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अद्भुत : बलशाली भीम नहीं उठा पाए थे देवी की इस मूर्ति को

महाभारत काल का एक भीमेश्वरी देवी का अद्भुत मंदिर । A wonderful temple of Bhimeshwari Devi in the Mahabharata period.

वर्तमान की तुलना में भारत का पौराणिक इतिहास ज्यादा दिलचस्प रहा है। उस दौरान घटी घटनाएं भले ही कुछ लोगों के लिए मात्र मिथक हों, पर कहीं न कहीं ये बातें दिमाग पर जोर लगाने के लिए मजबूर जरूर करती है। आज भी भारत भूमि पर ढेरों स्थल मौजूद हैं जो अपने पौराणिक चमत्कार और अद्भुत कहानियों के लिए जाने जाते हैं।

आज इस विशेष खंड में हम बात एक ऐसे अद्भुत मंदिर की करेंगे जिसका इतिहास महाभारत की एक छुपी हुई घटना से है, जिसके बारे में शायद ज्यादा लोग नहीं जानते। वैसे तो देश में ढेरों ऐसे मंदिर हैं जिनका संबंध महाभारत काल से है लेकिन यह मंदिर कुछ अलग ही दास्तां बयां करता है। जानिए इस खास मंदिर के बारे में।

छोटी काशी का प्रसिद्ध मंदिर

छोटी काशी का प्रसिद्ध मंदिर

यह पौराणिक मंदिर छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बेरी में स्थित है, जिसे भीमेश्वरी देवी का मंदिर कहा जाता है। इस अद्भुत मंदिर का निर्माण महाभारत की पात्र धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने करवाया था। माता भीमेश्वरी देवी के इस भव्य मंदिर में साल (नवरात्रि के दौरान) में दो बार नौ दिवसीय मेलों का आयोजन करवाया जाता है। जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

महंत के अनुसार यह मंदिर माता भीमेश्वरी देवी का सबसे प्राचीन मंदिर है। जिसके दर्शन के लिए रोजाना कई श्रद्धालु अपनी ढेरों इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। आगे जानिए मंदिर से जुड़ी और भी कई दिलचस्प बातें।

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जुड़ी है पौराणिक कथा

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PC- Ranveig

मंदिर के निर्माण और देवी की स्थापना से एक दिलचस्प पौराणिक किस्सा जुड़ा हुआ है। माना जाता है जिस वक्त कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा जा रहा था, तो इसी बीच बलशाली भीम अपनी जीत के लिए कुलदेवी को लाने के लिए आज के पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज पहाड़ पर गए थे। देवी चलने के लिए तो राजी हो गईं..पर उन्होंने एक शर्त रखी थी कि अगर भीम देवी को अपने कंधे पर बैठाकर रणभूमि तक ले जाएंगे तभी वे उनके साथ जाएंगी।

अगर इस बीच भीम ने देवी को कंधे से उतारा तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगी। भीम को अपनी शक्ति पर गर्व था, उन्होंने देवी का यह प्रस्ताव मान लिया।

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भीम को उतारना पड़ा देवी को

भीम को उतारना पड़ा देवी को

इसमें कोई संदेह नहीं कि भीम अपनी ताकत के लिए जाने जाते हैं, लेकिन प्राकृतिक चीजों के सामने उन्हें झुकना पड़ा। माना जाता है कि भीम देवी को अपने कंधे पर बैठाकर आगे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन तभी उन्हें लघुशंका का आभास हुआ। उन्होंने देवी को एक पेड़ के नीचे उतार दिया और लघुशंका के लिए चले गए।

लेकिन जैसे ही वापस आकर उन्होंने देवी को उठाने की कोशिश की, तभी देवी ने भीम को अपनी शर्त स्मरण करवाई, और वे उसी जगह विराजमान हो गईं। भीम का अब ताकत लगाना व्यर्थ था। लघुशंका के कारण वो अपना दिया हुआ वचन भूल गए थे।

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 मंदिर का निर्माण

मंदिर का निर्माण

उस घटना के बाद देवी हमेशा के लिए इसी स्थान पर विराजमान हो गईं। माना जाता है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन की माता गांधारी ने यहां देवी के मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर की स्थापना के बाद से ही यहां नवरात्रि का भव्य आयोजन किया जाता है, साल में यहां दो बार मेले लगते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

यहां नवरात्रि के दौरान जन्में बच्चों का मुंडन कराने की परंपरा है। साथ ही माना जाता है कि सच्चे मन से भीमेश्वरी देवी से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है। इसलिए यहां रोजाना भक्तों की अच्छी-खासी भीड़ जमा होती है।

कैसे करें प्रवेश

कैसे करें प्रवेश

PC- Ramesh NG

भीमेश्वरी देवी का मंदिर हरियाणा के झज्जर जिले के अंतर्गत बेरी में स्थित है। जहां आप दिल्ली के रास्ते आसानी से पहुंच सकते हैं। दिल्ली से हर घंटे हरियाणा के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन बहादुरगढ़ है।

यहां का नजदीकी एयरपोर्ट दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है। दिल्ली से बेरी तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे अच्छा चुनाव है।

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