हिमाचल प्रदेश सिर्फ अपनी खूबसूरत वादियों और बर्फ से ढके पहाड़ों की वजह से पर्यटकों के बीच नहीं जाना जाता, बल्कि यहां के मंदिर भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जी हां, हिमाचल में कई ऐसे खूबसूरत मंदिर है, जो प्राचीन काल से यहां स्थापित है।
इसी क्रम में आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं,जिसका निर्माण महाभारत काल में पांडवों द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस मंदिर का नाम है, बाथू की लड़ी, इस मंदिर की खास बात यह है कि, साल के आठ महीने पानी में डूबा रहता है और सिर्फ चार महीने ही नजर आता है।
हिमाचल प्रदेश के अंजान, प्रकृति की गोद में बसे गाँव!
कहां है यह मंदिर?
पानी में डूबा है बाथू की लड़ी
यह मंदिर 1970 में पोंग बाँध निर्माण के कारण बने जलाशय महाराणा प्रताप सागर में आठ महीने तक जलमग्न रहता हैं। मंदिर-समूह तक केवल मई-जून में ही पहुँच सकते हैं, जब जल-स्तर घटता है।
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मंदिर का नाम बाथू कैसे पड़ा?
इस मंदिर की इमारत में लगे पत्थर को बाथू का पत्थर कहा जाता है। बाथू नाम से बनी है और इसी मंदिर की अन्य आठ मंदिर भी है, जिसे दूर से देखने पर एक माला में पिरोया हुआ प्रतीत होता है इसीलिए इस खूबसूरत मंदिर को बाथू की लड़ी (माला) कहा जाता है।
5000 साल है पुराना
पांडवों ने यहीं बनाई थी स्वर्ग जाने की सीढ़ियाँ
बताया जाता है कि,महाभारत काल के इस मंदिर में स्वर्ग की उस सीढी पांडवों ने तैयार की थी। दरअसल अज्ञातवास पर निकले पांडवों ने यहां पहुंचकर पहले शिव मंदिर यानी बाथू की लड़ी का निर्माण किया फिर यहीं उन्होंने स्वर्ग में जाने के लिए सीढ़ी बनाने का फैसला किया।Pc:sunny
भगवान कृष्ण 6 महीने की एक रात बना दी थी
स्वर्ग के लिए सीढ़ियाँ बनाना कोई मुमकिन काम नहीं था, जिसके बाद उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से गुहार लगाई और और कृष्ण ने छ महीने की एक रात कर दी। लेकिन छ महीने की रात में स्वर्ग की सीढ़ियाँ बनकर तैयार ना हो स्की, आज भी इस मंदिर में स्वर्ग की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ नजर आती है, जिसे लोग आस्था के साथ पूजते हैं।Pc:sunny
कई साल तक पानी में डूबा रहा
बताया जाता है कि , यह मंदिर कई सालों तक पानी में डूबा रहा था, लेकिन इस मंदिर की इमारत आज भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है।
पानी में डूबने के बाद पिलर ही आता है नजर
जब मंदिर आठ महीने तक अपनी में जलमग्न रहता है, तो उस दौरान इस मंदिर का उपरी हिस्सा ही दिखाई देता है। इस मंदिर में कुल 6 मंदिर है, जिसमे पांच छोटे मंदिर है, जोकि एक पंक्ति में निर्मित है, इन मन्दिरों में शेष नाग ,विष्णु भगवान की मूर्तियाँ स्थापित है। और बीच एक मुख्य मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।
मंदिर के अंदर
आठ महीने तक जलमग्न रहने वाले मंदिर बाथू की लड़ी के अंदर एक पवित्र शिवलिंग हैऔर साथ देवी काली और और भगवान गणेश की भी तस्वीर बनी हुई है।
शिव की मूर्ति को छुए बिना अस्त नहीं सूरज
जी हां, इसका रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं लगा सके हैं, लेकिन इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है, सूर्य के अस्त होने से पहले सूर्य की किरणें बाथू मंदिर में विराजमान महादेव के चरण छूती हैं।
शिवरात्रि पर उमड़ता है हुजूम
मंदिर के आसपास प्राकृतिक आइलैंड
इस मंदिर के आसपास कुछ छोटे छोटे टापू बने हुए हैं, जिन्हें रेनसर के नाम से जाना जाता है, इसमें रेनसर के फारेस्ट विभाग के कुछ रिजोर्ट्स है, जहां पर्यटकों के रुकने और रहने की उचित व्यवस्था है।
बेहद मनमोहक नजारा
मंदिर का आसपास का नजारा बेहद मनोरम है,जिसकी ओर कोई भी आकर्षित हो जाये..चारो तरफ पानी और बीच मन्दिरों का समूह बेहद ही खूबसूरत नजर आता है।
प्रवासी पक्षियों को निहारे
को अपनी ओर आकर्षित करता है, यहां आप मंदिर देखने के बाद कई रंग बिरंगे पक्षी" loading="lazy" width="100" height="56" />प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है, यहां आप मंदिर देखने के बाद कई रंग बिरंगे पक्षी
कब आये इस मंदिर को देखने
इस मंदिर को देखने का उचित समय मार्च से जून ही सबसे उत्तम है।
कैसे आयें
इस मंदिर तक पहुँचने का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है, गग्गल हवाई अड्डे से इस मंदिर की दूरी की दूरी डेढ़ घंटे की है। पर्यटक रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से ज्वाली पहुंच सकते हैं, जहां से इस मंदिर की दूरी 37 किमी की है।
ज्वाली से बाथू की लड़ी
ज्वाली से बाथू की लड़ी पहुँचने के दो रास्ते हैं, एकब बिल्कुल सीधा रास्ता है, जिससे आप बाथू तक आधे घंटे में पहुंच जाएगा, और वहीं दूसरे रास्ते से आपको इस मंदिर तक पहुँचने में करीबन 40 मिनट का वक्त लगेगा।