मिस्र के पिरामिड, रोम का कालीज़ीयम या चीन की दीवार, ज्यादातर हमने इन सब को ही मानव द्वारा बनाई गई विशाल सरंचनाओं के रूप में जाना है। पर ऐसा नहीं है भारत में ऐसी विशाल अद्भुत संरचनाओं का निर्माण नहीं हुआ। भारत में ऐसे कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं जिसकी वास्तुकला और बनावट किसी आश्चर्य से कम नहीं।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद में खड़ा कैलास मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा विशाल मंदिर जिसे एक ही चट्टान को काटकर (मोनोलिथिक) बनाया गया है। यह पूरी संरचना द्रविड़ शैली का एक अनूठा उदाहरण है। आगे हमारे साथ जानिए यह ऐतिहासिक मंदिर पर्यटन के लिहाज से आपके लिए कितना खास है।
शोधकर्ताओं और पर्यटकों केंद्र
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क्योंकि प्राचीन समय में आज के जैसी आधुनिक तकनीके विकसित नहीं की गईं थीं। बिना आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर ऐसी विशाल सरंचना का निर्माण एक शोध का विषय बना हुआ है।
मंदिर का निर्माण
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यह पूराकैलास मंदिर 276 लंबी और 154 चौड़ी चट्टान को काटकर बनाया गया है। अगर आप इसकी संरचना को बारीकी से देखें तो आपको पता लगेगा कि इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। मंदिर के निर्माण के दौरान लगभग 40 हजार टन वजनी पत्थरों को पहाड़नुमा चट्टान से हटाया गया था।इस स्थान से जुड़ा है भगवान कृष्ण की मृत्यु का बड़ा राज
जिसके बाद इस पहाड़ को बाहर और अंदर से काटकर 90 फुट ऊंचे मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। इसके अलावा मूर्तियों से अलंकृत किया गया है।
वास्तुकला और मूर्तिकला
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कैलास मंदिर उन 34 मठों और मंदिरों में से एक है जो एलोरा गुफाओं को एक अद्भुत रूप प्रदान करते हैं। जिन्हें सह्याद्री पहाड़ियों की बेसाल्ट चट्टान की दीवारों के किनारे लगभग 2 किमी के क्षेत्र में खोदकर बनाया गया है। मंदिर गुफा संख्या नं 16 में पल्लव शैली के प्रमाम मिलते हैं। जहां वास्तुकला और मूर्तिकला द्रविड़ शैली से प्रभावित लगते हैं।
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भगवान शिव को समर्पित
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भगवान शिव को समर्पित इस विशाल मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण आई द्वारा करवाया गया था। लेकिन कैलास मंदिर के कई प्रतीक जैसे देवताओं की मूर्तियां, खंभे और जानवरों की आकृतियां किसी अज्ञात अतीत की ओर इशारा करती हैं। माना जाता है इनका निर्माण 5वीं और 10 वीं शताब्दी के आसपास किया गया होगा।
शोधकर्ताओं का क्या मानना है ?
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कई शोधकर्ताओं का मानना है कि कैलास मंदिर के निर्माणकर्ताओं ने एक वर्टिकल खुदाई पद्धति का इस्तेमाल किया था ताकि वे इस सरंचना को दुनिया के सामने एक अद्भुत रूप में पेश कर सके। जिसे हासिल करने में वे कामयाब रहे। इसलिए वे बड़े चट्टान के शीर्ष से शुरू हुए और नीचे की ओर बढ़े।
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कैसे करें प्रवेश
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आप औरंगाबाद से कैलास मंदिर तक का सफर टैक्सी या बस के माध्यम से पूरा कर सकते हैं। औरंगाबाद सड़क मार्गों द्वारा महाराष्ट्र के बड़े शहर जैसे मुंबई, पुणे, नासिक, सतारा,कोल्हापुर और अहमदनगर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। इसके अलावा आप रेल मार्ग से लिए औरंगाबाद रेलवे स्टेशन और हवाई मार्ग के लिए औरंगाबाद हवाई अड्डे का सहारा ले सकते हैं।