां पर 75 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा बनाई गई है जोकि इस जगह का प्रमुख आकर्षण माना जाता है। खुले आकाश में स्थापित भगवान शिव की इस मूर्ति को शिवलिंगम स्वरूप में उतारी गई है।
2006 में बने इस मंदिर में भगवान शिव और सप्तऋषि की मूर्ति भी स्थापित है। मूर्ति के पास भगवान शिव का वाहन नंदी महाराज भी है जोकि आकर्षण का मुख्य केंद्र है।
मदन महल किला
इस शानदार किले का निर्माण गोंड के शासक मदन सिंह द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में करवाया गया था। यहां पर खड़े होकर सैनिक नज़र रखा करते थे। इस किले में आप 11वीं शताब्दी की वास्तुकला और शिल्पकला को देख सकते हैं।
इस किले के कक्ष सुंतुलित, रहस्यमयी और जलाशयों से भरें हैं। युद्ध के कक्षों में आपको शानदार नक्काशी और शिल्पकला देखने को मिलेगी। ये किला मदन महल पर्वत से 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मदन मोहन महल पूरे साल पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
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