भगवान गणेश के बारे में कहा जाता है कि वो सभी विघ्नों और बाधाओं को समाप्त करके व्यक्ति में समृद्धि का संचार करते हैं। आप भारत के अधिकाश घरों में भगवान गणेश के अलग अलग रूपों को वास करते हुए देखेंगे, साथ ही आपको ये भी मिलेगा कि महत्त्वपूर्ण अवसरों पर हमेशा ही भगवान गणेश को प्राथमिकता दी जाती है। आपको बताते चलें कि जल्द ही सम्पूर्ण भारत में गणेश चतुर्थी के पर्व को बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जायगा| ज्ञात हो कि इस दौरान लोग अपने जीवन में समृद्धि और खुशहाली लाने के लिए भगवान गणेश की मूर्ति को स्थापित करते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं।
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गौरतलब है कि सम्पूर्ण दक्षिण भारत में ही गणेश चतुर्थी को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान लोग भगवान की मूर्ति को फूलों से सजाते हैं और अपने अपने घरों में रंगोली का निर्माण करते हैं, साथ ही भगवान गणेश के लिए उनके पसंदीदा व्यंजन भी बनाए जाते हैं।
इसी क्रम में आज अपने इस गणेश चतुर्थी स्पेशल सीरीज में हम आपको एक ऐसी वीकेंड ट्रिप पर ले जा रहे हैं जहां एक तरफ आप दक्षिण भारत में मौजूद अलग अलग गणेश मंदिरों के भी दर्शन कर लेंगे तो वहीं दूसरी ओर इन स्थानों की खूबसूरती भी आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। अपनी इस वीकेंड ट्रिप की शुरुआत हम केरल के कासरगोड से करेंगे और अंत कर्नाटक के मैंगलोर में।
तो आइये अब देर किस बात कि इस आर्टिकल के जरिये जाना जाये कि कैसे आप एक परफेक्ट लॉन्ग वीकेंड के अलावा दक्षिण भारत में मौजूद अलग अलग गणेश मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं।
कासरगोड
कासरगोड केरल के उत्तरी भाग में स्थित है। यह अपने ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के कारण लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। कहा जाता है की 9 वीं और 14 वीं शताब्दी में कासरगोड के माध्यम से अरब केरल में आये। बेकल किला यहाँ पर एक यादगार स्मारक के रूप में स्थित है। कासरगोड का नाम दो शब्दों के मेल से बना है 'कासरा' जिसका अर्थ संस्कृत में तालाब है और 'क्रोडा' जिसका अर्थ है खज़ाना रखने की सुरक्षित जगह। कासरगोड कासरका पेड़ों से घिरा हुआ है। इसीलिए कासरगोड का नाम इन पेड़ों से भी उत्पन्न हुआ माना जाता है।
मधुर महागणपति मंदिर
मधुर महागणपति मंदिर का वास्तविक नाम मधानेनथेसवरा मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित था। इस मंदिर के बारे में ये कहानी मशहूर है कि यहां के पुजारी के बेटे को भगवान गणेश से वरदान मिला था और उन्होंने भगवान गणेश की आकृति को दीवार पर उतारा था। इस घटना के बाद से ही इस मंदिर का नाम मधुर महागणपति मंदिर पड़ गया। आज इस मंदिर में भगवान शिव के अलावा भगवान गणेश की मूर्ति को भी स्थापित किया गया है। गणेश चतुर्थी में इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। इस दौरान पर यहां भक्तों की भारी भीड़ देख सकते हैं। प्रसाद के रूप में यहां आने वाले लोगों को "अप्पा" नामक मिठाई दी जाती है कहां जाता है कि भगवान गणेश को ये मिठाई बहुत पसंद है।
मैंगलोर
अक्सर कहा जाता है कि मैंगलोर कर्नाटक का प्रवेश द्वार है। खूबसूरत मैंगलोर शहर अरब सागर के नीले पानी और पश्चिमी घाट के हरे, विशाल पहाड़ों के बीच बसा हुआ है। इस शहर का नाम भगवान मंगला देवी के नाम पर पड़ा, मैंगलोर चहलकदमी से भरा बंदरगाह रहा है। बंदरगाह के इस शहर का पहला संदर्भ 14वीं सदी में मिलता है, जब स्थानीय शासकों ने फारस की खाड़ी में राज्यों के साथ व्यापार संबंधों की स्थापना की। अपनी सामरिक स्थिति के चलते, मैंगलोर में कई बार बदलाव आये। पुर्तगाली, ब्रिटिश और मैसूर शासक हैदर अली और टीपू सुल्तान ने इस शहर पर कब्जा करने के लिए कड़वी लड़ाईयां लड़ीं। इस खूबसूरत शहर में विभिन्न शसकों ने अपनी छाप छोड़ी और आज मैंगलोर विभिन्न संस्कृतियों के एक समामेलन है।
शरावू महागणपति मंदिर
मैंगलोर शहर के बीचों बीच स्थित शरावू महागणपति मंदिर अपने आप में बेमिसाल है। कहा जाता है कि इस मंदिर में हर रोज़ हज़ारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। आपको बता दें कि ये मंदिर एक 800 साल पुरानी संरचना है और यहाँ आपको भगवान गणेश के अलावा श्री श्रबेश्वर और नाग ब्रह्मा की मूर्तियों के दर्शन होंगे। इस मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय गणेश चतुर्थी के दौरान होता है। इस दौरान यहां आने वाले भक्तों के लिए भोजन की भी व्यवस्था रहती है।
अनेगुड्डे
आनेगुद्दे करनाटक के मरावन्थे शहर के पास स्थित एक छोटा सा टाउन है। आपको बता दें कि मरावन्थे को सुंदर समुद्र तटों का घर भी कहा जाता है। यह शहर कर्नाटक के दक्षिण केनरा जिले में स्थित है। शहर के दाहिनी ओर अरब सागर जबकि बाईं तरफ सौपरनिका नदी बहती है। यह समुद्र तट, कुण्डापुरा के पास, उडुपी से 50 किमी की दूरी पर और बैंगलोर से 450 किमी दूर स्थित है।
अनेगुड्डे विनायक मंदिर
हमारा सुझाव है कि आने वाले पर्यटक अनेगुड्डे विनायक मंदिर, जो शहर से 21.6 किमी की दूरी पर स्थित है, की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। भगवान गणेश को समर्पित, तुलूनाडू के सप्तक्षेत्रों में से एक और मुक्ति स्थल के नाम से भी जाना जाने वाली इस जगह पर, लोगों की मान्यता के अनुसार, मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। इसका नाम दो शब्दों अने, जिसका मतलब हाथी है और गुड्डी, जिसका अर्थ है पहाड़ियाँ, से मिलकर बनता है। भगवान गणेश की मूर्ति, जिसके चार हाथ हैं, मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मौजूद है। दो हाथ 'वर्द हस्थ' (आशीर्वाद देने के लिये) का प्रतीक जबकि अन्य दो पैर की ओर इशारा करते हुये मुक्ति दर्शाते हैं। गणेश चतुर्थी और संकठा चतुर्थी जैसे त्यौहार इस मंदिर में आयोजित किये जाते हैँ और तीर्थयात्री तुलाभ्रम को भी अनुष्ठान के हिस्सा के रूप में करते हैं।
हतियनगडी
उडुपी का ये छोटा सा गांव हतियनगडी किसी ज़माने में अलूपा राजाओं की राजधानी रहा है। आज भी हतियनगडी में आपको पुराने दौर की झलक मिलेगी और शायद यही कारण है कि आज बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आ रहे हैं। हरे भरे पहाड़ों से घिरा ये स्थान किसी भी प्रकृति प्रेमी का मन मोहने के लिए काफी है। यदि आप उडुपी जाने के बारे में सोच रहे हैं तो इस स्थान की यात्रा करना बिलकुल न भूलें। हमारा दावा है कि हतियनगडी की यात्रा आपके लिए एक यादगार अनुभव होगा।
हतियनगडी-सिद्धि विनायक मंदिर
हतियनगडी में 8 वीं सदी का श्री सिद्धि विनायक मंदिर है। यह मंदिर कुंदापुर तालुक में है और भगवान विनायक की मूर्ति स्थापित है। यह ऐतिहासिक जगह देश भर के हिंदुओं के लिये एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह मंदिर वरही नदी के पास है। यह भारत का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान विनायक की जटाएं यानी बाल हैं। मूर्ति 2.5 फुट ऊंची होने के साथ सालीग्राम पत्थर में बनी है। भगवान की सूंढ़ बाईं ओर मुड़ी हुई है। विभिन्न अवसरों पर भगवान का विशेष पूजन किया जाता है। माना जाता है कि सभी भक्तों की मनोकामनाएं यहां आने से पूर्ण होती हैं, इसीलिये उनके नाम के आगे सिद्धि लगा दिया गया।
इदागुंजी
कर्नाटक के गोकर्ण में स्थित इदागुंजी को इदानगुंजी के नाम से भी जाना जाता है, यह हिंदूओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। इस स्थान पर एक प्रमुख आकर्षण स्थल भी है जिसे मातोबर श्री विनायक देवारू मंदिर के नाम से जाना जाता है जो भगवान गणेश को समर्पित है। यदि आप प्रकृति को उसके सबसे खूबसूरत अंदाज़ में देखना चाहते हैं और कुछ आराम के पल बिताना चाहते हैं तो ये स्थान आपके ही लिए हैं। यदि आप गोकर्ण में हैं तो यहां अवश्य आएं।
इदागुंजी गणपति मंदिर
इदागुंजी गणपति मंदिर,हिंदूओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। इस स्थान पर एक प्रमुख आकर्षण स्थल भी है जिसे मातोबर श्री विनायक देवारू मंदिर के नाम से जाना जाता है जो भगवान गणेश को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान गणेश की दो हाथों वाली मूर्ति स्थापित है। उनके दोनों हाथों में मोदक रखे हुए है। श्रद्धालु इस मंदिर में आकर दोपहर का भोजन मुफ्त में कर सकते है। ऐसा माना जाता है कि यहां आने सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है। इस मंदिर की मूर्ति, गोकर्ण की पहचान है। यहां एक साल में लगभग 1 लाख श्रद्धालु दर्शन करने आते है। लोकप्रिय लोकगीत के अनुसार, इस स्थान पर भगवान गणेश का वास है, इसीकारण इसे कुंजारान्या के नाम से जाना जाता है।
गोकर्ण
गोकर्ण एक तीर्थ स्थल है जो कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में स्थित है और यह स्थान पर्यटकों के बीच एक सुंदर तट है। यह स्थान, दो नदियों अग्निशिनि और गंगावली के संगम पर स्थित है। यह स्थान नदियों के ऐसे क्षेत्र में बसा हुआ है जो देखने में गाय के कान के रूप जैसा लगता है, और शायद इसीकारण इस स्थान का नाम गोकर्ण पड़ा है जिसका अर्थ होता है गाय का कान। गोकर्ण में स्थित महाबलेश्वर शिव मंदिर सबसे प्रमुख तीर्थस्थान है जो यहां आने वाले सभी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर में तमिल के प्रमुख कवियों अप्पार और सामबंदार की लिखी हुई कविताएं अंकित है जो भगवान तुलु नादु को समर्पित है।
महागणपति मंदिर, गोकर्ण
महागणपति मंदिर, गोकर्ण का प्रसिद्ध मंदिर है जो महाबलेश्वर मंदिर के पास में स्थित है। इस मंदिर को रावण से आत्मलिंगा छुडवाने में सफल होने वाले भगवान गणेश का समर्पित करके बनवाया गया। स्थानीय मान्यता के अनुसार, महाबलेश्वर मंदिर जाने से पहले इस मंदिर में दर्शन करने अवश्य आना चाहिए। यह मंदिर यहां 1.3 मीटर ऊंची मूर्ति के कारण के कारण जाना जाता है। श्रद्धालु यहां आकर महागणेश मंदिर में पूजा कर सकते है।