कर्नाटक स्थित बीजापुर एक प्राचीन शहर है जिसे कभी विजयपुरा के नाम से संबोधित किया जाता था। इस शहर की स्थापना (10 वीं और 11 वीं सदी के बीच) का श्रेय दक्षिण के शक्तिशाली राजवंश चालुक्य को जाता है। यह ऐतिहासिक शहर कई राजवंशों व सम्राटों के अधीन रह चुका है। यहां 14वीं शताब्दी के दौरान आदिल शाह राजवंश का भी शासन रह चुका है।
इस दौरान यहां महत्वपूर्ण स्मारक बनाने का काम किया गया था। इस क्षेत्र पर शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों के प्रभावों के कारण इसे दक्षिण भारत का एक समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है। वर्तमान में अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण बीजापुर राज्य के सबसे लोकप्रिय गंतव्यों के रूप में प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं पर्यटन के लिहाज से यह शहर आपके लिए कितना खास है।
गोल गुंबज़
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बीजापुर मुख्यत: अपने ऐतिहासिक स्मारकों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां का गोल गुंबज़ वास्तुकला के तौर पर देखने लायक सरंचना है। 1656 में बना यह गोल गुंबज़ बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह के का मकबरा है। बीजापुर में आदिल शाह ने कई सालों तक राज किया। बता दें कि यह गुंबद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली ढांचे में के रूप में जाना जाता है।
यह गुंबद लगभग 51 मीटर ऊंचा है और 18000 वर्ग फुट भूमि में फैला हुआ है। 'व्हिस्परिंग गैलरी' गोल गुंबज़ का मुख्य आकर्षण है जहां आप सबसे नरम ध्वनि भी आसानी से सुन सकते हैं।
इब्राहिम रौजा
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गोल गुंबज़ के बाद इब्राहिम रौजा भी बीजापुर में देखने लायक स्थान है जो कुछ 'ताजमहल' के डिजाइन को प्रेरित होकर बनाया गया है। दरअसल इब्राहिम रौजा सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय और उनकी रानी का मकबरा है। काफी बड़े क्षेत्र में फैला यह मकबरा फारसी मुस्लिम वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है, जिसे चट्टान के एक स्लैब पर बनाया गया है। इब्राहिम रौजा एक अद्भुत मीनार है, जिसे देखने के लिए दूर-दराज से पर्यटक यहां आते हैं। इस पूरी इमारत को विभिन्न चमकदार पत्थर, सजावटी खिड़कियां और मेहराबों से सजाया गया है। बीजापुर यात्रा के दौरान आप यहां आना न भूलें।
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मलिक-ए-मैदान
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बीजापुर में आप मलिक-ए-मैदान भी आ सकते हैं। मलिक-ए-मैदान का शाब्दिक अर्थ है मैदानों का राजा जो दुनिया में सबसे बड़ी मध्यकालीन तोप है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विशाल तोप का वजन 55 टन है जो 4 मीटर लंबी है। इस तोप की थूथन यानी बाहरी हिस्सा 1.5 मीटर व्यास से ज्यादा का है। इस तोप के मुंह को शेर के सिर का आकार दिया गया है, जिसके दांतों में हाथी (आकृति) फंसा हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि जब इस तोप का इस्तेमाल होता था तो यह गोला फेंकते वक्त भारी आवाज करती थी। आवाज इतनी तेज होती थी कि तोपधारक को अपने कानों की रक्षा के लिए पानी से भरी हुई बाल्टी में अपना सिर डुबोना पड़ता था। इस अद्भुत चीज को देखने के लिए आप बीजापुर जरूर आएं।
गगन महल
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बीजापुर का गगन महल भी अपनी आकर्षक सरंचना के लिए जाना जाता है। गगन महल का शाब्दिक अर्थ आकाश महल जिसका निर्माण 16 वीं शताब्दी के दौरान अली आदिल शाह प्रथम ने करवाया था। इस ऐतिहासिक सरंचना का मुख्य आकर्षण यहां का मेहराब और महल के केंद्रीय विशाल मेहराब है, जो गढ़ के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
जमीन तल पर दरबार (असेंबली हॉल ) हुआ करता था और ऊपरी मंजिल पर शाही परिवार के निवास स्थान था। बाकी संरचनाओं की तरह गगन महल भी अपनी आकर्षक वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
जामी मस्जिद
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उपरोक्त स्थानों के अलावा आप यहां की प्राचीन जामी मस्जिद को देखने का भी प्लान बना सकते हैं। जामी मस्जिद दक्षिण भारत में सबसे पुरानी और सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसका निर्माण विजयनगर के राजा को पराजित करने के बाद अली आदिल शाह प्रथम ने करवाया था। यह ऐतिहासिक मस्जिद लगभग 116,300 वर्ग फुट का क्षेत्र में फैली है जो भारत के सबसे शानदार आकर्षक डिजाइन वाली मस्जिद के रूप में जानी जाती है।
इस सरंचना का आंतरिक भाग काफी खबसूरत है, जिसे विभिन्न चित्रों और मूर्तियों द्वारा सजाया गया है। अगर आप इतिहास प्रेमी के साथ -साथ एक कला प्रेमी भी हैं तो बीजापुर की सैर एक बार जरूर करें।
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