राजस्थान हमेशा से अपनी प्राचीन धरोहरों के लिए जाना जाता है। जिनमें से कुछ धरोहर एसी हैं जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। अगर आप भी राजस्थान के ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जानना चाहते हैं तो जरूर जाएं मायरा की गुफा। यह एक ऐसी ही धरोहर है जिसका नाम गुमनाम सा है।
महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका का जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज्य था जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था. मेवाड़़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किन्तु, अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा। प्रताप के इसी बलिदान और शौर्य गाथा की गवाह रही है यह मायरा गुफा।
यह गुफा उदयपुर जिले की अरावली की पहाड़ियों के जंगलों में स्थित है। मायरा की गुफा महाराणा प्रताप की राजतिलक स्थली ग्राम गोगुन्दा से तकरीबन 7-8 किलोमीटर दूर दुलावतों का गुढ़ा गांव के जंगल में है। यह उदयपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर है। इस स्थल पर पहुंचने के लिए गोगुन्दा से हल्दीघाटी लोसिंग सड़क पर गणेश जी का गुढ़ा गांव से पूर्व सामने एक पहाड़ी रोड़ ऊपर की तरफ जाती है, जिससे वहां पहुंचा जा सकता है।
महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी के युद्ध से जुडी होने के कारण मायरा की गुफा राजस्थान के इतिहास में महत्त्व रखती है। हल्दीघाटी की लड़ाई में इस गुफा का योगदान बहुत अहम था। मुगल शासक अकबर से हुए संघर्ष के दौरान महाराणा को राजमहलों से दूर रहकर अपना युद्ध जारी रखने और सुरक्षित रहने के लिए अनेक गुप्त और सुरक्षित स्थान तलाशने पड़े थे। इन्ही स्थानों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान "मायरा की गुफा" है।
शरीर की नसों जैसी आकृति में बनी इस प्राकृतिक गुफा को हल्दीघाटी की लड़ाई के दौरान महा राणा प्रताप ने अपना शस्त्रगार बनाया था। तभी तो इस गुफा को महाराणा गुफा भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे। प्रताप यहां गुप्त मन्त्रणाएं भी करते थे। इस गुफा की खासियत ये है कि बाहर से देखने पर इसका प्रवेश द्वार दिखाई नहीं देता, और यही कारण था कि इस गुफा के एक हिस्से को महाराणा प्रताप ने हथियार रखने के लिए तैयार किया था।
मायरा की गुफा में जानवरों को रखने के लिए अलग से कमरे और रसोई घर भी थी। बताया जाता है कि इन कमरों में प्रताप के स्वामीभक्त घोड़े चेतक को बांधा जाता था, इसलिए इसे आज भी पूजा जाता है। गुफा के अंदर मां हिंगलाज का एक मंदिर भी बना है।
इस गुफा में जाने के तीन अलग-अलग रास्ते हैं, जिनके टेढ़े-मेढ़े रस्ते भूल-भुलैया जैसे लगते हैं। जिसे समझ पाना शत्रुओं के लिए असंभव था।
अरावली की पहाड़ियों के बीच होने के कारण यह स्थल दुर्गम होने के बावजूद अत्यंत रमणीय स्थल है। इस गुफा के ऊपर की पहाड़ी से एक प्राकृतिक झरना भी गिरता है, जो बारिश के दिनों में आकर्षक हो जाता है।