भारत का पूर्वी राज्य झारखंड अपनी विभिन्न जनजातियों के लिए जाना जाता है। यहां भारत की एक बड़ी 'ट्राइबल कम्युनिटी' प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जंगलों पर निर्भर हैं। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों के साथ झारखंड उन क्षेत्रों में आता है जहां एक बड़ी आबादी आधुनिकिकरण से कोसों दूर है। यहां का एक बड़ा आदिवासी समाज लंबे समय से अपनी लोक संस्कृति-परंपराओं को संजोकर रखने का काम रहा है।
खनिज संपदा से संपन्न इस वन प्रदेश को भारत का 'रूर'(जर्मनी का खनिज प्रदेश) भी कहा जाता है। यह था भारत के वन प्रदेश झारखंड का संक्षिप्त विवरण, आगे हमारे साथ जानिए झारखंड के जंगलों के बीच मौजूद एक अदृश्य स्थान के बारे में जिसे भारत का 'मिनी लंदन' कहा जाता है। जिसके बारे में शायद बहुत कम ही लोग जानते हैं।
जंगलों के बीच बसा मिनी लंदन
राजधानी शहर रांची से लगभग 64 किमी की दूरी पर स्थित है भारत का 'मिनी लंदन'। इस कस्बे का नाम है 'मैक्लुस्कीगंज', जिसे कभी एंग्लो इंडियन कम्युनिटी ने बसाया था। यहां भारी संख्य में एंग्लो इंडियन रहा करते थे, जिनकी आबादी समय से साथ-साथ गिरती चली गई। हालांकि यहां अब भी एंग्लो इंडियन लोगों को देखा जा सकता है।
झारखंड के जंगलों के बीच इस खूबसूरत कस्बे को बसाने का काम किया था 'कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया' ने। यहां की जमीन 1930 में रातू महाराज से लीज पर ली गई थी। आज का यह मिनी लंदन करीब 10 हजार एकड़ की जमीन पर फैला है। जो अब एक खूबसूरत पर्यटन स्थल बन चुका है।
बनाए गए थे 365 खूबसूरत बंगले
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मैक्लुस्कीगंज शहर की नींव अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की नामक एक एंग्लो इंडियन व्यापारी ने रखी थी। जहां रहने के 300 से ज्यादा खूबसूरत बंगलों का निर्माण करवाया गया था। यहां का समाज पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करता था, इसलिए उनका रहन-सहन और बात करने का ढंग पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित था। जिसे बाद में मिनी लंदन कहा जाने लगा।
इस प्रदेश के बसने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि टिमोथी मैकलुस्की (प्रॉपर्टी डीलिंग से जुड़ा व्यापारी) जब यहां पहली बार आया तो वह यहां की प्राकृतिक आबोहवा को देख मोहित हो गया और उसने एंग्लो-इंडियन परिवारों को बसाने की जिद ठान ली।
अंग्रेज सरकार का रवैया
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1930 में आई साइमन कमीशन की रिपोर्ट में एंग्लो-इंडियन्स का कोई जिक्र नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने पूरी तरह इनकी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया था। जिस कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसी बीच टिमोथी मैकलुस्की ने तय किया कि वो भारत में ही अपने समाज के लोगों के लिए रहने की व्यवस्था करेगा।
और फलस्वरूप मैकलुस्कीगंज अस्तित्व में आया। जिसके बाद कई बड़े धनी एंग्लो-इडियन्स परिवारों ने यहां बंगले बनाना शुरू किया। और देखते-देखते यह एक खूबसूरत शहर में परिवर्तित हो गया।
बन गया था भूतों का शहर
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खुशहाल मैकलुस्कीगंज उस दौर से भी गुजरा जब यहां से लोग दूसरी जगह पलायन करने लगे थे। मैकलुस्की ने करीब दो लाख एंग्लो-इडियन्स को यहां बसने का न्योता दिया था। जिसमें से 300 परिवार यहां आकर बसे। लेकिन धीरे-धीरे पलायन के बाद संख्या सिमट कर 20 ही रह गई।
यहां से ज्यादातर परिवार अमेरिका, आस्ट्रेलिया व यूरोप के अन्य शहरों में जाकर बस गए। खाली बंगले भूत बंगलों जैसे लगने लगे। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब बचे परिवारों ने इस शहर को फिर से आबाद करने की ठानी। जिसके बाद यहां कई स्कूल खोले गए, पक्की सड़के बनवाई गईं और जरूरतों के सामानों की दुकाने भी लगने लगी।
घूमने लायक आकर्षक स्थान
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भले ही इस शहर की आबादी में गिरावट आई है, लेकिन अब यह जगह एक खूबसूरत पर्यटन गंतव्य के रूप में उभरी है। सैलानियों के लिए यहां के ज्यादातर बंगलों को गेस्ट हाउस में तब्दील कर दिया गया। दुगा दुगी नदी और जागृति विहार कुछ ऐसे स्थान हैं जहां पर्यटक ज्यादा जाना पसंद करते हैं।
यहां मौजूद मंदिर, गुरूद्वारे व मस्जिद काफी संख्या में पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। यहां एक डॉन बोस्को अकादमी भी मौजूद है। नई जगहों की तलाश में लगे पर्यटक यहां घूमने का प्लान बना सकते हैं।
कैसे करें प्रवेश
आप मैकलुस्कीगंज आसानी से पहुंच सकते हैं। यह कस्बा झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 64 किमी की दूरी पर बसा है। रांची से यहां तक के लिए बस और ट्रेन सेवा भी उपलब्ध हैं। रेल मार्ग के लिए आप मैकलुस्कीगंज रेलवे स्टेशन और हवाई मार्ग के लिए आप रांची हवाईअड्डे का सहारा ले सकते हैं।