दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता के साथ-साथ अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए भी काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। दक्षिण हिन्दू राजाओं का शासनक्षेत्र रहा है यह राज्य खूबसूरत प्राचीन मंदिरों का घर माना जाता है। ये मंदिर न अपने दैवीय महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं बल्कि इन मंदिरों का सरंचना और उत्कृष्ट वास्तुकला बहुत हद तक देश-विदेश से आए सैलानियों को प्रभावित करती हैं।
दक्षिण भारत के अधिकतर मंदिरों का निर्माण चोल, पल्लव, पांड्य आदि शक्तिशाली राजाओं के शासन काल का दौरान किया गया था जिनसे कुछ न कुछ महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। आज ऐसे ही एक अद्भुत मंदिर के विषय में हम आपको बताने जा रहे हैं जिसका इतिहास पौराणिक काल से जुड़ है। जानिए पर्यटन के लिहाज से यह मंदिर आपके लिए कितना खास है।
भगवान शिव का अगस्तेश्वर मंदिर
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तमिलनाडु के नागपट्टनम जिले में स्थित यह मंदिर देवों के देव महादेव को समर्पित है। यहां के प्रमुख देवता का विवरण 7वीं शताब्दी में तमिल शैव काव्यों में भी मिलता है, जिन्हें नायानारों ने लिखा था। नायानार भगवान शिव में मानने वाले 63 संतों का एक बड़ा समुह था जो अकसर अपनी स्तुतियों महादेव का गुणगान करते। इस भव्य मंदिर को स्थानीय भाषा में आगास्थियार कोविल ने नाम से संबोधित किया जाता है। इस मंदिर में आपको मध्ययुगीन चोल और पांड्य काल के बाद के कई शिलालेख देखने को मिलेंगे हैं।
मंदिर में छह दैनिक अनुष्ठान होते हैं और साल भर में तीन भव्य त्यौहारों का का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर में कई और भी कई मंदिर मौजूद हैं जिनमें अगस्तेश्वर और उनकी पत्नी पाकमपिरियाल नायागी सबसे प्रमुख हैं। यहां के वार्षिक ब्रह्मोत्सव में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु गण यहां तक का सफर तय करते हैं।
पौराणिक कथाएं
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भगवान शिव का यह मंदिर नागपट्टनम जिले के अगस्थियांपल्ली नगर में स्थित है, इस शहर का नाम भी मंदिर के प्रमुख देवता अगस्तेश्वर के नाम पर ही पड़ा है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसने इस मंदिर की महत्वपूर्ण पौराणिक किवदंती जुड़ी हुई है। किवदंती के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के समय सभी देव कैलाश पर्वत पर पधारे थे, सभी देवों के एकसाथ इकट्टा होने से पृथ्वी उत्तर की तरफ झुक गई थी, तब भगवान शिव ने संत आगास्थियार को दक्षिण की तरफ जाने को कहा था।
माना जाता है कि भगवान अपने विवाह रूप में इस स्थान पर अवतरित हुए थे। मानाा जाता है इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी मुराद अवश्य पूरी होती है। इसलिए यहां भक्तों का आना जाना लगा रहता है।
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एक संक्षिप्त इतिहास
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अगस्तेश्वर मंदिर से प्राप्त शिलालेखों से अगस्थियांपल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों का इतिहास साफ पता चलता है। ये शिलालेख चोल शासक राजाराजा, राजेंद्र चोल, कुलोथुंगा द्वारा दिए गए विभिन्न अनुदानों के बारे में बताते हैं। अगस्थियांपल्ली चोल साम्राज्य के अंतर्गत शैववाद का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा।
13 वीं शताब्दी में राजेंद्र चोल द्वितीय के शासनकाल के दौरान चोलों के पतन के बाद, पूर्व चोल क्षेत्र पांड्य और होयसाला राजवंशों के बीच सत्ता संघर्ष का क्षेत्र बन गया। मंदिर का शाही संरक्षण नायक राजाओं के शासनकाल के दौरान भी जारी रहा। मंदिर के शिलालेखों से कुछ ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि चोल राजा कुलसेकरन मंदिर में पूजा आनुष्ठानों के द्वारा अपनी बीमारियों को ठीक किया करता था।
मंदिर की संरचना और वास्तुकला
अगस्तेश्वर मंदिर परिसर में तीन प्रकरम (प्रांगण) और तीन-तिहाई राजगोपुरम हैं। भगवान शिव की प्रतिमा केंद्रीय मंदिर में शिवलिंग के रूप में स्थित है। यह शिवलिंग ग्रेनाइट का बना है। शिवलिंग वाले मंदिर का मुख पूर्व की और है जबकि माता पार्वती के मंदिर का मुख पश्चिम की ओर है। इसके अलावा यहां गणेश, मुरुगन, नंदी और नवग्रह की मूर्तियां भी स्थापित हैं, ये प्रतिमाएं भी ग्रेनाइट की बनी हुई हैं। इसके अलावा यहां संत आगास्थियार को समर्पित भी एक मंदिर मौजूद है। मंदिर की मूर्तियों को बनाने में ज्यादा ग्रेनाइट के पत्थर का इस्तेमाल ज्यादा किया गया है।
मंदिर की दीवारों और छतों को खूबसूरत चित्रकारी और नक्काशी से सजाया गया है। मंदिर का प्रवेश द्वार देखने लायक है। यह मंदिर पौराणिक महत्व के लिए ज्यादा जाना जाता है। अपने परिवार के साथ आप भगवान शिव के इस भव्य मंदिर के दर्शन के लिए आ सकते हैं।
कैसे करें प्रवेश
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यह पौराणिक मंदिर तमिलनाडु के नागपट्टनम जिले में स्थित है, जहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। आप यहां तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं, यहां का नजदीकी हवाईअड्डा तिरुचिरापल्ली एयरपोर्ट है । रेल मार्ग के लिए आप नागपट्टनम रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
इसके अलावा आप यहां सड़क मार्ग से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों से नागपट्टनम दक्षिण भारत के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
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