गुजरात स्थित बेत द्वारका एक छोटा द्वीप है जो कभी ओखा के विकास से पहले इस क्षेत्र का मुख्य बंदरगाह हुआ करता था। यह द्वीप बेत शंखोदर के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटन के लिहाज से यह राज्य का एक मुख्य गंतव्य है जो डॉल्फिन प्वाइंट, समुद्री भ्रमण, कैम्पिंग और पिकनिक स्पार्ट के रूप में काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा यह द्वीप पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है।
पुरातात्विक खुदाई के दौरान यहां बहुत मह्त्वपूर्ण प्राचीन अवशेषों को प्राप्त किया गया है। पुरातात्विक सर्वेक्षण से कुछ धार्मिक पांडुलिपियां भी मिली हैं जो इस स्थान को भगवान कृष्ण का मूल निवास बताती हैं। आइए जानते हैं पर्यटन के तौर पर यह स्थान आपके लिए कितना खास है।
एक संक्षिप्त इतिहास
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बेत द्वारका को भारतीय महाकाव्य साहित्य (द्वारका-कृष्ण की जन्मभूमि) में एक प्राचीन शहर कहा गया है। गुजराती विद्वान उमाशंकर जोशी के अनुसार महाभारत के सभा परवा के अंतरद्वीप को बेत द्वारका के रूप में पहचाना जा सकता है। इस द्वीप का नाम प्राचीन शंकहोधर नाम लिया गया है, क्योंकि यह द्वीप शंकों का बड़ा स्रोत है। समुद्र के नीचे पाए गए पुरातात्विक अवशेष सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान इंसानी बसावट की ओर इशारा करते हैं।
इसे मौर्य साम्राज्य के समय से दिनांकित किया जा सकता है। साक्ष्य बताते हैं कि यह कभी ओखा मंडल या कुशद्वीप क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था। इसके अलावा द्वारका का उल्लेख 574 ईस्वी के तांबे शिलालेख (सिमदित्य ) में किया गया है।
पुरातात्विक महत्व
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इस स्थान पर पुरातात्विक खुदाई भी हो चुकी है। 1980 के दशक में हड़प्पा सभ्यता के मिट्टी के बर्तन और अन्य कलाकृतियों के अवशेष सिद्धी बावा पीर दरगाह के पास प्राप्त किए गए थे। इसके अलावा 1982 में 1500 ईसा पूर्व की एक 580 मीटर लंबी सुरक्षा दीवार पाई गई थी, माना जाता है कि सुरक्षा दीवार प्राकृतिक प्रकोप के कारण बुरी तरह क्षतिग्रस्त होकर डूब गई थी।
बरामद किए गए कलाकृतियों में एक हड़प्पा काल के बाद की एक सील, अंकित घड़ा और एक तांबे की वस्तु प्राप्त की गई थी। इसके अलावा पुरातात्विक खुदाई के कुछ साक्ष्य जहाजों और पत्थर के लंगर के रूप में रोमनों के साथ ऐतिहासिक व्यापार संबंध होने का प्रमाण भी देता है।
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दर्शनीय स्थल- श्री कृष्ण मंदिर
यह स्थल धार्मिक महत्व के लिए ज्यादा जाना जाता है। यहां से 15 मीनट के पैदल रास्ते पर एक विशाल 500 साल पुराना श्री कृष्ण मंदिर है। श्री वल्लभाचार्य द्वारा निर्मित यह मंदिर रुक्मिणी द्वारा बनाई गई एक मूर्ति को भी दर्शाता है। पौराणिक कहानी है कि भगवान कृष्ण के दोस्त सुदामा ने उन्हें चावल भेंट में दिए थे और इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु एक धार्मिक परंपरा की तरह ब्राह्मणों को चावल दान में देते हैं।
इस स्थान के आसपास भगवान शिव, विष्णु, हनुमान के मंदिर भी मौजूद हैं। द्वारका उस पौराणिक कथा से भी जुड़ा हुआ है जिसमें भगवान विष्णु ने दानव शंकरुरा को मार डाला था।
दांडीवाला हनुमान मंदिर
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श्री कृष्ण मंदिर के अलावा आप यहां दांडीवाला हनुमान मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। दंडिवाला हनुमान मंदिर बेत द्वारका से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आस्था का केंद्र माना जाता है। हर रोज यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
इस मंदिर की एक दुर्लभ विशेषता भी है कि यहां उनके पुत्र मकरद्वाज की मूर्ति स्थापित है। माना जाता है कि भगवान हनुमान के पसीने की एक बूंद ने एक मछली को गर्भवति बना दिया था, जिससे पुत्र मकरद्वाज का जन्म हुआ।
कैसे करे प्रवेश
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बेत द्वारका एक प्रसिद्ध स्थान है, यहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा जामनगर एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप द्वारका रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
इसके अलावा आप यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क रूट्स से बेत द्वारका राज्य के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ी हुआ है। अहमदाबाद और जामनगर से यहां तक के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है।
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