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जानें कब है जगन्नाथ रथ यात्रा और क्या है इसका इतिहास

उड़ीसा के पूरी में स्थित जगन्नाथ जी का मंदिर दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर चार धामों (भगवान विष्णु समर्पित) में से एक है। कहा जाता है कि मरने से पहले हर सनातनी (हिंदू) को चारों धाम की यात्रा करनी चाहिए, इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगन्नाथ पूरी में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का मंदिर है, जो बहुत विशाल और हजारों साल पुराना है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण जगन्नाथ पूरी की रथ यात्रा है, जो किसी त्योहार से कम नहीं। इसे पूरी के अलावा देश और विदेश के कई हिस्सों में भी निकाली जाती है।

jagannath puri

कब निकाली जाएगी जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा

जगन्नाथ जी की रथ यात्रा हर साल अषाढ़ माह (जुलाई महीने) के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन निकाली जाती है। इस साल ये 1 जुलाई 2022 को निकाली जाएगी। रथ यात्रा का महोत्सव 10 दिन का होता है, जो शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन समाप्त होता है। इस दौरान पूरी में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और इस महाआयोजन का हिस्सा बनते हैं। इस दिन भगवन कृष्ण, भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रथों में बैठाकर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है। तीनों रथों को भव्य रूप से सजाया जाता है, जिसकी तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है।

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रथ यात्रा की कहानी

इस रथ यात्रा से जुड़ी बहुत सी कथाएं है, जिसके कारण इस महोत्सव का आयोजन होता है। कुछ लोगों का मानना है कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके आती हैं और अपने भाईयों से नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त करती हैं। तब कृष्ण बलराम, सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर घुमने जाते हैं। इसी के बाद से रथ यात्रा का पर्व शुरू हुआ।

इसके अलावा कहा जाता है, गुंडीचा मंदिर में स्थित देवी कृष्ण की मासी है, जो तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती है। श्रीकृष्ण और बलराम सुभद्रा के साथ अपनी मासी के घर 10 दिन के लिए रहने जाते है। कुछ लोगों का मानना है कि इस दिन श्री कृष्ण ने कंस का वध करके अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए बलराम के साथ मथुरा में रथ यात्रा किया था।

वहीं, कुछ का कहना है की कृष्ण की रानियां, माता रोहिणी से उनकी रासलीला सुनाना चाहती थीं। तभी माता रोहिणी को लगा कि कृष्ण की गोपीयों के साथ रासलीला के बारे सुभद्रा को नहीं सुनना चाहिए, इसलिए उन्होंने सुभद्रा को कृष्ण और बलराम के साथ रथ यात्रा के लिए भेज दिया। तभी वहां नारद जी प्रकट हुए और तीनों को एक साथ देख वे प्रसन्नचित्त हो गए। फिर उन्होंने प्रार्थना किया कि इन तीनों के ऐसे ही दर्शन हर साल हो। उनकी यह प्रार्थना सुन ली गई और रथ यात्रा के द्वारा इन तीनों के दर्शन सबको होते रहते हैं।

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जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

कहा जाता है, श्रीकृष्ण के देहांत के बाद जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया गया, तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्याधिक दुखी हुए कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद गए। वहीं, उनके पीछे-पीछे सुभद्रा भी कूद जाती है। इसी समय भारत के पूर्व में स्थित पूरी के राजा इन्द्रद्विमुना को स्वप्न आता है कि भगवान का शरीर समुद्र में तैर रहा है, अतः उन्हें यहां कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए और मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए। उन्हें स्वप्न में देवदूत बोलते है कि कृष्ण के साथ, बलराम और सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनानी चाहिए और श्रीकृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रखनी चाहिए। राजा का सपना सच हुआ, उन्हें कृष्ण की अस्थियां मिली। लेकिन अब वह सोचने लगे कि आखिर इस मंदिर का निर्माण कौन करेगा।

माना जाता है इसके बाद शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा एक बढ़ई के रूप में प्रकट होते हैं और मूर्ति का कार्य शुरू करते हैं। कार्य शुरू करने से पहले वे सभी से बोलते है कि उन्हें काम करते हुए कोई परेशान न करें, नहीं तो वे बीच में ही काम छोड़ कर चले जाएंगे। कुछ महीने हो जाने के बाद मूर्ति नहीं बनी, तब उतावले राजा इन्द्रद्विमुना बढई के रूम का दरवाजा खोल देते है। ऐसा होते ही भगवान विश्वकर्मा गायब हो जाते हैं। मूर्ति उस समय पूरी नहीं बन पाती है, लेकिन राजा ऐसे ही मूर्ति को स्थापित कर देते हैं। वो सबसे पहले मूर्ति के पीछे भगवान कृष्ण की अस्थियां रखते हैं और फिर मंदिर में विराजमान कर देते हैं।

यात्रा तीन विशाल रथों में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा का हर साल मूर्तियों के साथ निकाला जाता है। भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमा हर 12 साल के बाद बदली जाती है, जो नयी प्रतिमा रहती है, वह भी पूरी बनी हुई नहीं रहती। जगन्नाथ पूरी का यह मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां तीन भाई बहन की प्रतिमा एक साथ है और उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

जगन्नाथ मंदिर का समय

जगन्नाथ मंदिर सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है। इस मंदिर की पूजा और रस्म प्रणाली बहुत अलग है और अनुष्ठान कराने के लिए मंदिर परिसर में सैकड़ों पंडे और पुजारी मौजूद रहते हैं।

यदि आप जगन्नाथ पुरी मंदिर में दर्शन पूजन के लिए जाना चाहते हैं तो आपको बता दें की मंदिर में दर्शन करने के लिए कोई पैसे खर्च नहीं करने होते। यह मंदिर सुबह पांच बजे से रात 11 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।

सुबह पांच बजे मंदिर खुलने के बाद सबसे पहले द्वारका पीठ और मंगला आरती होती है। इसके बाद सुबह छह बजे मैलम होता है। भगवान जगन्नाथ के कपड़े और फूलों को हटाने को मैलम कहा जाता है। इस समय कुछ विशेष सेवक पिछली रात पहनाए गए कपड़े, तुलसी के पत्ते और फूलों को हटाते हैं।

सुबह नौ बजे मंदिर में गोपाल बल्लव पूजा होती है, जिसमें भगवान को नाश्ता कराया जाता है। नाश्ते में दही, स्वीट पॉपकॉर्न, खोवा लड्डू आदि का भोग लगाया जाता है। सुबह 11 बजे मध्हाह्न धूप पूजा होती है। इसमें सुबह की तुलना में अधिक खाद्य पदार्थों से भगवान को भोग लगाया जाता है। बस इस इस समय जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को 10 रूपये का टिकट लेना पड़ता है।

जगन्नाथ पुरी कैसे पहुंचे

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से जगन्नाथपुरी 60 कि.मी. दूर है।

हवाई मार्ग : भुवनेश्वर, निकटतम हवाई अड्डा है यह भारत के सभी राज्यों से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग से: भुवनेश्वर, नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। रेल से ओडिशा की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाया जा सकता है।
सड़क मार्ग से: भुवनेश्वर, राष्ट्रीय राजमार्ग पर आता है, जो चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगरों को जोड़ता है। इस वजह से जिन्हें सड़क पर लंबी यात्राएं करने का शौक है, उनके लिए ओडिशा पहुंचना ज्यादा आरामदेह और आसान है।

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प्रसिद्ध रथ यात्रा स्थल

वैसे तो रथ यात्रा देश-विदेश में कई जगह आयोजित किए जाते हैं। लेकिन इनमें से कुछ रथ यात्रा ऐसी है, जो पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है।

1. उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में आयोजित होने वाली रथयात्रा
2. पश्चिम बंगाल के हुगली में आयोजित होने वाली महेश रथ यात्रा
3. पश्चिम बंगाल के राजबलहट में आयोजित होने वाली रथ यात्रा
4. अमेरिका के न्यू यार्क शहर में आयोजित होने वाली रथ यात्रा

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