भारत के पूर्वी छोर पर बसा ओडिशा ऐतिहासिक खजानों से भरा एक खूबसूरत राज्य है। इस राज्य का इतिहास काफी पुराना है, इतिहासकारों के अनुसार ओडिशा को ओडवंश के राजा ओड्र ने बसाया था। ओड्र वंश के लोगों का उल्लेख भारत समेत कई बाहरी साहित्यों में किया गया है। महाभारत में जहां इनका जिक्र पौन्द्र, कलिंग और मेकर के साथ किया गया वहीं मनु ने इसे पौन्द्रक, यवन, शक आदि से जोड़ कर बताया।
ऐतिहासिक दृष्टि से ओडिशा का जिक्र सबसे ज्यादा सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म के माध्यम से किया जाता है। जिस ऐतिहासिक लड़ाई के बाद अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ था वो वो रणभूमि 'कलिंग' उड़ीसा में ही है।
आज हमारे साथ जानिए भारत के खूबसूरत शहर ओडिशा के उन स्थानों के बारे में जो इस राज्य को एक ऐतिहासिक भूमि बनाने का काम करते हैं।
कलिंग युद्ध का क्षेत्र, धौली गिरि
PC- Debashis Pradhan
जानकारों की मानें तो सम्राट अशोक के जीवनकाल की सबसे बड़ी और अंतिम लड़ाई कलिंग धौली गिरि की पहाड़ियों के बीच लड़ी गई थी। जिसके बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। धौली गिरि एक पर्वतीय इलाका है जो राजधानी शहर भुवनेश्वर से लगभग 8 किमी की दूरी पर दया नदी के तट पर बसा है। यहां आप अशोक द्वारा बनावे गए बौद्ध शिलालेखों को भी देख सकते हैं। आप यहां धौली गिरि पर स्थित शांति स्तूप देख सकते हैं, जो यहां का मुख्य आकर्षण है।
माना जाता है कि कलिंग युद्ध के दौरान हुए कल्तेआम के कारण यहां बहने वाली दया नदी लाल हो गई थी। इन सभी भयावह दृश्यों के देख सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ था, जिसके बाद उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए थे।
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शिशुपालगढ़
PC- Subhashish Panigrahi
शिशुपालगढ़, ओडिशा स्थित एक और ऐतिहासिक स्थल है, जिसे कभी कलिंग की राजधानी का दर्जा प्राप्त था। हालांकि वर्तमान में यह स्थान अपने प्राचीन अवशेषों तक ही सीमित रह गया है। भारत के पुरातात्विक विभाग द्वारा इस क्षेत्र की खुदाई सन् 1949 में की गई थी। यह ऐतिहासिक स्थल भुवनेश्वर से लगभग डेढ़ मील के फासले पर स्थित है।
पुरातात्विक उत्खनन के दौरान यहां बहुत से प्राचीन अवशेष प्राप्त किए गए हैं, जिनमें दुर्ग के ध्वंसावशेष, हाथीदांत का मनका, इसके अलावा यहां से प्राचीन 31 सिक्के भी मिले हैं। इस स्थान से धौली गिरि लगभग तीन मील की दूरी पर स्थित है।
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चौसठ योगिनी मंदिर
PC- Soumendra Barik
चौसठ योगिनी मंदिर भुवनेश्वर से लगभग 20 किमी की दूरी पर हिरापुर कस्बे में स्थित है, जहां 64 देवियों की प्रतिमाएं मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण रानी हिरादेवी ने 9वीं शताब्दी के दौरान कराया था। यह मंदिर ईंटों और बालू का इस्तेमाल कर बनाई गई एक गोलाकार सरंचना है, जिसकी दिवारों पर 56 प्रतिमाएं ब्लैक ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल कर बनाईं गईं हैं।
इन प्रतिमाओं के मध्य मुख्य मूर्ति मां काली की बनाई गई हैं। इस मंदिर के अंदर एक 'चांदी मंडप' है जहां मंदिर की शेष 8 मूर्तियां स्थापित की गईं हैं।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चांदी मंडप में महा भैरवी की पूजा की जाती थी। इसके अलावा यह मंदिर एक तांत्रिक मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, जहां तांत्रिक शाम के बाद जमावड़ा लगाते हैं।
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रत्नागिरी, ओडिशा
PC- MMohanty
ओडिशा के जाजपुर जिले की बिरूप नदी के निकट स्थित रत्नागिरी एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है। बड़े स्तर पर किए गए पुरातात्विक उत्खनन में यहां से दो विशाल बौद्ध मठ, एक बड़ा स्तूप, बौद्ध से जुड़े धार्मिक स्थल और बड़ी संख्या में मन्नत स्तूप प्राप्त किए गए हैं। खुदाई के दौरान इस बात का भी पता चला है कि यह इस स्थान का संबंध गुप्त राजा नरसिंह गुप्त बालदतिया के शासनकाल से है। शुरुआत में यह स्थान बौद्ध धर्म के महायान के रूप में जाना जाता था।
लेकिन बाद में यह स्थान तांत्रिक बौद्ध धर्म या वज्र्याना कला-दर्शन के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा। रत्नागिरी अपने अतीत से जुड़े खंडहरों, विशाल दरवाजों, विशाल बौद्ध आकृतियों, बौद्ध मठों, और बौद्ध मूर्तियों की वजहों से पर्यटकों के मध्य काफी लोकप्रिय है।
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ब्रह्मेश्वर मंदिर
PC- Muk.khan
ओडिशा स्थित ब्रह्मेश्वर मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह खोरदा जिले के भुवनेश्वर शहर में है। 9 वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर किसी समय ध्वस्त हो गया था जिसका पुननिर्माण 18 वीं शताब्दी के दौरान सोमवाम्सी राजा उदयोतकेसरी ने राजमाता रानी कोलावती देवी की सहायता से करवाया था।
इस मंदिर का निर्माण पत्थर का इस्तेमाल कर पारंपरिक वास्तुकला शैली में करवाया गया था। यह मंदिर पिरामिड आकार में है। जिसके अंदर कई प्रतिमाएं मौजूद हैं।
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ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर
PC- Chaitali Chowdhury
ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर राज्य के साथ-साथ भारत के चुनिंदा सबसे ऐतिहासिक मंदिरों में गिना जाता है। जिसकी उत्कृष्ट वास्तुकला देश-विदेश के कलाप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह मंदिर 13 शताब्दी के कलिंग वास्तुकाल का सबसे शानदार प्रतीक है। इस मंदिर का निर्माण गंगा साम्राज्य के राजा नर्शिमा देव ने करवाया था। जानकारों के अनुसार यह मंदिर 1200 कलाकारों की मदद से 12 साल में पूरा किया गया था।
इस मंदिर में बनाया गया 24 पहियों वाला देव रथ मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जिसे सात घोड़ों के द्वारा खींचता हुआ दर्शाया गया है। यह मंदिर 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी, उकेरी गईं मूर्तियां सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
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