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जानिए क्यों एक ट्रैवलर के लिए खास है आंध्र प्रदेश का कोंदावीदु फोर्ट

आंध्र प्रदेश का प्राचीन कोंदावीदु फोर्ट । historical fort of andhra pradesh kondaveedu Fort

दक्षिण भारत का आंध्र प्रदेश राज्य शुरु से ही प्रकृति प्रेमियों और इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए एक मुख्य गंतव्य रहा है। दक्षिण के विभिन्न राजवंशों के अधीन विकसित हुआ यह दक्षिणी भूखंड एक विधिध संस्कृति का चित्रण करता है। यहां कई समय तक सातवाहनस, पल्ल्व, चोल. रेड्डी काकतीय राजवंश आदि का शासन रह चुका है। यह राज्य अपने अंदर एक बृहद इतिहास समाए हुए है, खासकर इतिहास प्रेमियों के लिए यह राज्य काफी ज्यादा मायने रखता है।

इस क्रम में आज हम आपको आंध्रप्रेदश के एक ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे बनाने में कई शासकों का योगदान रहा है और जिसे इस राज्य के इतिहास का केंद्र बिंदू भी कर सकते हैं, जिसके माध्यम से आप राज्य और दक्षिण भारत के अतीत के कई अहम पहलुओं के बारे में जान सकते हैं।

कोंदावीदु फोर्ट : एक संक्षिप्त इतिहास

कोंदावीदु फोर्ट : एक संक्षिप्त इतिहास

PC- R., William

कोंदावीदु फोर्ट के इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि इस किले का निर्माण तेलगू चोल शासकों के वक्त हुआ था। जिसके बाद इस किले पर काकतीय राजा गणपति देव ने कब्जा कर लिया था। माना जाता है कि काकतीय के बाद यह किला प्रोलय वेमा रेड्डी के अधीन आ गया था, जिसने अपनी राजधानी 1322 में यहां स्थानांतरित कर ली थी। इस किले पर शासन कर चुके राजवंशों में विजयनगर साम्राज्य, गजापति, गोलकुंडा के सुल्तान और अंत में फ्रांसीस और ब्रिटिश का भी नाम आता है।

फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों के हाथों में यह किला 1752 में आया, इस दौरान इस किले को बड़े पैमाने पर मजबूत बनाया गया था। 1788 में यह किला अंग्रेजों के अधीन चला गया था। वर्तमान में इस किले को मात्र खंडहर के रूप में ही देखा जा सकता है।

एडवेंचर के लिए खास विकल्प

एडवेंचर के लिए खास विकल्प

PC- Abdaal

इतिहास प्रेमियों के अलावा यह किला एडवेंचर के शौकीनों के लिए भी काफी ज्यादा मायने रखता है। आप यहां ट्रेकिंग का साहसिक अनुभव ले सकते हैं। क्योंकि किले तक पहुंचने के लिए आपको ट्रेकिंग का सहारा लेना होगा। यह सफर काफी रोमांचकारी माना जाता है।

सफर के दौरान आपको चट्टानी रास्तों से होते हुए आगे बढ़ना होगा। चूंकि यह किला पहाड़ी पर स्थित है, इसलिए आप यहां से प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद जी भरकर उठा सकते हैं। वीकेंड के दौरान यहां पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।

गोपीनाथनस्वामी मंदिर

गोपीनाथनस्वामी मंदिर

PC- Abdaal

किले के अलावा आप यहां भगवान कृष्ण को समर्पित एक मंदिर को भी देख सकते हैं। गोपीनाथनस्वामी मंदिर किले के नजदीक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। किले भ्रमण के लिए निकले पर्यटक यहां आना ज्यादा पसंद करते हैं। मंदिर का वास्तुकला देखने लायक है, खासकर स्तंभों पर की गई नक्काशी सबका ध्यान आकर्षित करती है। भ्रमण के दौरान आप यहां रूककर मंदिर की वास्तुकला को करीब से देख सकते हैं।

खंडहर में तब्दील अन्य संरचनाएं

खंडहर में तब्दील अन्य संरचनाएं

मुख्य किले के अलावा यहां दो अन्य किले भी मौजूद हैं, ये तीनों किले पहाड़ी पर 12वीं शताब्दी के आसपास बनाए गए थे, हालांकि अब ये मात्र खंडहर के रूप में यहां मौजूद हैं। यह अपने समय के सबसे मजबूत किलों में माना जाता था। किले के अंदर 21 प्राचीन संरचनाएं भी पाई गईं है। किले में प्रवेश करने के लिए दो प्रवेशद्वार मौजूद हैं। ये दो प्रवेशद्वार बहुत ही मजबूत हैं और ग्रेनाइट पत्थरों से बनाए गए हैं।

आप यहां पर उन जलाशयों को भी देख सकते हैं, जहां से किले को पानी प्राप्त होता था। दक्षिण भारत के इतिहास को समझने के लिए यह का भ्रमण काफी ज्यादा मायने रखता है।

कैसे करें प्रवेश

कैसे करें प्रवेश

PC- IM3847

कोंदावीदु फोर्ट गुंटूर और चिलाकलूरीपेट के मध्य स्थित कोंदावीदु गांव में स्थित है। गुंटूर से यह स्थल 25 कि.मी और चिलाकलूरीपेट के मात्र 13 कि.मी की दूरी पर स्थित है। गुंटूर आप सड़क और रेल सेवा के माध्यम से भारत के किसी भी बड़े शहर से अपना सफर तय कर सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा विजयवाड़ा में स्थित है, जो गुंटूर से 58 कि.मी के फासले पर स्थित है। एक बार गुंटूर पहुंचने के बाद आप यहां तक स्थनीय परिवहन का सहारा लेकर आ सकते हैं।

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