भारत, धार्मिक विविधताओं व सहिष्णुता के लिए विश्व भर में जाना जाता है। धर्म-संस्कृति के क्षेत्र में विश्व ख्याति प्राप्त भारत 'स्वीकार्यता' को अपना मूल मंत्र मानता है, यानी यहां समाज कल्याण संबंधी सभी मूल्यों को आसानी से अपना लिया जाता है। देखा जाए तो भारतीय लोकतंत्र भी इसी 'स्वीकार्यता' की नींव पर गढ़ा गया है, जिसे विश्व का सबसे मजबूत लोकतंत्र कहा जाता है।
इसी 'स्वीकार्यता' की छवि को, भारतीय संस्कृति में भली भांति देखा जा सकता है। जिसके सबसे प्रभावशाली प्रतीक भारतीय मंदिर हैं, जो अपने दैविक आकर्षण के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। आज 'नेटिव प्लानेट' के खास खंड में जानिए भारत के उन दैविक मंदिरों के विषय में, जिनका संबंध पौराणिक काल से है, कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में जो अपने रहस्यमय इतिहास के लिए जाने जाते हैं।
1- रणकपुर जैन मंदिर
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भारत की ऐतिहासिक भूमि राजस्थान में अनेकों भव्य स्मारक व महल मौजूद हैं, जिनमें रणकपुर जैन मंदिर भी शामिल है। उदयपुर से लगभग 96 किमी की दूरी पर स्थित यह भव्य मंदिर जैन समुदाय का प्रमुख आस्था का केंद्र है। अरावली पर्वत की घाटियों के बीच स्थित यह दैविक स्थल, जैन धर्म के संस्थापक व पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का चतुर्मुखी मंदिर कहलाता है। मंदिर की वास्तुकला व दीवारों पर उकेरी गईं प्राचीन शैली की कलाकृतियां देखने लायक हैं। यहां के दिव्य वातावरण का स्पर्श पाने के लिए रोजाना कई श्रद्धालु व पर्यटक मंदिर दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर जैन धर्म के पांच तीर्थस्थलों में शामिल है।
खम्भों का रहस्य
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बता दें कि भारत में जितने भी जैन मंदिर हैं, उनमें इस मंदिर की इमारत सबसे विशाल है। यहां आपको भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना देखने को मिलगा। जहां यह भव्य मंदिर खड़ा है, वहां कभी राणा कुंभा का शासन चलता था, इन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा। इस मंदिर के चार प्रवेश द्वार हैं। मुख्य गृह में जैन तीर्थकर आदिनाथ की चार विशाल प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां मौजद 1444 खम्भे हैं। मंदिर की किसी भी दिशा में नजर दौड़ाने पर, छोटे-बड़े ये भव्य खम्भे दिखाई देते हैं। ये 1444 खम्भे आकर्षण के लिए बनाए गए या फिर किसी और कारण के लिए इससे संबंधित सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
2- मीनाक्षी अम्मन मंदिर
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तमिलनाडु स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर, मां पार्वती को समर्पित है। मां मीनाक्षी देवी, पार्वती का अवतार व भगवान विष्णु की बहन हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर को तीन अगल-अलग नामों से बुलाया जाता है, पहला मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर, मीनाक्षी अम्मन मंदिर व तीसरा केवल मीनाक्षी मंदिर। मदुरई स्थित मीनाक्षी मंदिर अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव मदुरई नगर के राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी से विवाह रचाने यहां आए थे। इसलिए यह मंदिर हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए एक तीर्थस्थान है।
वास्तु व स्थापत्य का अद्भुत मेल
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इस मंदिर की वास्तु व स्थापत्य कला किसी को भी आश्चर्यचकित कर देगी। मंदिर के 12 भव्य गोपुरम देखने लायक हैं। यहां आप कुशल रंग व चित्रकारी का अद्भुत मेल देख सकते हैं। बता दें कि इस मंदिर का वर्णन तमिल साहित्य में भी मिलता है। इस मंदिर का विकास कार्य 17वीं शताब्दी में पूरा किया गया । अगर आप ध्यान से देखें, तो मंदिर के 8 खम्भों में मा लक्ष्मी की मूर्तियां अंकित हैं। साथ ही इनपर भगवान शिव से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी लिखी गई हैं।
3- विरुपाक्ष मन्दिर हम्पी
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भारत के प्राचीन स्मारकों में शामिल विरूपाक्ष मंदिर कर्नाटक के हम्पी में स्थित एक भव्य शिव मंदिर है। यहा मंदिर दक्षिण भारत के सबसे महान राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान बनाया गया। यह मंदिर भगवान शिव के अवतार विरुपाक्ष को समर्पित है। बता दें कि इस मंदिर को 'पंपापटी' नाम से भी जाना जाता है। हम्पी नगर के बाजार क्षेत्र में स्थित इस भव्य मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में करवाया गया था। अगर आप इस विशाल मंदिर की आतंरिक संरचना देखेंगे तो आपको इसके अंदर कई छोटे-छोटे प्राचीन मंदिर नजर आएंगे। इस मंदिर के पूर्व में महादेव के सेवक नंदी और दक्षिण में गणेश की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है।
आज भी होती है विधिवत पूजा
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विरुपाक्ष मन्दिर में आपको भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की 6.7 मीटर ऊंची मूर्ति भी दिखाई देगी। यह भव्य मंदिर हम्पी का मुख्य आकर्षण है। बता दें कि यह भारत के उन प्राचीन मंदिरों में शामिल हैं, जहां आज भी विधिवत पूजा होती है। यह मंदिर हेमकुटा पहाड़ियों के निचले हिस्से में स्थित है, जो इस मंदिर को एक खूबसूरत स्वरूप प्रदान करता है।
4- बद्रीनाथ मंदिर
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उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ मंदिर, हिंदूओं के चार धामों में से एक है। अलकनंदा नदी के किनारे बसा यह भव्य मंदिर भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनाथ को समर्पित है। यहां प्रति वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। अपनी ढेरों मनोकामनाएं लिए भक्त, दुर्गम रास्तों से यहां तक सफर तय करते हैं। हिंदू धर्म में यह मान्यता है, कि अपने जीवन काल में बद्रीनाथ के दर्शन एक बार अवश्य करने चाहिए । बता दें कि यहां नर-नारायण विग्रह की पूजा की जाती है। यहां भक्त अलकनंदा नदी में स्नान करते हैं, जो की शीत के कारण अत्यन्त कठिन होता है। इस मंदिर की अपनी अलग पौराणिक मान्यता है, कहा जाता है, जब भागीरथी के प्रयास से गंगा धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 अलग-अलग धाराओं में बंट गई, अलकनंदा उन 12 धाराओं में से एक है।
पौराणिक महत्व
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बता दें कि यह मंदिर लगभग 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हिंदूओं का तीर्थ स्थान रहा है। कहा जाता है कि यहां सतयुग के दौरान भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। शास्त्रों व पुराणों में बद्रीनाथ को दूसरा बैकुण्ठ कहा गया है। इस मंदिर से जुड़ी एक और धार्मिक मान्यता है, कहा जाता है, कि यह पवित्र स्थल कभी भगवान शिव का निवास स्थान हुआ करता था, जिसे बाद में भगवान विष्णु ने भगवान शिव से मांग लिया । यह पवित्र धाम दो पर्वतों के बीच स्थित है, जिसे नर-नारायण के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार यहां विष्णु अंश नारायण ने तपस्या की थी।
5- सूर्य मंदिर, कोणार्क
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कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है। इस प्राचीन मंदिर की भव्यता को देखकर इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया है। अगर आप इसके शाब्दिक अर्थ में जाए तो पता चलेगा कि कोणार्क, दो शब्दों के मेल से बना है, एक 'कोण' और दूसरा 'अर्क, कोण का अर्थ कोना, व अर्क का अर्थ सूर्य। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। पर आपको जानकर आश्चर्च होगा कि कि यह भारत को एक ऐसा मंदिर है जहां आज तक पूजा नहीं की गई है। यह मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित है।
दूसरा खजुराहो
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इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण कार्य अधूरा ही रह गया, जिसका कारण निर्माणकर्ता राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु। इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के कारण यहां पर्यटक ज्यादा आना पसंद करते हैं। मंदिर की वास्तुकला किसी का भी मन मोह लेगी। मंदिर की दीवारों पर उकेरी गईं कामुक मूर्तियां मध्य प्रदेश के खजुराहो के मंदिर से काफी मेल खाती हैं।
6- काशी विश्वनाथ मंदिर, बनारस
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उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, जहां शिवजी स्वयं प्रकट हुए। इस मंदिर का इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है, जिसका उल्लेख हिंदू पुराणों में भी मिलता है। धार्मिक मान्यता से अनुसार अगर कोई इस मंदिर के दर्शन कर दैविक नदी गंगा में डुबकी लगा ले, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। बता दें कि इस पावन स्थल पर आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद, तुलसीनाथ व महर्षि दयानंद सभी आ चुके हैं।
पौराणिक रहस्य
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महाशिवरात्रि के दौरान यहां का भव्य नजारा देखने लायक होता है। इस दौरान ढोल-नगाड़ों से बाबा विश्वनाथ जी की शोभा यात्रा निकाली जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार विश्वनाथ मंदिर प्रलयकाल में भी अपनी असल अवस्था में ही रहेगा। क्योंकि इसकी रक्षा स्वयं भगवान शिव करेंगे, उस समय भगवान शिव इस मंदिर को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे, व सृष्टि काल पर उतार देंगे। बता दें कि इसी स्थान पर श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया गया था, जिसके रचनाकार संत एकनाथी थे।