वैसे तो दक्षिण भारत में कई प्राचीन मंदिर है, लेकिन तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर है, जो प्राचीन वास्तुकला का एक नायाब नमूना है। करीब 1000 साल पहले बना यह मंदिर ग्रेनाइट का बना हुआ है। अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और मंदिर के बीचो-बीच बना विशालकाय गुम्बद लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण चोल वंश के शासक राजराज चोल प्रथम ने करवाया था। इसीलिए, इस मंदिर को राजराजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। 13 मंजिला बने इस मंदिर में भगवान शिव की उपासना की जाती है।
सिर्फ पत्थरों पर टिकी हुई है ये मंदिर
इस भव्य और विशाल मंदिर को बनाने में कोई सीमेंट, बालू, सरिया या फिर अन्य कोई वस्तु का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इस मंदिर की इमारत सिर्फ और सिर्फ पत्थरों पर टिकी हुई है। दरअसल, पत्थरों को पजल के तरीके से एक के ऊपर एक रखा गया है जो हजारों सालों बाद भी एकदम सीधा खड़ा है। खास बात यह है कि अब तक यह मंदिर 6 बड़े भूकम्पों का सामना भी कर चुका है।
1,30,000 टन ग्रेनाइट की पत्थरों से बनाया गया है यह अनोखा मंदिर
66 मीटर ऊंचाई वाले इस मंदिर को बनाने में करीब 1,30,000 टन ग्रेनाइट के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। कहा जाता है इन पत्थरों को लाने के लिए तीन हजार हाथियों का सहारा लिया गया था, जो अपने आप में आश्चर्य करने वाली है। पत्थरों की गढ़ाई करके इस मंदिर को इतना विशाल और सुंदर बनाया गया, इसी बात से अपनी पुरानी धरोहर और पुरानी कारीगरी का अंदाजा लगाया जा सकता है।
मंदिर के गुंबद का वजन 80 टन से भी अधिक
इस विशालकाय मंदिर में सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित कर देने वाला यहां का गुंबद है जो 80 टन से भी ज्यादा वजनी है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतने ज्यादा वजन का घुमत बिना लिफ्ट या बिना सीढ़ी के सहायता से कैसे ऊपर पहुंचा। ये आज भी एक रहस्य का विषय है। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि करीब 5 से 6 किलोमीटर लंबा एक रैंप बनाया गया था, जिसकी सहायता से इस गुम्बद को मंदिर के ऊपरी शिखर तक पहुंचाया गया।
महज 5 से 7 साल में बनकर तैयार हुआ यह मंदिर
इतने कम समय में बनकर तैयार होने वाला यह मंदिर अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इस मंदिर को बनाने में उस समय कितने मजदूरों को लगाया गया था या फिर किस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था, यह आज भी एक रहस्य बन कर रह गया है। इस मंदिर में करीब 12 फीट ऊंचा शिवलिंग है, जो बहुत ही भव्य है। मंदिर इस प्रकार से बनाया गया है कि शिखर पर लगा गुम्बद की परछाई नीचे जमीन पर नहीं पड़ती। इस मंदिर में एक विशालकाय नंदी की भी प्रतिमा है, जो 13 फीट लंबी है, जिसका वजन लगभग 20,000 किलो है। यह भारत में नंदी की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।
मंदिर में खुदाई के समय कुछ शिला प्राप्त किए गए थे, जिनमें मिले लेखों के मुताबिक सम्राट राजराज चोल प्रथम ने मंदिर को 2500 एकड़ जमीन दान की थी। इसके अलावा मंदिर परिसर को 4000 गाय, 7000 बकरियां, 30 भैंस भी दान किए गए है। साथ ही मंदिर परिसर की सुरक्षा हेतु करीब 200 कर्मचारी भी रखे गए थे।
कैसे पहुंचे बृहदेश्वर मंदिर
यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट तिरुचिरापल्ली है, जो मंदिर से लगभग 60 किमी की दूरी पर है। वहीं, यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन तंजावुर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर परिसर से करीब 2 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा यहां बस, टैक्सी या निजी वाहन से भी पहुंचा जा सकता है।