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होली में लेना है ठंडाई का मजा, तो इस होली जरुर पहुंचे काशी

इस साल होली क रंग भारत की प्राचीन नगरी काशी में देखें, वाराणसी में होली गंगा के घाट पर मनायी जाती है, यहां की होली बिना भांग की ठंडाई के पूरी नहीं मानी जाती है.

उत्तर प्रदेश स्थित प्राचीन नगरी काशी में होली का त्यौहार बड़े ही उत्साह और हर्षोल्लाल्स के साथ मनाया जाता है। दो दिन मनाये जाने पर्व होली की रौनक वाराणसी में देखते ही बनती हैं। पूरे भारत की तरह वाराणसी में भी होली का त्यौहार 1 और 2 मार्च को मनाया जायेगा।

गंगा के तट पर स्थित वाराणसी, भारत के पवित्र और प्राचीन शहरों की श्रेणी में आता है। यहां मनायीं जानी होली में सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। होली के पावन पर्व पर लोग यहां के गंगा के घाटों पर एक दूसरे पर रंग फेंकते हुए, लजीज व्यंजनों का स्वाद लेते हुए आपको नजर आयेंगे।

वाराणसी की होली

वाराणसी की होली

वाराणसीवाराणसी

दूसरे दिन मनाते हैं होली

दूसरे दिन मनाते हैं होली

होलिका दहन के दूसरे दिन होली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गंगा के तट पर होली के रंग बिरंगे रंग देखकर आपको भी एकबार होली खेलने का मन करेगा।

ठंडाई के बिना अधूरी है काशी की होली

ठंडाई के बिना अधूरी है काशी की होली

आपने कई फिल्मों में देखा होगा कि, होली के दौरान भांग या ठंडाई पी जाती है, ठीक वैसे ही काशी की होली में ठंडाई पीना बेहद जरूरी माना जाता है, यह भांग की ठंडाई होती है। इसके अलावा भंग के लड्डू भी खा सकते हैं। होली का पर्व लोग सुबह से लेकर दोपहर तक मनाते हैं, और इस पर्व के दौरान होली के लजीज व्यंजन खाना कतई ना भूलें।

गंगा आरती

गंगा आरती

होली के जश्न के बाद शाम को आप यहां की गंगा आरती का भी हिस्सा बन सकते हैं। गंगा आरती की शुरुआत शाम 6:30 बजे होती है, लेकिन घाट पर लोग आरती का हिस्सा बनने के लिए शाम 5:30 बजे ही घाट पर पहुंचना शुरू कर देते हैं।Pc:Arian Zwegers

 होली पर काशी के मंदिर जरुर घूमे

होली पर काशी के मंदिर जरुर घूमे

प्राचीन नगरी काशी में होली का जश्न बिना मंदिर जाये पूरा नहीं होता है, अगर आप यहां है तो होली के शुभअवसर पर यहां के प्रमुख मंदिर जरुर जाएँ, वाराणसी में कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है।

नेपाली मंदिर

नेपाली मंदिर

19सदी में राजा राम बहादुर द्वारा बनवाया गया नेपाली मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर लकड़ी का बना हुआ है इसलिए इसे 'कांठवाला मंदिर' भी कहते हैं, कांठ मतलब लकड़ी। यह मंदिर टैराकोटा,लकड़ी और पत्थर के इस्तेमाल से नेपाली वास्तुशैली में बनाया गया है। यह रचना नेपाली कारीगरों की उत्कृष्ट शिल्प कौशल को बखूबी दर्शाती है। इसलिए यह वाराणसी के कुछ खास मंदिरों में से एक है।

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर

वाराणसी के प्राचीन मन्दिरों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जोकि बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।Pc:Unknown

 दुर्गा मंदिर

दुर्गा मंदिर

दुर्गा मंदिर का निर्माण बंगाली रानी ने 18 वीं सदी में कराया था, मंदिर के पास ही एक तालाब स्थित है, जोकि कभी गंगा से जुड़ा हुआ था। मान्‍यता के अनुसार, इस मंदिर में स्‍थापित मूर्ति को मनुष्‍यों द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि यह मूर्ति स्‍वंय प्रकट हुई थी, जो लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने आई थी। नवरात्रि और अन्‍य त्‍यौहारों के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्‍तगण श्रद्धापूर्वक आते है।Pc:Henk Kosters

 कैसे जाएँ

कैसे जाएँ

वायु द्वारा: बाबतपुर विमानक्षेत्र (लाल बहादुर शास्त्री विमानक्षेत्र) शहर के केन्द्र से 25 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है और चेन्नई, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, खजुराहो, बैंगकॉक, बंगलुरु, कोलंबो एवं काठमांडु आदि देशीय और अंतर्राष्ट्रीय शहरों से वायु मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

ट्रेन द्वारा: उत्तर रेलवे के अधीन वाराणसी जंक्शन एवं पूर्व मध्य रेलवे के अधीन मुगलसराय जंक्शन नगर की सीमा के भीतर दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। इनके अलावा नगर में 16अन्य छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन हैं।

सड़क द्वारा: एन.एच.-2दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग वाराणसी नगर से निकलता है। इसके अलावा एन.एच.-7, जो भारत का सबसे लंबा राजमार्ग है, वाराणसी को जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद, बंगलुरु, मदुरई और कन्याकुमारी से जोड़ता है।Pc:Ken Wieland

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