सांस्कृतिक दृष्टि से दक्षिण भारत का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है, तमिलनाडु, केरल कुछ ऐसे राज्य हैं जो अपनी समुद्री आबोहवा के साथ-साथ धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए पूरे विश्व भर में जाने जाते हैं। यहां बहुत से ऐसे मंदिर मौजूद हैं जिनका संबंध हजार साल पुराना भी है। इनके अलावा पौराणिक काल से संबंध रखने वाले भी बहुत से धार्मिक स्थल दक्षिण भारत में मौजूद हैं।
मध्यकालीन इतिहास पर गौर करें तो उस समय के दक्षिण हिन्दू राजाओं ने यहां कई भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। उत्तर भारत की तुलना में यहां के मंदिर काफी ऊंचे और नक्काशीदार हैं। यानी ये मंदिर सिर्फ धार्मिक पहलुओं के लिए ही महत्व नहीं रखते बल्कि वास्तु और शिल्पकला के लिए भी जाने जाते हैं।
विशेषकर तमिलनाडु और केरल में आपको शैव-वैष्णव दोनों प्रकार के मंदिर मिलेंगे। आज के इस खास लेख में जानिए तमिलनाडु स्थित एक खास शिव मंदिर के बार में जिसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है।
धेनुपुरेश्वर मंदिर - धार्मिक पहलू
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धेनुपुरेश्वर मंदिर देवो के देव महादेव को समर्पित दक्षिण भारत का एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर चेन्नई के तांबरम के पास मडंबक्कम में स्थित है। धेनुपुरेश्वरपुरेश्वर के नाम के पीछे एक दिलचस्प पौराणिक किवदंती जुड़ी है। माना जाता है कि भगवान धनेपुरेश्वर ने एक गाय (धेनु)को मोक्ष प्रदान किया था।
माना जाता है कि ऋषि कपिल का दूसरा जन्म गाय के रूप में हुआ था, क्योंकि उन्होंने भगवान शिव की पूजा अनुचित तरीके से की थी। शिवलिंग की पूजा के दौरान उन्होंने अपने बाएं हाथ का प्रयोग किया था। इस पाप के लिए उनका गाय के रूप में पुनर्जन्म हुआ। माना जाता है कि गाय के रूप में ऋषि कपिल ने जमीन के अंदर गढ़े शिवलिंग पर अपने दूध से अभिषेक कर कई दिनों तक शिव अराधना की। गाय के मालिक ने गाय को दूध नष्ट करने पर दंड भी दिया, पर गाय सब कुछ सहकर शिव भक्ति में लीन रही।
जिसके बाद भगवान शिव का आगमन हुआ और गाय को मोक्ष की प्राप्ति हुई। माना जाता है यहां के राजा को शिवलिंग के स्थान पर मंदिर बनाने का स्वन आया, जिसके बाद मंदिर बनाकर तैयार किया गया। भगवान धेनुपुरेश्वर की पत्नी यहां धेनुकंबल के नाम से विराजमान हैं। मंदिर के मुख्य भाग में भगवान धेनुपुरेश्वर स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।
ऐतिहासिक पहलू
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मंदिर बनाने के इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि यह मंदिर चोल राजाओं के शासनकाल के दौरान राजा राजा चोल प्रथम के पिता परंतक चोल द्वितीय ने करवाया था। परंतक चोल द्वितीय, जिन्होंने तंजावुर में प्रसिद्ध बृहदेदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर चेन्नई और आसपास बने बाकी चोल मंदिरों की तरह ही है। आकार में यह बाकी हिन्दू मंदिरों से थोड़ा अलग है।
माना जाता है कि इस मंदिर को कुलथुंगा चोल के शासनकाल के दौरान पत्थरों के साथ समाहित किया गया था। चोल शासनकाल के दौरान बनाई गईं नक्कशीदार स्तंभ और मूर्तियां यहां आज भी देखें जा सकते हैं। यहां विजयनगर साम्राज्य से संबंधित शिलालेख और मूर्तियां भी यहां संरक्षित हैं।
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पुरातात्विक विभाग द्वारा संरक्षित
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इतिहास से जुड़े होने के कारण यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अनुपालन में संरक्षित है। समय के साथ-साथ मंदिर के कई हिस्से क्षतिगस्त हो गए हैं जिनकी मरम्मत का काम पुरातत्व विभाग के अंतर्गत जारी है। सुधारों में सामने के मंडप और अम्मन देवी की मूर्ति और मंदिर की छत शामिल हैं।
इसके अलावा प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम 2010 के तहत मंदिर को राष्ट्रीय धहोहर घोषित किया जा चुका है। मंदिर अब एक राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण अधिसूचित साइट है जिस पर किसी भी प्रकार के निजी निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
सांस्कृतिक महत्व
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15 वीं शताब्दी के तमिल कवि अरुणगिरीनाथर की रचनाओं में धेनुपुरेश्वर मंदिर का जिक्र मिलता है। धेनुपुरेश्वर मंदिर हिन्दुओं का एक मुख्य धार्मिक स्थान है जहां समय समय पर भव्य आयोजन किए जाते हैं जिनमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
प्रसाद, पंगुनी उत्तराम और नवरात्रि यहां मनाए जाने वाले मुख्य त्योहार है। भक्त यहां अपने दूख-दर्द लेकर आते हैं। माना जाता है कि सच्चे मन से यहां भगवान शिव की पूजा करने से इंसान की तकलीफें दूर होती हैं।
कैसे करें प्रवेश
यह मंदिर चेन्नई के तांबरम के पास मडंबक्कम में स्थित है। आप यहां तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा चेन्नई एयरपोर्ट है। रेल मार्गे के लिए आप तांबरम रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं, बेहतर सड़क मार्गों से तांबाराम दक्षिण भारत के कई बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।