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जाने एक ट्रैवलर के लिए अपने दामन में क्या-क्या समेटे हुए हैं चाय का शहर-डिब्रूगढ़

By Goldi

जब बात भारत की चाय की होती है, तो सबसे पहले जुबां पर नाम आता है "असम की चाय" लेकिन क्या आप जानते हैं कि, असम स्थित डिब्रूगढ़ को भारत का 'चाय का शहर' भी कहा जाता है। शहर भर में कई चाय के बागान हैं, जो ब्रिटिश के समय से हैं। जी हां, डिब्रूगढ़ प्राकृतिक सौंदर्य, परंपरा और संस्कृति का एकदम सही मिश्रण है। डिब्रूगढ़ शहर अपने आप में एक सौंदर्य है, जिसके एक तरफ छल-छल करती हुई गिरती ब्रह्मपुत्र नदी तो दूसरी ओर शहर के किनारों पर हिमालय की शृंखलाएं नीचे की ओर जाती हुई दिखाई देती हैं। असम के सबसे शानदार शहरों में से एक होने के नाते, डिब्रूगढ़ पर्यटन में शांति, सुंदरता, इतिहास के रंग और अत्याधिक हरियाली की चाहत रखने वाले पर्यटकों के लिए कई चीजें हैं।

असम की अन्य जगहों की तरह इस खूबसूरत शहर में जबरदस्त एडवेंचर का मजा लिया जा सकता है, जैसे ट्रेकिंग, पर्वतारोहण और कैम्पिंग आदि। पर्यटक यहां ब्रह्मपुत्र के बेहिसाब प्रवाह का एक बड़ा हिस्सा देखता है। डिब्रूगढ़ इस अशांत नदी के प्रकोप से नहीं बच पाया और बार-बार इसने शहर के प्रमुख अंश को उजाड़ने वाली विनाशकारी बाढ़ को देखा है।

चाय के उत्पादन के अलावा यह शहर रेशम का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां आप कई रेशम केंद्रों की सैर कर सकते हैं। असम की यात्रा के दौरान डिब्रूगढ़ को एक बार अवश्य घूमना चाहिए। आइये जानते हैं डिब्रूगढ़ में घूमने की खास जगहों के बारे में

जोकाई बॉटनिकल गार्डन कम जर्मप्‍लाज्‍म केंद्र

जोकाई बॉटनिकल गार्डन कम जर्मप्‍लाज्‍म केंद्र

डिब्रूगढ़ से 12 किमी. दूरी पर स्थित जोकाई रिर्जव फारेस्‍ट विशेष रूप से प्रवासी पक्षियों के लिए जाना जाता है। यह मानकोट्टा खामटिघाट पर स्थित है। यह जर्मप्‍लाज्‍म का स्‍टेयरहाउस है जहां जीवित टिशु को रखा जाता है। यह केंद्र, विभिन्‍न क्षेत्रों में बंटा हुआ है जैसे - रेनफॉरेस्‍ट स्‍पेसीमेन प्‍लॉट, द आर्चिड हाउस, औषधीय पौधों का एक भाग, पानी का एक तालाब और कई अन्‍य भाग। इस वनस्पति उद्यान क्षेत्र की वनस्पतियां और जीव यहां की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाती है। यहां आकर हाथी की सवारी का लुत्‍फ उठाया जा सकता है और प्राकृतिक नैसर्गिक सौंदर्य को निहारा जा सकता है। वॉटनिकल गार्डन में पूरे साल भर कई पर्यटक आकर्षित होते है।

दिहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य

दिहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य

Pc: পৰশমণি বড়া
करीबन 111.1 9 किमी के क्षेत्र में फैले, दिहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्यअसम घाटी उष्णकटिबंधीय गीले सदाबहार वनों के लिए प्रसिद्ध है। अभयारण्य दिहिंग-पटकाई हाथी रिजर्व का हिस्सा है, जोबाघ, तेंदुए, बादल तेंदुए, गोल्डन कैट, जंगल बिल्ली और मार्बल बिल्ली सहित जंगली बिल्ली की सात अलग-अलग प्रजातियों का घर है। इसके अलावा इस वन्यजीव अभयारण्य में कई प्रवासी पक्षियों को भी देखा जा सकता है, जिसमे सफेद-गाल वाले हिल पार्ट्रिज, ग्रेट पाइड हॉर्नबिल, व्हाइट विंगड वुड डक, लेसर एडजुटेंट स्टोर्क, व्हाइट बैकड गिल्चर, स्लेन्डर-बिल गिद्ध, ग्रीन इंपीरियल कबूतर इत्यादि जैसे दुर्लभ पक्षी शामिल हैं।

डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान

डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान

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लगभग 11.19 वर्ग क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य असम घाटी के डिब्रूगढ़ तथा तिनसुकिया जिलों के मध्य स्थित उष्णकटिबंधीय नम सदाबहार जंगलों में से एक है। यहां पाये जाने वाले कुछ स्तनधारियों में चीनी वज्रदेही , स्टंप मकाक, हिमालयी काला हिरन और मलायी विशालकाय गिलहरी शामिल हैं। यहां छोटा चमरघेंघ, सफेद पंखों वाली बतख, सफेद कपोलों वाला पहाड़ी तीतर, खलीज तीतर, ग्रे मोर,रूफुस गर्दन वाला हार्नबिल समेत पक्षियों की कई अन्य प्रजातियां भी पाई जाती हैं।

लीकाई चेटिया मैडाम

लीकाई चेटिया मैडाम

लीकाई चेटिया मैडाम एक थान या धार्मिक केंद्र है जो एक अहोम अधिकारी लीकाई चेटिया को समर्पित एक धार्मिक केंद्र है। लीकाई चेटिया, स्‍वर्गदेव प्रतापसिंह के अधीन काम करते थे। बडा मैडाम, सेस्‍सा पर मनकोटा सड़क के नजदीक स्थित है। लीकाई चेटिया मैडाम को थान के नाम से भी जाना जाता है क्‍योंकि इसे एक धार्मिक संस्‍था के रूप में जाना जाता है। इस धार्मिक संस्‍था के परिसर के भीतर, एक स्‍थल है जिसे लेकाई के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में लेकाई, दिब्रुगढ़ के रिर्जव स्‍पोर्ट स्‍थलों में ही नहीं बल्कि असम के पूरे राज्‍य में गिनी जाती है। यहां ही सैर के लिए, स्‍थानीय लोग और पर्यटक,अक्‍सर आते रहते है।

कोली आई थान

कोली आई थान

कोली आई थान असमिया लोगों के बीच अत्‍याधिक प्रतिष्ठित है और, जबकि परिसर में भौतिक रूप से कोई मंदिर या मूर्ति नहीं है, फिर भी यह डिब्रूगढ़ में सबसे ज्‍यादा लोगों के आने वाली जगहों में से एक है। कोली आई थान का अहोम साम्राज्य की सबसे पुराने 'थानों' में शुमार है। कोली आई थान डिब्रू सतरा के मुख्य पुजारी की बेटी कोई आई के लिये समर्पित है। चूंकि डिबरू सतरा की विरासत को आगे ले जाने के लिए कोई भी पुरुष वारिस नहीं था, इसलिये कोली आई ने अपनी भक्ति और समर्पण से सतरा की पैतृक सम्पत्ति को जिंदा रखा। यह प्रचलित धारणा है कि कोली आई के पास दिव्‍य शक्तियां थीं और यही कारण है कि एक पावन दिन वह इस स्‍थान से गायब हो गईं। फिर भी हर साल भारी संख्‍या में लोग 'आई' को सम्मान देने के लिये थान जाते हैं। कोली आई थान पर असम के धार्मिक इतिहास का गहरा प्रभाव पड़ता है।

रोमांच से है प्यार तो जरुर जायें असमरोमांच से है प्यार तो जरुर जायें असम

कैसे आयें डिब्रूगढ़

कैसे आयें डिब्रूगढ़

हवाई जहाज द्वारा
डिब्रूगढ़ का अपना एक हवाई अड्डा है, जोकि मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से विभिन्न उड़ानों को समायोजित करता है। हवाई अड्डे से टैक्सी सेवा का लाभ उठाकर कोई वांछित गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है।

ट्रेन द्वारा
डिब्रूगढ़ का अपना रेलवे स्टेशन है, जो अन्य राज्यों से भली-भांति जुड़ा हुआ है। पर्यटक रेलवे स्टेशन से टैक्सी सेवा का लाभ उठाकर डिब्रूगढ़ की सैर कर सकते हैं।

सड़क द्वारा
सड़क के रस्ते डिब्रूगढ़ आसानी से पहुंचा जा सकता है, डिब्रूगढ़ के लिए पर्यटक गुवाहटी, इटानगर आदि जगह से बसें आदि ले सकते हैं।

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