मंदिरों के शहर के नाम से प्रसिद्ध जागेश्वर, भारत के उत्तराखंड राज्य का एक खूबसूरत नगर है, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह धार्मिक स्थल 100 से भी ज्यादा प्राचीन मंदिरों का घर है, इसलिए इसे जागेश्वर घाटी मंदिर या जागेश्वर धाम के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यह एक अद्भुत स्थल है, जहां आप 7वीं से लेकर 12 शताब्दी के आकर्षक वास्तुकला से निर्मित मंदिरों को देख सकते हैं। यहां कुछ मंदिर 20वीं शताब्दी से भी संबंध रखते हैं। इन मंदिरों का निर्माण उत्तरी और मध्य भारतीय शैली में किया गया है।
यहां के प्राचीन मंदिर भगवान शिव के अलावा, भगवान विष्णु, मां दुर्गा को भी समर्पित हैं। जागेश्वर एक हिन्दू तीर्थस्थल है, जहां साल भर देशभर से श्रद्धालुओं और प्रर्यटकों का आगमन लगा रहता है। इस लेख के माध्यम से जानिए अतीत से जुड़ा यह स्थल आपको किस प्रकार आनंदित कर सकता है।
खूबसूरत मंदिरों का संग्रह
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जागेश्वर उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल और शैव परंपरा का एक पवित्र स्थान है। चूंकि यह एक प्राचीन स्थल है, इसलिए यह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत संरक्षित है। यह स्थल कई खूबसूरत मंदिरों का संग्रह स्थल है, जिसमें दांडेश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी , नव-ग्रह मंदिर, पिरामिड मंदिर और सूर्य मंदिर शामिल हैं।
श्रावण मास के दौरान यहां जागेश्वर मॉनसून फेस्टिवल का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दराज से पर्यटक और श्रद्धालुओं का आगमन होता है। महाशिवरात्रि के दौरान यहां शिवभक्तों का भारी जमावड़ा लगता है।
जागेश्वर का इतिहास
जागेश्वर के मंदिरों का इतिहास का अस्पष्ट है, यह स्थल भारत के उन चुनिंदा प्राचीन स्थलों में गिना जाता है, जहां अध्ययन और विद्वानों का ध्यान नहीं पहुंच पाया। फिर भी यहां मौजूद कई मंदिरों की वास्तुकला और शैली को देख इन्हें 7वीं से 12 शताब्दी के मध्य का बताया जाता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की मानें तो यहां कुछ मंदिर गुप्त काल के बाद और कुछ मंदिर दूसरी शताब्दी के बताए जाते हैं। कुछ लोगों को मानना है कि ये मंदिर कत्यूरी या चांद राजवंश के दौरान के हो सकते हैं, लेकिन इन तथ्यों को बल देने के लिए पुख्ता जानकारी या साक्ष्य उपलब्ध नहीं।
इस स्थल को लेकर यह भी कहा जाता है किआदि शंकराचार्य ने इनमें से कुछ मंदिरों का निर्माण किया था, लेकिन इस दावे का समर्थन करने के लिए भी कोई साक्ष्य मौजूद नहीं ।
कुछ अनोखी विशेषताएं
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जागेश्वर में मौजूद प्राचीन मंदिरों के समूह काफी हद तक भारत के विभन्न राज्यों के मंदिरों से मेल खाते हैं। उदारहण के तौर पर, मंदिरों का एक ऐसा ही समूह ओडिशा के भुवनेश्वर के पास लिंगराज मदिरों में रूप में देखा जा सकता है। इस तरह के रॉक टेंपल्स का समूह मध्यप्रदेश की चंबल घाटी के बटेश्वर में भी देखा गया है। जागेश्वर के मंदिर 6 वीं शताब्दी के बाद बने हिन्दू मंदिरों से काफी अलग हैं।
जागेश्वर मंदिरों के वास्तुकला को देखकर लगता है कि इनका इस्तेमला पूजा के लिए नहीं किया जाता होगा। अधिकांश मंदिरों के गर्भगृह अपेक्षाकृत छोटे हैं, जहां एक पूजारी भी नहीं बैठ सकता। यहां कुछ ऐसे प्रमाण नहीं मिलते, जो इस बात का समर्थन करें कि यहां पूजा जैसी धार्मिक गतिविधियां हुआ करती थीं।
महत्व और प्रसिद्ध मंदिर
विनायक क्षेत्र, अर्टोला गांव से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है, यह वो स्थल है, जहां से जागेश्वर की शुरुआत होती है। श्री वृद्ध या बुद जागेश्वर यहां मौजूद प्राचीन मंदिर है, जो जागेश्वर के उत्तर से तीन कि.मी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर पहाड़ी पर बसा है, जहां तक पहुंचने के लिए आपको ट्रेकिंग का सहारा लेना होगा। आप यहां के पुश्ती देवी मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यहां देवियों की मूर्तियां स्थापित है। यह मंदिर जागेश्वर के मुख्य परिसर में मौजूद है। जागेश्वर धाम, हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए काफी ज्यादा महत्व रखता है, इन मंदिरों के दर्शन के लिए यहां रोजान सैकड़ों की तादाद में श्रद्धालुओं का आगमन होता है। इतिहास और कला प्रेमियों के लिए यह स्थल काफी ज्यादा मायने रखता है।
कैसे करें प्रवेश
जागेश्वर, उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध धार्मिक नगर है, जहां आप परिवहन के तीनों साधनों की मदद से पहुंच सकते हैं, यहां का निकटवर्ती हवाईअड्डा पंतनगर और देहरादून स्थित जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए काठगोदाम रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं, बेहतर सड़क मार्गों से जागेश्वर राज्य के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।