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आखिर क्यों सर्दियों के महीने में जरूरी है ओड़िसा की यात्रा?

ओडिशा राज्य अपनी समृद्ध परंपरा एवं अपार प्राकृतिक संपदा से युक्त तथा पूर्व में उड़ीसा के नाम से रूप में जाना जाने वाला, ओडिशा, भारत का खजाना एवं भारत का सम्मान है। ओडिशा को प्य

By Goldi

ओडिशा शायद भारत के सबसे निम्न पर्यटक पर्यटन आकर्षण है। देश के कुछ अन्य स्थान भारत में धर्म और संस्कृति की एक अद्भुत झलक प्रदान करते हैं। ओडिशा राज्य भी उन्हीं में से एक है।अपनी समृद्ध परंपरा एवं अपार प्राकृतिक संपदा से युक्त तथा पूर्व में उड़ीसा के नाम से रूप में जाना जाने वाला, ओडिशा, भारत का खजाना एवं भारत का सम्मान है। ओडिशा को प्यार में 'भारत की आत्मा' कहा जाता है।

क्या आप वाकिफ है ओडिसा के प्रमुख पांच हिल स्टेशन से?क्या आप वाकिफ है ओडिसा के प्रमुख पांच हिल स्टेशन से?

ओड़िसा के हिल स्टेशन अन्य हिल स्टेशन की तरह बेहद खूबसूरत हैं, जहां आप सुकून और चैन की साँस ले सकते हैं। यहां का खाना, मंदिर, समुद्र आदि परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने के लिए एकदम परफेक्ट जगह है।

ओडिशा की यात्रा का सबसे अच्छा समय सर्दियों का है। सर्दियों में यहां का तापमान 10 डिग्री से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है ..अगर आप ओड़िसा आने का प्लान बना रहे हैं, तो हमारे लेख से जाने सर्दियों के दौरान ओड़िसा में घूमने के कुछ खास स्थान

कोणार्क

कोणार्क

ओड़िसा स्थित कोंर्क सूर्य मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है, जिसे लोग दूर दूर से देखने पहुंचते हैं। यहां हर साल कोणार्क नृत्य और संगीत उत्सव आयोजित किया जाता है। अगर आप कोणार्क की समृद्ध विरासत और संस्कृति को देखने के इच्छुक है, तो यह त्यौहार सबसे बेस्ट आप्शन है। इसके अलावा आप कोणार्क में समुद्री तटों और सफेद रेत पर भी घूम सकते हैं।PC:Bikashrd

भुवनेश्वर

भुवनेश्वर

ओडिशा में एक अन्य महत्वपूर्ण तीर्थयात्री स्थल भुवनेश्वर है,यह शहर महानदी के किनारे पर स्थित है और यहां कलिंगा के समय की कई भव्य इमारतें हैं। यह प्रचीन शहर अपने दामन में 3000 साल का समृद्ध इतिहास समेटे हुआ है। कहा जाता है कि एक समय भुवनेश्वर में 2000 से भी ज्यादा मंदिरें थीं। यही वजह है कि इसे भारत का मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। भुवनेश्वर पर्यटन के तहत आप प्रचीन समय में ओडिशा में मंदिर निर्माण की कला की झलक देख सकते हैं। भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क आपस में मिलकर स्वर्ण त्रिभुज का निर्माण करते हैं। भुवनेश्वर को लिंगराज यानी भगवान शिव का स्थान भी कहा जाता है। इसी जगह पर प्रचीन मंदिर निर्माण कला फला-फूला था। यहां आने वाले पर्यटक आज भी पत्थरों पर उकेरी गई डिजाइन को देख कर मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहते हैं।PC:J.prasad2012

पुरी

पुरी

पुरी ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 किमी दूर स्थित है। पुरी शहर को जगन्नाथ मंदिर के कारण जगन्नाथ पुरी के नाम से भी बुलाया जाता है जो इस शहर को इतना लोकप्रिय बनाता है। भारत में हिंदू तीर्थ यात्रा पुरी के दर्शन बिना अधूरी है। जगन्नाथ मंदिर भारत का एकमात्र मंदिर है जहां राधा, के साथ दुर्गा, लक्ष्मी, पार्वती, सती, और शक्ति सहित भगवान कृष्ण भी वास करते हैं। यह भगवान जगन्नाथ की पवित्र भूमि मानी जाती है और इसे पुराणों में पुरुषोत्तम पुरी, पुरुषोत्तम क्षेत्र, पुरुषोत्तम धाम, नीलाचल, नीलाद्रि, श्रीश्रेष्ठ और शंखश्रेष्ठ जैसे कई नाम दिया गया हैं।

पुरी के हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं, भगवान जगन्नाथ मंदिर के हस्तशिल्प सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।
PC:Abhishek Barua

चिल्का झील

चिल्का झील

चिल्का झील के लिए प्रसिद्ध है। इसे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी झील होने का गौरव हासिल है। चिल्का पर लैगून होने के कारण यह ओडिशा के लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक है। राजधानी भुवनेश्वर से 81कि.मी. दूर स्थित चिल्का जि़ला गंजम, खुर्द और पुरी की सीमा पर स्थित है। चिल्का झील के अलावा चिल्का पर्यटन अनेक पर्यटन गतिविधियाँ जैसे नौका विहार, फिशिंग तथा बर्ड वाचिंग और वन्यजीव स्थान देखने को मिलते हैं।PC: Krupasindhu Muduli

दरिंगबाड़ी

दरिंगबाड़ी

दरिंगबाड़ी अपने विशाल देवदार के जंगलों, कॉफी बागानों और सब्ज़ घाटियों के लिये भी प्रसिद्ध है, जिनकी वजह से इसे 'उड़ीसा का कश्मीर' कहा जाता है। यह गर्मियों के दौरान अपने कम तापमान के कारण एक रिसॉर्ट में बदल जाता है। सर्दियों के दौरान तापमान सेल्सियस नीचे 0° तक चला जाता है और कई क्षेत्रों को बर्फ ढक लेती है। दरिंगबाड़ी में घने वन और वन्य जीवों की आबादी है। ढेर सारे झरने हैं जो दूर दराज के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कुछ जगह तो ऐसी हैं, जहां आम जनता पहुंच भी नहीं पायी है।

धौली गिरि पहाड़ी

धौली गिरि पहाड़ी

धौली गिरि पहाड़ी दया नदी के किनारे स्थित है, जिसे बहुत कम लोग ही जानते हैं.. यहां चट्टान का एक राजाज्ञा है, जिसे मौर्य वंश के शासक अशोक ने बनवाया था। इस राजाज्ञा को तीसरी शताब्दी में लगाया गया था। सबसे खास बात यह है कि यह आज भी ज्यों की त्यों है। ऐसा माना जाता है कि धौली पहाड़ियों में कलिंगा की लड़ा लड़ी गई थी। यहां बौद्ध धर्म की निशानियां भी पाई गई हैं। पहाड़ी की चोटी पर सफेद रंग का चमकदार पगोड़ है, जिसे 1970 में बनवाया गया था। इस पगोड़ से यहां की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है।
PC:Thamizhpparithi Maari

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