गर्मी के मौसम में किसी ठंडी जगह पर जाने की सोच रहे हैं तो आप उत्तराखंड में फूलों की घाटी जा सकते हैं। शहर की गर्मी से दूर यहां आप नाइट ट्रैक का भी मज़ा ले सकते हैं।
पार्टी,फन, कॉफ़ी, बियर, मौजमस्ती और हैंगआउट के लिए सिर्फ़ नम्मा बैंगलोर
हाल ही में मैंने अपने कुछ दोस्तों से बात की, जिसके बाद मैंने कुंती बेट्टा जाने का फैसला किया।इसे चुनने के मेरे पास दो कारण थे, पहला यह ट्रेक काफी आसान था और दूसरा में रात की ट्रैकिंग बेंगलुरु के नजदीक ही करना चाहती थी।मैंने अपनी यह यात्रा लोकल ट्रैकिंग क्लब के साथ यात्रा शुरु की।
कुंती बेट्टा के बारे में
बैंगलोर से 130 किमी की दूरी पर स्थित है दो पर्वतों की संरचना कुंती बेट्टा जोकि कर्नाटक के मंड्या जिले में पांडवपुर में स्थित है। खड़ी ढलानों के साथ ये पहाड़ी समुद्रतट से 2882 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पांडवपुर का ऐतिहासिक महत्व भी है क्योंकि कहा जाता है कि द्वापर युग में पांडव के पांचो पुत्र अपनी मां कुंती के साथ इस स्थान पर निष्कासित किए जाने के बाद कुछ समय रूके थे।
किवदंती है कि कुंती और पांडवों ने इस पर्वत के विकास में अहम भूमिका निभाई थी और इसीलिए इसका नाम पांडवों के नाम पर रखा गया है। पर्वत की तलहटी में एक मंदिर भी है जोकि प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता है। PC:Aditya Patawari
कैसे पहुंचे
शनिवार की रात को एमजी रोड़ से 9 बजे क्लब द्वारा बुक की गई बस पकड़ी। बैंगलोर से कुंती बेट्टा की दूरी लगभग 130 किमी है और इस दूरी को तय करने में हमें 4 घंटे का समय लगा।
अपने रिकॉर्ड के लिए रूट को ट्रैक करने के लिए मैंने अपने पास जीपीएस भी रखा था। ये रूट बैंगलोर - बिदादी - रामनगर - मंड्या - पांडवपुर - एसएच 17 से कुंती बेट्टा तक है। बस ने हमें रात के 1 बजे यहां उतारा और फिर मुझे आगे के रास्ते के लिए यहीं से कुछ दोस्तों का साथ मिल गया।PC:Aditya Patawari
क्या साथ लेकर जाएं
अपने साथ स्टर्डी बैकपैक रखें। इसमें कुछ एक्स्ट्रा कपड़े, लाइट जैकेट, पैक्ड फूड, वॉटर बॉटल दवाएं और टायलेट्री किट और स्लीपिंग बैग और टॉर्च लेकर चलें। Pc:Aditya Patawari
जाने का सही समय
मैंने अपनी कुंती बेट्टा की यात्रा मार्च के महीने में की थी..हालांकि यहां आने का सही समय सितम्बर से फरवरी के बीच है क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम बहुत ठंडा रहता है। मॉनसून में तो यहां बिलकुल ना आएं क्योंकि इस दौरान पूरे क्षेत्र में फिसलन रहती है। अगर आप नाइट ट्रैक के लिए नहीं जा रहे हैं तो गर्मी के मौसम में तो बिलकुल ना आएं। यहां पर गर्मी के मौसम में भी रात के समय मौसम सुहावना ही रहता है।PC:Yogini
नाइट ट्रैक
उस रात को अर्ध चंद्र की रोशनी हर जगह फैली हुई थी। टॉर्च की लाइट में ट्रैक लीडर के निर्देशों के तहत हमने ट्रैक की शुरुआत की। शुरुआत में हम टोथे पर्वत पर पहुंचे जोकि ट्रैक का काफी आसाना हिस्सा था।
इससे आगे रास्ता थोड़ा मुश्किल होता जाएगा। रात को रोशनी की कमी की वजह से चट्टानों से घिरा रास्ता ही नज़र आ रहा था। कभी इन चट्टानों से गुज़रते हुए रास्ता काफी संकरा होता जाता था। ऐसे समय पर हमें अपने बैग को हाथ में लेकर उस गैप पर छलांक मारकर आगे बढ़ना पड़ता था।
थोड़ी देर के बाद ट्रैक थोड़ा आसान हो गया। इस ट्रैक पर हमें बड़ी सावधानी से चलना था। इस पूरे पहाड़ की चढ़ाई में हमें 2 घंटे का समय लगा। रात की शांति में पहाड़ी पर चढ़ाई करना वाकई एक अलग अनुभव रहा। कुछ ही मिनटों में ठंडी हवा भी चलने लगी थी।
ट्रैक की दूरी
ढाई बजे के बाद 2 किमी का ट्रैक हमने पूरा किया। ये पूरा पत्थरों से भरा रास्ता था। लेकिन इसमें ढलान के साथ पत्थर भी फैले थे। पहाड़ी की चोटी पर एक ऊंचा स्टोन पिलर भी था जोकि रात के लिए हमारा कैंपिंग ग्राउंड बना। यहां पहुंचकर आग जलाने के बाद सभी एकसाथ बैठ गए।
कैंपिंग
कुछ देर बातें करने के बाद मैं अपने स्लीपिंग बैग में सो गयी। रात के अंधेरे में चांद की रोशनी काफी कुछ कह रही थी। कुछ ही घंटों में पूरा नज़ारा बदल गया।पर्वत के स्टोन पिलर से पांडवपुर झील का मनोरम नज़ारा दिखाई देता है। इसे थोन्नुर झील के नाम से भी जाना जाता है। सूर्योदय के बाद ये जगह एक शांति स्थल के रूप में परिवर्तित हो गया। इसके कुछ देर बाद हमने नीचे उतरना शुरु किया।सुबह के समय पता चला कि पूरा रास्ता कितना खूबसूरत था। रात को चट्टान दिख रहे सुबह ग्रेनाइट के पत्थर नज़र आए। ये पत्थर और चट्टान अलग-अलग आकार के थे।
पहाड़ी की तलहटी में हमने एक मंदिर के भी दर्शन किए। पार्किंग के पास ही वहां एक छोटा सा रेस्टोरेंट भी था जहां हमने ब्रश किया कर नाश्ता किया।इसके बाद हम वापस बेंगलुरु की ओर रवाना हो गये।