दिवाली महोत्सव "रोशनी का त्योहार" के नाम से जाना जाता है। दिल्ली में दिवाली प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है, यह लगभग भारत के हर शहर में मनाया जाता है। दिवाली के दिन दीये जलने की खुशी को एक व्यक्ति के खुशियों का महत्व माना जाता है।
दीपक के प्रकाश को भी जीवन में स्वास्थ्य, ज्ञान , समृद्धि और शांति का प्रतिक माना जाता है। दिवाली के मौके पर लोग पहनने के लिए नए कपड़े खरीदते हैं और धनतेरस के दिन परंपरागत रूप से एक रसोई बर्तन खरीदी जाती है।
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दिवाली के पीछे की कहानी
यह कहा जाता है कि जब राम, लक्ष्मण और सीता अपने 14 साल के वनवास पर थे तब रावण नाम का दानव सीता जी का अपहरण करके ले गया था। राम ने रावण को हराकर सीता को वापस लाया और एक बार फिर बुराई पर अच्छाइ की जीत हुई। इस दौरान इनलोगों का वनवास भी समाप्त हो गया और वापस अयोध्या लौट गए। इन तीनों के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दिवाली का त्योहार मनाया जाता है।
दिवाली त्योहार के उत्सव का समय:
दिल्ली में दीवाली का त्योहार दशहरा के त्योहार के साथ शुरू होता है। दिल्ली में दिवाली महोत्सव अक्टूबर-नवंबर के महीने के आस-पास पड़ता है।
दिवाली त्योहार का मुख्य घटनाक्रम कुछ इस प्रकार हैं:
दिन 1 - धनतेरस
दिन 2 - छोटी दिवाली , रूप चतुर्दशी
दिन 3 - लक्ष्मी पूजन
दिन 4 - गोवर्धन पूजा
दिन 5 - भाई दूज
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पटाखों का उत्साह
इस दिन सबसे ज्यादा खुश बच्चे होते हैं। पटाखों की आवाज से पूरा शहर आनंदमय हो जाता है। बच्चे पटाखों को लेकर बहुत ही उत्साहित होते हैं।
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दिवाली मनाने का मुख्य उद्देश्य
रस्म और विधि क्षेत्रों के हिसाब से बदलती है। हालांकि दिवाली विशेष रूप से लक्ष्मी जी और गणेश जी के आशीर्वाद के लिए मनाया जाता है जो एक धन और समृद्धि की देवी हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन देवी देवता लोगों की बाधाओं का हरण करते हैं और उनके जीवन में खुशियां लाते हैं। दिवाली आने से कुछ दिन पहले से ही लोग अपने घरों और दुकानों की साफ-सफाई शुरू कर देते हैं। दिल्ली में दिवाली के दिन लोग एक दूसरे के घर जाते हैं, मिठाईयां खाते हैं और अच्छे-अच्छे तोहफे भी देते हैं।
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