आज अपने 300 साल पुराने प्राचीन शास्त्रीय नृत्य कथकली के कारण केरल दुनिया भर में जाना जाता है। कथकली नृत्य केरल के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैली है जिसने हमेशा से ही देश विदेश के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया है। बात अगर कथकली के शाब्दिक अर्थ कि हो तो आपको बता दें कि कथकलीका मतलब होता है " एक प्राचीन कथा को नाटक द्वारा मंचित करना।" यह रंगकला नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप है। कर्नाटक के वो "फ़ूड आइटम " जो बयां करते हैं एक ख़ास दास्तां
ज्ञात हो कि रंगीन वेशभूषा पहने कलाकार गायकों द्वारा गाये जानेवाले कथा संदर्भों का हस्तमुद्राओं एवं नृत्य-नाट्यों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं । इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलता है और न ही गीत गाता है । कथकली के साहित्यिक रूप को 'आट्टक्कथा' कहते हैं। कथा का विषय भारतीय पुराणों और इतिहासों से लिया जाता है। गौरतलब है कि कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है। कथा चरित्र को आधार बनाकर कथापात्रों को भिन्न-भिन्न प्रतिरूपों में बाँटा गया है। प्रत्येक प्रतिरूप की अपनी वेश-भूषा और साज श्रृंगार होता है। इस वेश-भूषा के आधार पर पात्रों को पहचानना पड़ता है। वेश - भूषा और साज - श्रृंगार रंगीन तथा आकर्षक होते हैं। तो आइये अब देर किस बात की देखिये इस प्राचीनतम नृत्य शैली को तस्वीरों में।
कथकली नृत्य क्यों है ख़ास
आप इस तस्वीर के माध्यम से देख सकते हैं कि कैसे दो कलाकार नृत्य कर रहे हैं।
कथकली नृत्य
आज कथकली का शुमार नृत्य के सबसे जटिलतम रूपों में होता है।
चेहरे के हाव भाव
इस नृत्य में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का चेहरे का हाव भाव होता है।
अलग अलग कहानियां
कथकली में एक मंच पर नृत्य के माध्यम से अलग अलग कहानियों को मंचित किया जाता है।
प्राचीन मृदंग
आज भी नृत्य के लिए प्राचीन मृदंग और पुराने यंत्रों का इस्तेमल किया जाता है।
समूह में नृत्य करते लोग
इस नृत्य की ख़ास बात ये है कि इसे समूह में किया जाता है।
जटिल नृत्य
कथकली जटिल नृत्य है जिसके लिए काफी अभ्यास की आवश्यकता होती है।
कथकली नृत्य
जनता के सामने अपना नृत्य प्रस्तुत करता एक कलाकार।
लघु कहानियां
कथकली के मंच पर आप एक साथ कई प्राचीन पौराणिक कहानियों को देख सकते हैं।
केरल की पहचान
आज अपने 300 साल पुराने प्राचीन शास्त्रीय नृत्य कथकली के कारण केरल दुनिया भर में जाना जाता है।
कथकली नृत्य
कथकली नृत्य केरल के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैली है जिसने हमेशा से ही देश विदेश के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया है।
केरल का डांस कथकली
कथकली का मतलब होता है एक प्राचीन कथा को नाटक द्वारा मंचित करना।
नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप
यह रंगकला नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप है।
महिला पुरुष की बराबरी
इस नृत्य की सबसे बड़ी खास बात ये है कि इस नृत्य में जितना महत्त्वपूर्ण रोल पुरुष का होता है उतना ही महिला का होता है।
प्राचीन वाध्य यंत्र
इस नृत्य का मुख्य आकर्षण प्राचीन वाध्य यंत्र खोते हैं।
मेकअप
कथकली के मेकअप में कोई 5 से 8 घंटे का समय लगता है।
भारतीय अभिनय कला
भारतीय अभिनय कला की नृत्य नामक रंगकला के अंतर्गत कथकली की गणना होती है।
मुश्किल अभ्यास
बताया जाता है कि एक स्टेज परफॉरमेंस के लिए व्यक्ति कई महीनों तक अभ्यास करते हैं।
मंदिर में होता है अभ्यास
इस नृत्य की ख़ास बात ये है कि इसका ज्यादातर अभ्यास मंदिर परिसर में ही किया जाता है।
अद्भुत नृत्य
कथकली को देखना अपने आप में अद्भुत होता है ।
समूह में नृत्य
इस तस्वीर में आप देख सकते हैं दो कलाकारों द्वारा समूह में नृत्य किया जा रहा है।
न संवाद न गीत
इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलता है और न ही गीत गाता है।
साहित्यिक महत्त्व
कथकली के साहित्यिक रूप को 'आट्टक्कथा' कहते हैं ।
अभ्यास
इस नृत्य शैली में व्यक्ति तभी पारंगत हो सकता है जब वो बार बार अभ्यास करे।
नृत्य नहीं तपस्या
इस नृत्य शैली से जुड़े कलाकारों कि मानें तो ये नृत्य किसी तपस्या से कम नहीं है।
गायक गण वाद्यों का वादन
गायक गण वाद्यों के वादन के साथ आट्टक्कथाएँ गाते हैं ।
विषय वास्तु
कथा का विषय भारतीय पुराणों और इतिहासों से लिया जाता है।
वेशभूषा
गौरतलब है कि कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है।
वेशभूषा
गौरतलब है कि कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है ।
वेशभूषा
गौरतलब है कि कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है।
वेश-भूषा और साज श्रृंगार
कथा चरित्र को आधार बनाकर कथापात्रों को भिन्न-भिन्न प्रतिरूपों में बाँटा गया है । प्रत्येक प्रतिरूप की अपनी वेश-भूषा और साज श्रृंगार होता है ।
पात्र की पहचान
इस वेश-भूषा के आधार पर पात्रों को पहचानना पड़ता है।
पात्र की पहचान
इस वेश-भूषा के आधार पर पात्रों को पहचानना पड़ता है।
रंगवेदी या कलियरंगु
कथकली का रंगमंच ज़मीन से ऊपर उठा हुआ एक चौकोर तख्त होता है । इसे 'रंगवेदी' या 'कलियरंगु' कहते हैं ।
विषय वास्तु
हम बता चुके हैं कि कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है ।
मेकअप
आप इस तस्वीर के माध्यम से देख सकते हैं कि कथकली का मेकअप भी आसान नहीं है।
समूह में गान
आप इस तस्वीर में देख सकते हैं कि सभी कलाकार समूह में बैठे हुए हैं।
कथकली की प्रस्तुति
कथकली की प्रस्तुति रात में होने के कारण प्रकाश के लिए भद्रदीप (आट्टविळक्कु) जलाया जाता है। कथकली के प्रारंभ में कतिपय आचार - अनुष्ठान किये जाते हैं ।
क्या होता है कथकली में
मंजुतर के पश्चात् नाट्य प्रस्तुति होती है और पद्य पढकर कथा का अभिनय किया जाता है।
क्या होता है कथकली में
धनाशि नाम के अनुष्ठान के साथ कथकली का समापन होता है।
इतिहास
कथकली का प्रादुर्भाव 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था।
इतिहास
विद्वानों का मत है कि कोट्टारक्करा तंपुरान द्वारा रचे गये 'रामनाट्टम' का विकसित रूप ही कथकली है।
इतिहास
यह विश्वास किया जाता है कि कोट्टारक्करा राजा के द्वारा कथकली का जो बीजारोपण हुआ था।
कथकली का स्वरूप
कालान्तर में अनेक नाट्य कलाओं के संयोग और प्रभाव से कथकली का स्वरूप संवरता गया।
थोड़े बहुत बदलाव
समय के अनुसार कथकली की वेशभूषा, संगीत, वादन, अभिनय-रीति, अनुष्ठान आदि सभी क्षेत्र परिवर्तित हुए हैं।
हो रहा है विकास
राजमहलों तथा ब्राह्मणों के संरक्षण में कथा की नृत्य नाट्य कला विकास के सोपानों पर चढता रहा ।
कैसे होता है मेकअप
प्राकृतिक रंगों को पत्थर कि सिल पर पीसा जाता है।
कैसे होता है मेकअप
पुराने और कुशल लोगों द्वारा ही ये मेकअप किया जाता है।
कैसे होता है मेकअप
कड़ी मेहनत के बाद जो मेकअप होता है फिर वो देखते बनता है।
कला कैसे है जिन्दा
केरल के विभिन्न मंदिरों में कार्यरत कथकली संघ (कलियोगम),कथकली क्लब और सभी ने मिलकर कथकली को जीवंत रखा हुआ है।
अभिवादन
लोगों का अभिवादन स्वीकार्य करता कलाकार ।
नृत्य की मुद्रा
नृत्य की मुद्रा में एक कलाकार जनता को नृत्य दिखाते हुए।
खूबसूरत तस्वीर
कैमरे के खूबसूरत एंगल से ली गयी तस्वीर ।
मेकअप
मेकअप की मुद्रा में एक वरिष्ठ कलाकार।
अभ्यास
अपने नृत्य का अभ्यास करता हुआ कलाकार।
मेकअप
मेकअप की मुद्रा में एक अन्य वरिष्ठ कलाकार।
वेशभूषा
नृत्य से ज्यादा वेशभूषा आकर्षण का केंद्र रहती है।
अभ्यास
अपने चेहरे और हाव भाव का अभ्यास करता हुआ कलाकार।
प्राचीन नृत्य
कथकली का शुमार दुनिया के सबसे नृत्य रूपों में है।
प्राचीन नृत्य
कथकली का शुमार दुनिया के सबसे नृत्य रूपों में है।
कथकली में कलाओं का प्रभाव
कथकली में तैय्यम, तिरा, मुडियेट्टु, पडयणि इत्यादि केरलीय अनुष्ठान कलाओं तथा कूत्तु, कूडियाट्टम, कृष्णनाट्टम आदि शास्त्रीय (क्लासिक) कलाओं का प्रभाव भी देखा जा सकता है ।
मेकअप
समूह में एक दूसरे का मेकअप करते लोग।
मेकअप की सामग्री
आप तस्वीर में देख सकते हैं इन सामग्रियों से किया जाता है मेकअप ।
भाव भंगिमाएं
आप कथकली में एक मंच में कई सारी भाव भंगिमाएं देख सकते हैं।
पुराने ढोल
आप इस तस्वीर में देख सकते हैं कि नृत्य के लिए पुराने उपकरणों और वाध्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।
प्राचीन के साथ आधुनिक
आधुनिक काल में पश्चिमी कथाओं को भी विषय रूप में स्वीकृत किया गया है ।
सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला
कथकली मालाबार, कोचीन, और ट्रावनकोर के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है कथकली ।
मेकअप
कथकली में जितना महत्त्वपूर्ण नृत्य होता है उतना ही महत्त्वपूर्ण मेकअप भी होता है।
नृत्य और रंगमंच
कथकली को देखने के बाद कहा जा सकता है कि ये नृत्य और रंगमंच का स्वरुप है।
कठोर तपस्या
कथकली के कलाकारों के लिए ये नृत्य किसी साधना से कम नहीं है।
नृत्य की बारीकियां
अपने साथ कलाकार को नृत्य की बारीकियां सिखाता एक कलाकार।
चेहरे का मेकअप
बताया जाता है कि सिर्फ कथकली का मेकअप सीखने में ही व्यक्ति को कई साल लग जाते हैं।