महाराष्ट्र स्थित पुणे भारत का छठा और राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। आधुनिकता के मामले में यह शहर महाराष्ट्र में मुंबई के बाद गिना जाता है। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, आईटी-एजुकेशनल हब, आलिशान सोसाइटी, नाइट लाइफ यहां की मुख्य खासियतें हैं। इसके अलावा यह शहर प्राकृतिक और और ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी ज्यादा मायने रखता है। 8वीं शताब्दी के दौरान यह शहर को कभी पुन्नक नाम से संबोधित किया जाता था।
पुणे का सबसे प्राचीन संबंध 758 ईंसवी में राष्ट्रकूट राज से मिलता है। मध्यकाल से जुड़े स्थानों ( पातालेश्वर गुफा ) के साथ भी इस शहर का संबंध रहा है। इसके बाद इसका आधुनिक इतिहास कई राजवंशों के अधिन रहा जिसमें निजामशाही, आदिलशाही, मुगल शामिल थे। मराठा यहां के अंतिम राजवंश रहे, जिनकी छवी आज भी महाराष्ट्र में देखी जा सकती है।
इतने लंबे इतिहास से होकर गुजरा यह शहर वर्तमान में अपनी ऐतिहासिक विरासतों के लिए भी काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। पर्यटन के लिहाज से यह शहर एक आदर्श गंतव्य है। इस खास लेख में जानिए पुणे स्थित ऐतिहासिक भाजा गुफाओं के बारे में, जानिए यहां का भ्रमण आपके लिए क्यों हैं इतना खास।
ऐतिहासिक भाजा गुफाएं
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पुणे स्थित भाजा गुफाएं एतिहासिक भ्रमण के लिए काफी खास मानी जााती है। ये गुफाएं 22 रॉक-कट गुफाओं का एक बड़ा समूह हैं, जिसका संबंध दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का बताया जाता है। ये गुफाएं भाजा गांव से 400 फीट ऊपर एक प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जिसने कभी दक्कन पठार का क्षेत्र घेरा हुआ था।
अपनी अतीत से जुड़े महत्व के कारण यह स्थान भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षित है। इतहास से जुड़े साक्ष्य बताते हैं कि इस इन गुफाओं का संबंध बौद्ध के हिनायन पंथ से भी रहा है।
गुफा से जुड़े खास तथ्य
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बौद्ध धर्म से जुड़े स्तूफ और कई सारे साक्ष्यों को यहां देखा जा सकता है। इस गुफा का सबसे खास उत्खनन यहां मिलने वाला चैत्य रहा जो लकड़ी वास्तुकला के प्रारंभिक विकास का एक अद्बभुत उदाहरण माना जाता है। जिसमें एक घुमावदार घोड़े की नाल जैसी छत भी है। इसके अलावा यहां कई शिलालेख और मूर्तियां भी मिली हैं।
यहां के विहार में स्तंभित बरामदा मौजूद है जो देखने में काफी खूबसूरत है। यहां उकेरी गई सरंचनाएं लकड़ी वास्तुकला के गुणवत्ता वाले काम को दर्शाने का काम करती हैं। की वाद-यंत्रों को भी यहां उकेरा गया है।
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वास्तुकला में क्या है खास
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भाजा गुफाएं कार्ला गुफाओं के साथ अपनी वास्तुकला को साझा करने का काम करती है। इस गुफा की सबसे प्रभावशाली स्मारक बड़ा मंदिर चैत्यग्रहा है। घोड़े की नाल साथ इसका प्रवेश द्वार यहां का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है। इस प्रवेश द्वार से आप अंदर के स्तूफ को साफ देख सकते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार चैत्यग्रह इन गुफाओं का सबसे प्रमुख पहलू और सबसे प्राचीन है।
चैत्यग्रह को आप अगर बारीकी से देखें तो आपको यहां बुद्ध की छवियां नजर आएंगी। एक शतरंज शिलालेख दान देने वाले का नाम (महारानी कोसिकिपुता विह्नुदाता) दर्शाता है। यहां और भी कई मूर्तियां मौजूद हैं, जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
14 स्तूपों का एक समूह
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इस स्मारक का सबसे उल्लेखनीय हिस्सा 14 स्तूपों का एक बड़ा समूह है, पांच अंदरूनी और नौ बाहर, जिन्हें उत्खनन के द्वारा प्राप्त किया गया। ये स्तूप बौद्ध भिक्षुओं का निवासों के अवशेष हैं जो भाजा में ही अंत समय तक रहे। यहां तीन भिक्षुओं, अम्पीनिका, धामगिरी और संगदीना के नामों के साथ एक शिलालेख भी मौजूद है।
इनमें से एक स्तूफ स्टेविरना भद्राता को दर्शाता है जिसका अर्थ है सम्मानित या आदरनीय। ये स्तूप भिक्षुओं के पद के साथ उनके नामों को प्रदर्शित करते हैं। स्तूपों को बहुत ही विस्तृत रूप से नक्काशीदार बनाया गया है। इनमें से दो के ऊपरी हिस्से में अवशेष बॉक्स भी हैं।
कैसे करें प्रवेश
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भाजा गुफाएं महाराष्ट्र के पुणे जिले में लोनावाला के पास स्थित हैं। जहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा पुणे एयरपोर्ट है, रेल मार्ग के लिए आप मलावली या पुणे रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। पुणे बेहतर सड़क मार्गों से देश के बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
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