महाराष्ट्र के पुणे स्थित लेण्याद्री एक ऐतिहासिक स्थल है जो चट्टानों को काट कर बनाई गईं 30 बौद्ध गुफाओं की श्रृंखला का प्रतिनिधित्व करता है। पुणे नासिक रोड पर जुन्नर के पास बनी इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए 321 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। ऐतिहासिक महत्व और प्राचीन जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से ये पूरा स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित है।
इस स्थल के प्रचार-प्रसार के लिए अब यहां सैलानियों को आने की भी इजाजत दे दी गई है। गुफा में प्रवेश करने के लिए हर पर्यटक का टिकट लेना अनिवार्य है। यहां की प्राचीन गुफाएं देखने में काफी सुंदर हैं, आसपास का मनोरम दृश्य इस गुफा स्थान को अद्भुत बनाने का काम करता है।
ऐतिहासिक स्थलों के प्रेमियों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं। माना जाता है कि ये गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं का गुप्त साधना स्थल भी रह चुकी हैं। आगे इस लेख में जानिए इन गुफाओं से संबंधित और भी कई दिलचस्प बातें।
321 सीढ़ियों का सफर
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यहां की 30 गुफाओं में चुनिंदा कुछ ही देखने और घूमने लायक हैं। समय के साथ कई सारी गुफाएं अपनी अस्तित्व खो बैठी हैं। गुफा श्रृंखला में गुफा संख्या 7 को एक हिन्दू मंदिर के रूप में चिन्हित किया गया है। इस गुफा के अंदर भगवान गणेश की एक प्रतिमा स्थापित है। यह पवित्र स्थल अष्टविनायक मंदिरों में से एक है।
अष्टविनायक मंदिर महाराष्ट्र में आठ प्रमुख गणेश मंदिरों को कहा जाता है। यहां की गुफाएं 1 से 3 शताब्दी के बीच की बताई जाती है। यहां स्थित अष्टविनायक मंदिर पहली शताब्दी में बनाया गया था।
चुनिंदा कुछ गुफाओं को छोड़कर बाकी सभी आम गुफाएं है जिन्हें संख्या के आधार पर जाना जाता है। चूंकि गुफाएं पहाड़ियों पर बनी हैं तो यहां तक पहुंचने के लिए 321 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है।
लेण्याद्रि के गिरिजात्मज गणपति
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लेण्याद्रि गुफाएं अष्टविनायक मंदिर और बौद्ध विहार की वजह से ज्यादा प्रसिद्ध हैं। लेण्याद्रि में विराजमान गणेश भगवान की गिनती महाराष्ट्र राज्य के 8 अष्ट विनायक मंदिरों में होती है। रोजाना यहां भक्तों का अच्छा खासा जमावड़ा लगता है। यहां गणपति को गिरिजात्मज गणपति के नाम से संबोधित किया जाता है।
गिरिजात्मज, माता पार्वती के नाम से जुड़ा है, मतलब माता पार्वती के पुत्र। पौराणिक किवदंतियों के अनुसार ये पहाड़ियां कभी माता पार्वती का निवास स्थान हुआ करती थीं।
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माता पार्वती की तपस्या
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यहां कभी जल कुंड हुआ करते थे जहां माता स्नान किया करती थीं। यही वो स्थान है जहां शिवजी माता पार्वती से मिलने पहुंचे थे और बाल गणेश ने उनका रस्ता रोका था। जिसके बाद शिवजी ने क्रोध में आकर गणेश का सिर काट दिया था। आज भी वो कुंड इसी स्थान पर देखा जा सकता है।
पौराणिक लेखों में इस स्थान का जिक्र जीर्णपुर या लेखन पर्वत के नाम से भी मिलता है। लेण्याद्रि नाम के पीछे भी एक अर्थ छुपा है। यहां भगवान गणेश का स्थान गुफाओं के बीच है और गुफा को लेणी भी कहते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार पुत्र प्राप्ति के लिए माता पार्वती ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। जिसके बाद उन्हें भगवान गणेश पुत्र के रूप में प्राप्त हुए। माना जाता है कि गुफा नंबर सात में जो भगवान गणेश की प्रतिमा है वो स्वयंभू है यानी यहां भगवान गणेश प्रतीक के रूप में अपने आप प्रकट हुए थे।
हिनायन बौद्ध धर्म से संबंध
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गुफा संख्या 7 जो छोड़कर यहां बाकी अन्य गुफाएं हिनायन बौद्ध धर्म से संबंध रखती हैं। इन गुफाओं में बने ज्यादातर कमरे बौद्ध भिक्षुओं द्वारा साधना स्थल के रूप में उपयोग किए जाते थे। प्रत्येक गुफा को उनकी अपनी संख्या प्राप्त है जो आकार और डिजाइन में एक जैसी ही प्रतीत होती हैं।
गुफा संख्या 7 में स्थापित गणेश मूर्ति के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती लेकिन भगवान गणेश वाली गुफा को सबसे प्राचीन बताया जाता है।
कैसे करें प्रवेश
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लेण्याद्री गुफा पुणे जिले के जुन्नार से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। पर्यटक पुणे और मुंबई से बस या टैक्सी लेकर जुन्नार तक पहुंच सकते हैं। जुन्नार से फिर लेन्याद्री गुफाओं तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। अच्छा होगा कि आप लेन्याद्री तक पहुंचने के लिए प्राइवेट टैक्सी या कैब का सहारा लें। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन पुणे है। हवाई मार्ग के लिए आप पुणे एयरपोर्ट का सहारा ले सकते हैं।