भगवान 'शनि' हिन्दु धर्म में पूजे जाने प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिनका प्रकोप इंसान को पूरी तरह बर्बाद कर देता है। मान्यता है कि शनि देव मनुष्यों को उनके बुरे कर्मों के आधार पर दण्ड प्रदान करते हैं। मस्तक पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला व शरीर पर नीले रंग के वस्त्र धारण करने वाले शनि देव गिद्ध पर सवार रहते हैं।
शनि देव की पूजा हर शनिवार के दिन पूरे भारत में की जाती है। कहा जाता है इनकी कृपा मनुष्यों के हर दुख-दर्द कम कर देती है। इस विशेष खंड में हमारे साथ जानिए भारत में स्थित भगवान शनि देव के प्राचीन मंदिर, जो धार्मिक पर्यटन के लिहाज से काफी ज्यादा मायने रखते हैं।
शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र
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महाराष्ट्र स्थित शनि शिंगणापुर, शनि देव का एक ऐसा निवास स्थान है, जहां शनि देव तो हैं पर उनका मंदिर नहीं है। यहां शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति को भक्त पूजते हैं। जो एक पेड़ की नीचे स्थापित है। शनि देव की 5 फुट 9 इंच की मूर्ति यहां 1 फुट 6 इंच चौड़े संगमरमर के एक चबूतरे पर विराजमान है। यहां राजनेता से लेकर बड़े उद्योगपति शनि देव के दर्शन के लिए आते हैं।
प्रतिदिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। जिस गांव (शिंगणापुर) में शनि देव की मूर्ति स्थापित है, कहा जाता है कि वहां किसी के घर दरवाजा नहीं लगा है। यहां तक की घरों में लोग अलमारी तक नहीं रखते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह सब शनि देव की मर्जी से है। शनिवार के दिन आने वाली अमावस को यहां भव्य आयोजन किया जाता है। जिसमें दूर-दूर से भक्त हिस्सा लेने के लिए आते हैं।
शनिचरा मंदिर मध्य प्रदेश
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मध्यप्रदेश के ग्वालियर स्थित शनिचरा मंदिर शनि देव का सबसे प्राचीन मंदिर बताया जाता है। यह मंदिर मुरैना जिले के एंती गांव में है। धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा का निर्माण आकाश से टूटे एक उल्कापिंड से हुआ है। यहां तक की शनि देव की इस मूर्ति को देखकर ज्योतिष व खगोलशास्त्री भी हैरान हैं। उनका भी मानना है कि इस मूर्ति में जरूर कुछ प्रभावशाली तत्व मौजूद हैं। यहां स्थापित शनी देव की प्रतिमा को लेकर एक पौराणिक मान्यता है, कि रावण के कैद से छुड़ाकर हनुमान जी ने शनि देव को यहीं विश्राम के लिए छोड़ा था। इसलिए मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित की गई है।
शनि मंदिर, इंदौर
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मध्य प्रदेश के इंदौर में शनि देव का एक चमत्कारी मंदिर जूनी स्थित है। इस मंदिर को भी भारत का प्राचीन शनि मंदिर कहा जाता है, जिससे पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुईं हैं। मान्यता के अनुसार इस मंदिर की स्थापना के लिए शनि देव स्वयं पधारे थे। कहा जाता है कि 300 वर्ष पूर्व यहां कभी कोई 20 फुट ऊंचा टिला था। जहां पंडित गोपालदास तिवारी आकर ठहरे थे।
किवदंतियों के अनुसार शनि देव गोपालदास के स्वप्न में आए, और कहा कि यहां उनकी एक मूर्ति दबी हुई है, जिसे तुम्हे निकालना है। बता दें कि पंडित गोपालदास तिवारी दृष्टिहीन थे, पर उन्हें कुछ ही देर में सब कुछ दिखाई देने लगा।जिसके बाद टीले की खुदाई शुरू की गई। मंदिर का निर्माण करवाया गया और शनिदेव की मूर्ति स्थापित की गई।
शनिदेव मंदिर, प्रतापगढ़
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उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में भी एक शनि देव का भव्य मंदिर है। जो भारत के मुख्य शनि धामों में से एक माना जाता है। कुशफरा जंगल में स्थित यह प्राचीन मंदिर हिन्दूओं की आस्था का केंद्र है। जहां रोजाना शनि दर्शन के लिए भक्तों की कतार लगती है। कहा जाता है यहां शनि देव अपने भक्तों को खुद न्योता देते हैं, जिसके बाद वे उनकी कृपा का पात्र बन जाते हैं।
यह स्थान चमत्कारी शक्तियों से भरा हुआ है। यहां प्रति शनिवार शनि देव को 56 भोग लगाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि देव की यह मूर्ति स्वयंभू है। जो अपने अपने आप यहां ऊंचे टीले पर स्थापित हुई । जिसके बाद मंदिर के महंत ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। हर शनिवार मंदिर परिसर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें हजारों भक्त हिस्सा लेते हैं।
श्री दरबारण्येश्वर मंदिर, तिरुनल्लर
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शनि देव का यह भव्य मंदिर पांडिचेरी के तिरुनल्लर में स्थित है। जहां शनि देव के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगती है। यह मंदिर भारत में स्थित पवित्र शनि मंदिरों में से एक है। जहां यह मंदिर बना है वो जगह शनि ग्रह को समर्पित है। शनि जयंती के मौके पर यहां का नजारा देखने लायक होता है।
जब हजारों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने सात तांडवों में से एक तांडव नृत्य किया था। इसी जगह भोलनाथ ने ब्रह्मा जी को शास्त्रों का ज्ञान भी दिया था। भगवान शनि का यह मंदिर तमिलनाडु के नवग्रह में भी शामिल है। जहां शनि के साथ-साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है।