जन्माष्टमी का दिन श्रीकृष्ण भक्तों के लिए बड़ा ही खूबसूरत दिन होता है। इस दिन को कान्हा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। हिंदु धर्म के इस खास पर्व पर कृष्ण की जन्मभूमि कहे जाने वाली मथुरा तो मानिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है। यहां बांके बिहारी का कई प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन यहां का बांके बिहारी मंदिर सबसे प्रसिद्ध माना जाता है।
कहा जाता है वृंदावन की हर गलियों में प्रभु ने लीलाएं की थी, इसीलिए बांके बिहारी के इस धाम में आने के लिए जन्माष्टमी से बेहतर और कोई दिन हो ही नहीं सकता। यहां जब आप इस दिन आएंगे ना तो आपको बस चारों ओर जय श्री कृष्णा और राधे राधे के जयकारे सुनाई देंगे, जिससे यहां का माहौल भी काफी भक्तिमय हो जाता है। कन्हैया की इस पावन धरती पर आज भी माएं अपने बच्चों को कान्हा कहा करती हैं।
साल में एक दिन होती है मंगला आरती
अमूमन आप सभी देखते होंगे कि मंदिरों में मंगला आरती करीब-करीब हर रोज ही होती है। लेकिन वृंदावन के इस बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती साल में सिर्फ एक ही दिन की जाती है और वो भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वाले दिन। इस दिन कान्हा के दर्शन के लिए मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ता है। यकीन मानिए कान्हा के इस दिन वाले अद्भुत छटा को आप कभी भूल नहीं पाएंगे।
बांके बिहारी मंदिर का निर्माण
बांके बिहारी मंदिर का निर्माण साल 1864 में स्वामी हरिदास के द्वारा करवाया गया था। स्वामी हरिदास को तानसेन का गुरु माना जाता है। मंदिर को लेकर कहा जाता है कि स्वामी हरिदास के वंशजों के सामूहिक प्रयास से साल 1921 में मंदिर निर्माण को अंतिम रूप दिया गया। मंदिर को लेकर लोगों की मान्यता है कि मंदिर की पावन भूमि पर पैर रखते ही सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। अब भला ऐसे पवित्र दैवीय स्थान पर कौन नहीं आना चाहेगा।
स्वयं उत्पन्न हुई बांके बिहारी की प्रतिमा
बांके बिहारी मंदिर कान्हा की काले रंग की मूर्ति है, जिसे किसी ने बनाया नहीं है। ये मूर्ति स्वयं उत्पन्न हुई है। इस मूर्ति में कन्हैया और राधा रानी दोनों की छवि दिखाई देती है। इसीलिए मूर्ति का श्रृंगार भी आधा महिला व आधा पुरुष का किया जाता है। कहा जाता है कि स्वामी हरिदास की भक्ति से प्रसन्न होकर कान्हा खुद निधिवन में प्रकट हुए थें। वृंदावन के लोगों का कहना है कि निधिवन में आज भी कन्हैया राधा रानी और अपनी सखाओं के साथ रास करते हैं।
काफी चमत्कारी है मूर्ति
बांके बिहारी मंदिर में स्थित लल्ला की मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि उनकी मूर्ति को एक टक को भी देख लेता है वो उन्हीं का होकर रह जाता है। इसीलिए हर दो मिनट में मूर्ति के सामने गर्भ गृह के बाहर पर्दा डाल दिया जाता है ताकि कोई भी भक्त उन्हें लगातार ना देख पाए।
कैसे पहुंचें बांके बिहारी मंदिर
बांके बिहारी मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट आगरा व दिल्ली में है, जो यहां से क्रमश: 46 व 136 किमी. की दूरी पर स्थित है। मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन व मथुरा कैंट है। इसके अलावा मथुरा शहर देश के विभिन्न राजमार्गों से जुड़ा है। और तो और यहां के लिए काफी शहरों से बस की सुविधाएं भी आसानी से मिल जाती है।